प्राणसंकली: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:27, 19 May 2015

प्राणसंकली चौरंगीनाथ द्वारा रचित है। इस कृति में 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' संकलित हैं। इसमें चौरंगीनाथ ने "सालिवाहन घरे हमरा जनम उतपति...", "श्री गुरु मछन्द्रनाथ प्रसादे सिद्ध चौरंगीनाथ ज्योति-ज्योति समाय" तथा "मछन्द्रनाथ गुरु अम्हारा गोरखनाथ भाई" आदि के कथनों के द्वारा अपने सम्बन्ध में कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ दी हैं। इनके आधार पर चौरंगीनाथ तथा 'प्राणसंकली' के रचना काल का अनुमान किया जा सकता है।[1]

  • 'प्राणसंकली' की रचना का उद्देश्य बाहर और भीतर व्याप्त माया को नष्ट करना है। इस रचना में आदि से अंत तक सिद्ध संकेतों का उल्लेख हुआ है। यह सिद्ध संकेत ज्ञान की प्राप्ति और अज्ञान के विनाश के मूल साधन हैं।
  • पिण्ड में ब्रह्माण्ड की स्थिति की ओर संकेत करते हुए चौरंगीनाथ आत्मदर्शन की प्रेरणा देते हैं तथा शरीर रचना, नाड़ी चक्र आदि का उल्लेख करते हुए यौगिक क्रियाओं का उपदेश देते हैं।[1]
  • शरीर की आदिम अवस्था के अष्टकुल नाग, अष्ट पाताल और चतुर्दश भवन हैं। सात द्वीप, सात सागर, सात सरिताएँ, सात पाताल और सात दुर्ग तथा पंच कुल उसी के आश्रित हैं। ज्ञान, विज्ञान, जीव, योनियाँ अनेक नाम रूपों में इसी 'काय मध्य' में वर्तमान है। शरीर के विभिन्न अंगों में भी सिद्धों की रंगशाला है।
  • जिह्वामूल, दंतपटी और ताल के ऊपर गगन-गंगा है, दूसरी ओर यमुना है और इन दोनों के सम्मिलित केन्द्र पर त्रिवेणी स्थित है। साधक इसी त्रिवेणी में स्नान कर मुक्त होते हैं। इसके ऊपर शून्य (ब्रह्माण्ड) है और यहीं मन और पवन का संयोग होता है, जिसे चौरंगीनाथ ने पिण्ड में ब्रह्माण्ड का सिद्धांत कहा है।
  • साधना के सम्बंध में चौरंगीनाथ कहते हैं कि साधना के द्वारा ब्रह्माग्नि स्फुटित होता है और वह षट्चक्रों को बेधती हुए ब्रह्म-मण्डल में प्रवेश करती है। इसके पश्चात् वह गगन को बेधती हुई अंत में गगनगुहा में प्रवेश कर सहज आनन्द और मुक्ति के मुख का कारण बनती है।[1]
  • 'प्राणसंकली' के द्वारा सिद्धों की साधना का अच्छा परिचय मिलता है। हिन्दी के संत कवियों पर सिद्धों की परम्परा के प्रभाव के अध्ययन में 'प्राणसंकली' एक उपयोगी कृति है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 355 |
  2. सहायक ग्रंथ- पुरातत्त्व निबन्धावली: महापण्डित राहुल सांकृत्यायन; हिन्दी काव्यधारा: महापण्डित राहुल सांकृत्यायन; नाथ सम्प्रदाय: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी; नाथ सिद्धों की बानियाँ: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी; योग प्रवाह: पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल

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