चर्मण्वती नदी: Difference between revisions

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*'''चर्मण्वती नदी''', जिसे वर्तमान समय में [[चम्बल नदी]] के नाम से जाना जाता है।
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*[[पुराण|पुराणों]] और [[महाभारत]] में इसके किनारे पर राजा 'रन्तिदेव' द्वारा 'अतिथि यज्ञ' करने का उल्लेख मिलता है।
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*कहा जाता है कि बलिपशुओं के चमड़ों के पुँज से यह नदी बह निकली, इसीलिए इसका नाम 'चर्मण्वती' (आधनिक चम्बल नदी) पड़ा।
*यह माना जाता है कि बलिपशुओं के चमड़ों के पुँज से यह नदी बह निकली, इसीलिए इसका नाम 'चर्मण्वती' पड़ा। किन्तु यह पुराणों की गुप्त या सांकेतिक भाषा-शेली की उक्ति है, जिससे बड़े-बड़े लोग भ्रमित हो गए हैं।
*किन्तु यह पुराणों की गुप्त या सांकेतिक भाषा-शेली की उक्ति है, जिससे बड़े-बड़े लोग भ्रमित हो गए हैं।
*राजा रन्तिदेव की पशुबलि और चर्मराशि का अर्थ [[केला]] (कदली) स्तम्भों को काटकर उनके फलों से होम एवं अतिथि सत्कार करना है।
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*केलों के पत्तों और छिलकों को भी चर्म कहा जाता था। ऐसे कदलीवन से ही चर्मण्वती नदी निर्गत हुई थी।
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Revision as of 12:08, 25 May 2012

[[चित्र:Chambal-River.jpg|thumb|300px|चम्बल नदी, (राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर)]]

चर्मण्वती नदी को वर्तमान समय में चम्बल नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश में बहती हुई इटावा, उत्तर प्रदेश के निकट यमुना नदी में मिलती है।

  • पुराणों और महाभारत में इस नदी के किनारे पर राजा 'रन्तिदेव' द्वारा 'अतिथि यज्ञ' करने का उल्लेख मिलता है।
  • यह माना जाता है कि बलिपशुओं के चमड़ों के पुँज से यह नदी बह निकली, इसीलिए इसका नाम 'चर्मण्वती' पड़ा। किन्तु यह पुराणों की गुप्त या सांकेतिक भाषा-शेली की उक्ति है, जिससे बड़े-बड़े लोग भ्रमित हो गए हैं।
  • राजा रन्तिदेव की पशुबलि और चर्मराशि का अर्थ केला (कदली) स्तम्भों को काटकर उनके फलों से होम एवं अतिथि सत्कार करना है।
  • केलों के पत्तों और छिलकों को भी चर्म कहा जाता था। ऐसे कदलीवन से ही चर्मण्वती नदी निर्गत हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 262 |


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