पंचमढ़ी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " सदी " to " सदी ") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Dhoopgarh-Pachmarhi.jpg|thumb|250px|धूपगढ़, पंचमढ़ी]] | [[चित्र:Dhoopgarh-Pachmarhi.jpg|thumb|250px|धूपगढ़, पंचमढ़ी]] | ||
पंचमढ़ी [[सतपुड़ा पर्वतश्रेणी]] में | '''पंचमढ़ी''' [[सतपुड़ा पर्वतश्रेणी]] में [[समुद्र]] [[तट]] से 3,500 फुट से 4,000 फुट तक की ऊँचाई पर [[नर्मदा नदी]] के निकट बसा है। पंचमढ़ी को [[मध्य प्रदेश]] की छ्त भी कहा जाता है। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
पंचमढ़ी का नाम पाँच मढ़ियों या प्राचीन गुफाओं के कारण पंचमढ़ी पड़ा है। पंचमढ़ी में [[महादेव]] | पंचमढ़ी का नाम पाँच मढ़ियों या प्राचीन गुफाओं के कारण पंचमढ़ी पड़ा है। पंचमढ़ी में [[महादेव पहाड़ियाँ|महादेव पहाड़ी]] के शैलाश्रयों में शैलचित्रों का भण्डार मिला है। इनमें से अधिकतर शैलचित्र पाँचवी से आठवीं शताब्दी के हैं, किंतु सबसे प्राचीन चित्र दस हज़ार साल पहले के माने जाते हैं। महादेव पर्वत श्रृंखलाओं में 5 मील के घेरे में लगभग पचास शिलाश्रय चित्रित पाए गए हैं। इन गुफा एवं चित्रों की खोज का श्रेय डॉ.एच. गार्डन को दिया जाता है। इन गुफाओं के चित्र आदिकाल से ऐतिहासिक काल तक निरंतर रचे गए थे। पूर्वकाल के चित्र डमरुनुमा तथा तख्तीनुमा मानवाकार वाले हैं तथा बाद के काल के चित्र परिष्कृत रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इस स्थल की मुख्य गुफाएँ इमली-खोह, बनियाबेरी, मोण्टेरोजा, डोरोथीडीप, जम्बूदीप, निम्बूभोज, लश्करिया खोह, भांडादेव आदि हैं। पंचमढ़ी के [[चित्रकार|चित्रकारों]] ने मानव जीवन के सामान्य जन-जीवन की झाँकी बखूबी चित्रित की है। इन गुफाओं में शेर का आखेट, स्वास्तिक पूजन, क्रीड़ा- नर्तन, बकरी, सितारवादक, गर्दभ मुँह वाला पुरुष, तंतुवाद्य का वादन करते पुरुष, दिव्यरथवाही, धनुर्धर तथा अनेक मानव व पशुओं की आकृतियाँ चित्रित की गई हैं। सर्वाधिक चित्रण शिकार पर आधारित है। | ||
पंचमढ़ी में लगभग उन्नीसवीं [[सदी]] के उत्तरार्द्ध में गौड़ और कोरकू नामक आदिवासियों का निवास था। पंचमढ़ी की अनेक चट्टानों पर आदिम निवासियों के लेख पाए गए हैं। उनके चित्र भी शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं, जिनके विषय मुख्यतः [[गाय]], बैल, घोड़ा, [[हाथी]], माला, रथ, युद्ध तथा शिकार के दृश्य हैं। | पंचमढ़ी में लगभग उन्नीसवीं [[सदी]] के उत्तरार्द्ध में गौड़ और कोरकू नामक आदिवासियों का निवास था। पंचमढ़ी की अनेक चट्टानों पर आदिम निवासियों के लेख पाए गए हैं। उनके चित्र भी शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं, जिनके विषय मुख्यतः [[गाय]], बैल, घोड़ा, [[हाथी]], माला, रथ, युद्ध तथा शिकार के दृश्य हैं। | ||
Line 18: | Line 18: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | {{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:मध्य प्रदेश]] | [[Category:मध्य प्रदेश]] | ||
[[Category:मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल]] | [[Category:मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल]] | ||
[[Category:भारत_के_पर्यटन_स्थल]][[Category:पर्यटन_कोश]] | [[Category:भारत_के_पर्यटन_स्थल]][[Category:पर्यटन_कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:16, 9 December 2011
thumb|250px|धूपगढ़, पंचमढ़ी पंचमढ़ी सतपुड़ा पर्वतश्रेणी में समुद्र तट से 3,500 फुट से 4,000 फुट तक की ऊँचाई पर नर्मदा नदी के निकट बसा है। पंचमढ़ी को मध्य प्रदेश की छ्त भी कहा जाता है।
इतिहास
पंचमढ़ी का नाम पाँच मढ़ियों या प्राचीन गुफाओं के कारण पंचमढ़ी पड़ा है। पंचमढ़ी में महादेव पहाड़ी के शैलाश्रयों में शैलचित्रों का भण्डार मिला है। इनमें से अधिकतर शैलचित्र पाँचवी से आठवीं शताब्दी के हैं, किंतु सबसे प्राचीन चित्र दस हज़ार साल पहले के माने जाते हैं। महादेव पर्वत श्रृंखलाओं में 5 मील के घेरे में लगभग पचास शिलाश्रय चित्रित पाए गए हैं। इन गुफा एवं चित्रों की खोज का श्रेय डॉ.एच. गार्डन को दिया जाता है। इन गुफाओं के चित्र आदिकाल से ऐतिहासिक काल तक निरंतर रचे गए थे। पूर्वकाल के चित्र डमरुनुमा तथा तख्तीनुमा मानवाकार वाले हैं तथा बाद के काल के चित्र परिष्कृत रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इस स्थल की मुख्य गुफाएँ इमली-खोह, बनियाबेरी, मोण्टेरोजा, डोरोथीडीप, जम्बूदीप, निम्बूभोज, लश्करिया खोह, भांडादेव आदि हैं। पंचमढ़ी के चित्रकारों ने मानव जीवन के सामान्य जन-जीवन की झाँकी बखूबी चित्रित की है। इन गुफाओं में शेर का आखेट, स्वास्तिक पूजन, क्रीड़ा- नर्तन, बकरी, सितारवादक, गर्दभ मुँह वाला पुरुष, तंतुवाद्य का वादन करते पुरुष, दिव्यरथवाही, धनुर्धर तथा अनेक मानव व पशुओं की आकृतियाँ चित्रित की गई हैं। सर्वाधिक चित्रण शिकार पर आधारित है।
पंचमढ़ी में लगभग उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में गौड़ और कोरकू नामक आदिवासियों का निवास था। पंचमढ़ी की अनेक चट्टानों पर आदिम निवासियों के लेख पाए गए हैं। उनके चित्र भी शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं, जिनके विषय मुख्यतः गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, माला, रथ, युद्ध तथा शिकार के दृश्य हैं।
|
|
|
|
|