पुरुषोत्तम दास टंडन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:भारत रत्न सम्मान (को हटा दिया गया हैं।)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
आजादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], 1937 से लेकर [[10 अगस्त]], 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा को संबोधित किया। | आजादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], 1937 से लेकर [[10 अगस्त]], 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा को संबोधित किया। | ||
==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
1961 में [[हिंदी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा 'भारत रत्न' की उपाधि से विभूषित किया | 1961 में [[हिंदी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा '[[भारत रत्न]]' की उपाधि से विभूषित किया गया। | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
[[1 जुलाई]], 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया। | [[1 जुलाई]], 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया। | ||
Line 31: | Line 31: | ||
*[http://indianpost.com/viewstamp.php/Alpha/P/PURUSHOTTAM%20DAS%20TANDON PURUSHOTTAM DAS TANDON] | *[http://indianpost.com/viewstamp.php/Alpha/P/PURUSHOTTAM%20DAS%20TANDON PURUSHOTTAM DAS TANDON] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत रत्न}}{{भारत रत्न2}} | |||
[[Category: | [[Category:भारत रत्न सम्मान]][[Category:शिक्षक]] [[Category:शिक्षा कोश]] [[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]] [[Category:जीवनी साहित्य]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]] [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]] | ||
[[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 09:41, 21 July 2011
thumb|पुरुषोत्तम दास टंडन पुरुषोत्तम दास टंडन (अंग्रेज़ी: Purushottam Das Tandon) (जन्म- 1 अगस्त 1882, इलाहाबाद उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1 जुलाई, 1962) आधुनिक भारत के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से थे। वे 'राजर्षि' के नाम से विख्यात हैं। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया।
जन्म
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में हुआ था।
शिक्षा
पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की और 1906 में लॉ की प्रैक्टिस के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करना शुरु किया।
विधायी जीवन
टंडन के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे।
आन्दोलन में सक्रियता से भाग
पुरुषोत्तम दास टंडन ने रॉलेट एक्ट विरोधी सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी तथा आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद में कृषक आन्दोलन का संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संचालन किया। उन्होंने किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा 1937 ई. में इसके अध्यक्ष बने। उन्होंने भारत विभाजन का डटकर विरोध किया। 1951 ई. में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने, किंतु बाद में भाषयी राज्यों के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने पर उन्होंने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे।
गोलमेज़ सम्मेलन
1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलन से गांधी जी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था उनमें जवाहरलाल नेहरू के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे।
हिंदी को आगे बढ़ाने के प्रयास
हिंदी को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफी प्रयास किया। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन ने 10 अक्टूबर, 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के प्रांगण में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। इसी क्रम में 1918 में उन्होंने ‘हिंदी विद्यापीठ’ और 1947 में ‘हिंदी रक्षक दल’ की स्थापना की। वे हिन्दी को देश की आजादी के पहले 'आजादी प्राप्त करने का' और आजादी के बाद 'आजादी को बनाये रखने का' साधन मानते थे। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिंदी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिंदी में भारत की मिट्टी की सुगंध महसूस करते थे। हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में स्पष्ट घोषणा की गई कि अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में अंग्रेज़ी का एक शब्द भी सुनाई न पड़े।[1]
कार्यकाल
आजादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। 31 जुलाई, 1937 से लेकर 10 अगस्त, 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा को संबोधित किया।
पुरस्कार
1961 में हिंदी भाषा को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। 23 अप्रैल, 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा 'भारत रत्न' की उपाधि से विभूषित किया गया।
निधन
1 जुलाई, 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी के कर्ता-धर्ता : भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन (हिंदी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख