चित्रावली -उसमान: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
|||
Line 4: | Line 4: | ||
<blockquote><poem>आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा। | <blockquote><poem>आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा। | ||
देखत | देखत जगत् चला सब जाई । एक वचन पै अमर रहाई। | ||
वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं। | वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं। | ||
मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए।</poem></blockquote> | मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए।</poem></blockquote> |
Latest revision as of 14:05, 30 June 2017
चित्रावली नाम की पुस्तक उसमान ने सन 1022 हिजरी अर्थात् 1613 ईसवी में लिखी थी। उसमान शाह निज़ामुद्दीन चिश्ती की शिष्य परंपरा में 'हाजी बाबा' के शिष्य थे।
- अपनी इस पुस्तक के आरंभ में कवि ने स्तुति के उपरांत पैग़म्बर और चार ख़लीफ़ों की, बादशाह जहाँगीर की तथा शाह निज़ामुद्दीन और हाजी बाबा की प्रशंसा लिखी है। उसके आगे गाजीपुर नगर का वर्णन करके कवि ने अपना परिचय देते हुए लिखा है कि -
आदि हुता विधि माथे लिखा । अच्छर चारि पढ़ै हम सिखा।
देखत जगत् चला सब जाई । एक वचन पै अमर रहाई।
वचन समान सुधा जग नाहीं । जेहि पाए कवि अमर रहाहीं।
मोहूँ चाउ उठा पुनि हीए । होउँ अमर यह अमरित पीए।
- कवि उसमान ने इस रचना में मलिक मुहम्मद जायसी का पूरा अनुकरण किया है। जो विषय जायसी ने अपनी पुस्तक में रखे हैं, उन विषयों पर उसमान ने भी कुछ-न-कुछ कहा है। कहीं-कहीं तो शब्द और वाक्य विन्यास भी वही हैं। पर विशेषता यह है कि कहानी बिल्कुल कवि की कल्पित है, जैसा कि कवि ने स्वयं कहा है
"कथा एक मैं हिए उपाई। कहत मीठ और सुनत सोहाई।"
|
|
|
|
|