धनानंद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
* धनानंद [[मगध]] देश का एक राजा था।  
'''धनानंद अथवा धननंद''' [[मगध]] देश का एक राजा था।  
*इसकी राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी।  
 
*उसकी सैनिक शक्ति के भय से ही [[सिकंदर]] के सैनिकों ने [[व्यास नदी]] से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।  
इसकी राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। मगध की सैनिक शक्ति के भय से ही [[सिकंदर]] के सैनिकों ने [[व्यास नदी]] से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।
*नन्दवंश का अंतिम शासक घनानंद बहुत दुर्बल और अत्याचारी था।  
 
*[[कौटिल्य]] की सहायता से [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने 322 ई. पूर्व में [[नंदवंश]] को समाप्त करके [[मौर्य वंश]] की नींव डाली।
ग्रीक विवरणों के अनुसार नन्द की सेना में 2,00,000 पदाति 20,000, अश्वारोही, 2,000 रथ और 3,000 हाथी थे। कर्टियस ने तो नन्द की सेना के पदाति सैनिकों की संख्या दो लाख के बजाय छ:लाख लिखी है। इस शक्ति शाली सेना को परास्त करने के लिए चाणक्य और चन्द्रगुप्त को विकट युद्ध की आवश्यकता हुई थी। बौद्ध ग्रंथ 'मिलिन्दपन्हों' के अनुसार इस युद्ध में 100 कोटि पदाति, 10 हजार हाथी, 1लाख अश्वारोही और 5 हजार रथ काम आये थे। इस विवरण में अवश्य ही आतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं। पर यह स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त और नन्द के युद्ध की विकटता और उसमें हुए धन-जन के विनाश की स्मृति चिरकाल तक कायम रही थी, और जनता उसकी भयंकरता को भूल नहीं सकी थी।  मिलिन्दपन्हो के अनुसार नन्द की सब सेना,सम्पत्ति, शक्ति और यहाँ तक कि बुद्धि भी नष्ट हो गई, तो उसे चाणक्य और चन्द्रगुप्त के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देने के लिए विवश होना पड़ा। परास्त हुए नन्द का चाणक्य ने घात नहीं किया, अपितु उसे अपनी दो पत्नियों और एक कन्या के साथ पाटलिपुत्र से बाहर चले जाने की अनुमति प्रदान कर दी। साथ ही, उतनी सम्पत्ति भी उसे अपने साथ ले जाने दी, जितनी कि एक रथ में आ सकती थी। पर अन्य प्राचीन अनुश्रुति में चाणक्य और चन्द्रगुप्त द्वारा नन्द के विनाश का उल्लेख है। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=मौर्य साम्राज्य का इतिहास |लेखक=सत्यकेतु विद्यालंकार |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=श्री सरस्वती सदन नई दिल्ली |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=147 |url=}} </ref>
नन्दवंश का अंतिम शासक धनानंद बहुत दुर्बल और अत्याचारी था। [[कौटिल्य]] की सहायता से [[चंद्रगुप्त मौर्य]] ने 322 ई. पूर्व में [[नंदवंश]] को समाप्त करके [[मौर्य वंश]] की नींव डाली।
{{प्रचार}}
{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति  
{{लेख प्रगति  
|आधार=
|आधार=आधार
|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=  
|माध्यमिक=  
|पूर्णता=  
|पूर्णता=  

Revision as of 12:59, 19 October 2011

धनानंद अथवा धननंद मगध देश का एक राजा था।

इसकी राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। मगध की सैनिक शक्ति के भय से ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।

ग्रीक विवरणों के अनुसार नन्द की सेना में 2,00,000 पदाति 20,000, अश्वारोही, 2,000 रथ और 3,000 हाथी थे। कर्टियस ने तो नन्द की सेना के पदाति सैनिकों की संख्या दो लाख के बजाय छ:लाख लिखी है। इस शक्ति शाली सेना को परास्त करने के लिए चाणक्य और चन्द्रगुप्त को विकट युद्ध की आवश्यकता हुई थी। बौद्ध ग्रंथ 'मिलिन्दपन्हों' के अनुसार इस युद्ध में 100 कोटि पदाति, 10 हजार हाथी, 1लाख अश्वारोही और 5 हजार रथ काम आये थे। इस विवरण में अवश्य ही आतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं। पर यह स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त और नन्द के युद्ध की विकटता और उसमें हुए धन-जन के विनाश की स्मृति चिरकाल तक कायम रही थी, और जनता उसकी भयंकरता को भूल नहीं सकी थी। मिलिन्दपन्हो के अनुसार नन्द की सब सेना,सम्पत्ति, शक्ति और यहाँ तक कि बुद्धि भी नष्ट हो गई, तो उसे चाणक्य और चन्द्रगुप्त के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देने के लिए विवश होना पड़ा। परास्त हुए नन्द का चाणक्य ने घात नहीं किया, अपितु उसे अपनी दो पत्नियों और एक कन्या के साथ पाटलिपुत्र से बाहर चले जाने की अनुमति प्रदान कर दी। साथ ही, उतनी सम्पत्ति भी उसे अपने साथ ले जाने दी, जितनी कि एक रथ में आ सकती थी। पर अन्य प्राचीन अनुश्रुति में चाणक्य और चन्द्रगुप्त द्वारा नन्द के विनाश का उल्लेख है। [1]

नन्दवंश का अंतिम शासक धनानंद बहुत दुर्बल और अत्याचारी था। कौटिल्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में नंदवंश को समाप्त करके मौर्य वंश की नींव डाली।


32px यह लेख की आधार अवस्था ही है, आप इसको तैयार करने में सहायता कर सकते हैं।

संबंधित लेख

  1. मौर्य साम्राज्य का इतिहास |लेखक: सत्यकेतु विद्यालंकार |प्रकाशक: श्री सरस्वती सदन नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 147 |