अष्टविनायक: Difference between revisions

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पौराणिक महत्व से संबंध रखने वाली 'अष्टविनायक यात्रा' महाराष्ट्र में [[पुणे]] के समीप स्थित है। मंदिरों का पौराणिक महत्व एवं इतिहास पूर्ण रूप से ज्ञात होता है और यहाँ विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती है, अर्थात यह मूर्तियाँ स्वयं प्रकट हुई हैं और इनका स्वरूप प्राकृतिक माना गया है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही 'अष्टविनायक की यात्रा' भी की जाती है। इनमें से छ: गणपति मंदिर पुणे में तथा दो रायगढ़ ज़िले में स्थित हैं। अष्टविनायक की यात्रा आध्यात्मिक सुख और आनंद की प्राप्ति है।<ref>{{cite web |url=http://astrobix.com/hindudharm/post/shree-ashtavinayak-yatra-shri-siddhivinayak-siddhatek.aspx|title=अष्टविनायक |accessmonthday=30 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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भगवान श्री गणेश जल तत्व के देवता माने जाते हैं। जल पंचतत्वों या पंचभूतों में एक है। पूरे जगत की रचना पंचतत्वों से हुई है। इस प्रकार जल के साथ श्री गणेश हर जगह उपस्थित हैं। मानव जीवन जल के बिना संभव नहीं हैं। जल के बिना गति, प्रगति कुछ भी असंभव है। इसलिए श्री गणेश को मंगलमूर्ति के रुप में प्रथम पूजा जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में सृष्टि रचने वाले भगवान ब्रह्मदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में भगवान श्री गणेश अलग-अलग रुप में अवतरित होंगे। कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन और धूम्रकेतु के नाम से कलयुग में अवतार लेंगे। इसी पौराणिक महत्व से जुड़ी है महाराष्ट्र में अष्टविनायक यात्रा। विनायक भगवान गणेश का ही एक नाम है। महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के पवित्र मंदिर २० से ११० किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित है। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती है यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह मानव निर्मित न होकर इनका स्वरुप प्राकृतिक है। हर प्रतिमा का स्वरुप एक-दूसरे से अलग है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। इस क्रम में सबसे पहले मोरगांव स्थित मोरेश्वर इसके बाद क्रमश: सिद्धटेक में सिद्धिविनायक, पाली स्थित बल्लालेश्वर, महाड स्थित वरदविनायक, थेऊर स्थित चिंतामणी, लेण्याद्री स्थित गिरिजात्मज, ओझर स्थित विघ्रेश्वर, रांजणगांव स्थित महागणपति की यात्रा की जाती है। इनमें ६ गणपति मंदिर पुणे जिले में तथा २ रायगढ़ जिले में स्थित हैं। अष्ट विनायक की यह यात्रा मात्र धर्म लाभ ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक सुख, मानसिक शांति और आनंद देती है।
भगवान श्री गणेश जल तत्व के [[देवता]] माने जाते हैं। [[जल]] पंचतत्वों या पंचभूतों में एक है। पूरे जगत की रचना पंचतत्वों से हुई है। इस प्रकार जल के साथ श्री गणेश हर जगह उपस्थित हैं। मानव जीवन जल के बिना संभव नहीं है। जल के बिना गति, प्रगति कुछ भी असंभव है। इसलिए गणेश को मंगलमूर्ति के रूप में प्रथम [[पूजा]] जाता है। [[हिन्दू धर्म]] के ग्रंथों में सृष्टि रचने वाले भगवान ब्रह्मदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में भगवान गणेश अलग-अलग रूप में अवतरित होंगे। कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन और धूम्रकेतु के नाम से कलयुग में [[अवतार]] लेंगे। इसी पौराणिक महत्व से जुड़ी है महाराष्ट्र में अष्टविनायक यात्रा। 'विनायक' भगवान गणेश का ही एक नाम है।
==आठ पीठ==
[[महाराष्ट्र]] में [[पुणे]] के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और [[इतिहास]] है। इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती हैं, यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं। हर प्रतिमा का स्वरूप एक-दूसरे से अलग है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। अष्टविनायक दर्शन कीशास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है-
#[[मयूरेश्वर]] या मोरेश्वर - मोरगाँव
#[[सिद्धटेक]] या सिद्धिविनायक - करजत तहसील, अहमदनगर
#[[बल्लालेश्वर]] - पाली गाँव, रायगढ़
#[[वरदविनायक]] - कोल्हापुर, रायगढ़
#[[चिंतामणी]] - थेऊर गाँव, पुणे
#[[गिरिजात्मज अष्टविनायक]] - लेण्याद्री गाँव, पुणे
#[[विघ्रेश्वर अष्टविनायक]] - ओझर
#[[महागणपति]] - राजणगाँव
==प्राचीनता==
'अष्टविनायक' के ये सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण, जो [[हिन्दू धर्म]] के पवित्र ग्रंथों का समूह हैं, में किया गया है। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प बहुत सुंदर है, जिसे संभाल कर रखा गया है और समयानुसार उसका नवीनीकरण भी किया गया है। विशेष रूप से [[महाराष्ट्र]] में [[पेशवा]] शासन काल के दौरान, जो संयोग से गणपति के उत्कट [[भक्त]] थे, इन मंदिरों का बहुत ही अच्छी प्रकार से रख-रखाव किया गया। प्रत्येक [[हिन्दू]] के जीवन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि अनंत आनंद और भाग्य प्राप्त करने के लिए वह अपने जीवनकाल में एक बार 'अष्टविनायक' के आठ मंदिरों की यात्रा अवश्य कर ले।


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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://religion.bhaskar.com/2010/04/08/ashtavinayak-852842.html आस्था के आठ रूप - श्रीअष्टविनायक]
==संबंधित लेख==
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Revision as of 06:11, 30 January 2013

अष्टविनायक से अभिप्राय है- "आठ गणपति"। यद्यपि इस शब्द का उपयोग संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में फैले हुए आठ मंदिरों की जानी मानी तीर्थयात्रा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं। ये दैत्य प्रवृत्तियों के उन्मूलन हेतु उसी प्रकार के ईश्वरीय अवतार हैं, जिस प्रकार श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के थे।

पौराणिक महत्त्व

पौराणिक महत्व से संबंध रखने वाली 'अष्टविनायक यात्रा' महाराष्ट्र में पुणे के समीप स्थित है। मंदिरों का पौराणिक महत्व एवं इतिहास पूर्ण रूप से ज्ञात होता है और यहाँ विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती है, अर्थात यह मूर्तियाँ स्वयं प्रकट हुई हैं और इनका स्वरूप प्राकृतिक माना गया है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही 'अष्टविनायक की यात्रा' भी की जाती है। इनमें से छ: गणपति मंदिर पुणे में तथा दो रायगढ़ ज़िले में स्थित हैं। अष्टविनायक की यात्रा आध्यात्मिक सुख और आनंद की प्राप्ति है।[1]

भगवान श्री गणेश जल तत्व के देवता माने जाते हैं। जल पंचतत्वों या पंचभूतों में एक है। पूरे जगत की रचना पंचतत्वों से हुई है। इस प्रकार जल के साथ श्री गणेश हर जगह उपस्थित हैं। मानव जीवन जल के बिना संभव नहीं है। जल के बिना गति, प्रगति कुछ भी असंभव है। इसलिए गणेश को मंगलमूर्ति के रूप में प्रथम पूजा जाता है। हिन्दू धर्म के ग्रंथों में सृष्टि रचने वाले भगवान ब्रह्मदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में भगवान गणेश अलग-अलग रूप में अवतरित होंगे। कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन और धूम्रकेतु के नाम से कलयुग में अवतार लेंगे। इसी पौराणिक महत्व से जुड़ी है महाराष्ट्र में अष्टविनायक यात्रा। 'विनायक' भगवान गणेश का ही एक नाम है।

आठ पीठ

महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएँ स्वयंभू मानी जाती हैं, यानि यह स्वयं प्रगट हुई हैं। यह मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं। हर प्रतिमा का स्वरूप एक-दूसरे से अलग है। इन पवित्र प्रतिमाओं के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा भी की जाती है। अष्टविनायक दर्शन कीशास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है-

  1. मयूरेश्वर या मोरेश्वर - मोरगाँव
  2. सिद्धटेक या सिद्धिविनायक - करजत तहसील, अहमदनगर
  3. बल्लालेश्वर - पाली गाँव, रायगढ़
  4. वरदविनायक - कोल्हापुर, रायगढ़
  5. चिंतामणी - थेऊर गाँव, पुणे
  6. गिरिजात्मज अष्टविनायक - लेण्याद्री गाँव, पुणे
  7. विघ्रेश्वर अष्टविनायक - ओझर
  8. महागणपति - राजणगाँव

प्राचीनता

'अष्टविनायक' के ये सभी आठ मंदिर अत्यंत पुराने और प्राचीन हैं। इन सभी का विशेष उल्लेख गणेश और मुद्गल पुराण, जो हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों का समूह हैं, में किया गया है। इन मंदिरों का वास्तुशिल्प बहुत सुंदर है, जिसे संभाल कर रखा गया है और समयानुसार उसका नवीनीकरण भी किया गया है। विशेष रूप से महाराष्ट्र में पेशवा शासन काल के दौरान, जो संयोग से गणपति के उत्कट भक्त थे, इन मंदिरों का बहुत ही अच्छी प्रकार से रख-रखाव किया गया। प्रत्येक हिन्दू के जीवन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि अनंत आनंद और भाग्य प्राप्त करने के लिए वह अपने जीवनकाल में एक बार 'अष्टविनायक' के आठ मंदिरों की यात्रा अवश्य कर ले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अष्टविनायक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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