गंगोत्री: Difference between revisions

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Revision as of 06:27, 17 August 2016

गंगोत्री
विवरण गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। केदारखंड के चारों धामों में यमुनोत्री की यात्रा के पश्चात गंगोत्री की यात्रा करने का विधान है।
राज्य उत्तराखंड
ज़िला उत्तरकाशी
मार्ग स्थिति यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है।
कब जाएँ अप्रैल से नवंबर
कैसे पहुँचें बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा गंगोत्री तक की दूरी 229 किमी है।
हवाई अड्डा देहरादून स्थित जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। जिसकी दूरी 226 किमी है।
यातायात ऑटो, बस, कार, रिक्शा आदि।
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह आदि।
एस.टी.डी. कोड 01377
ए.टी.एम लगभग सभी
संबंधित लेख गंगा नदी, भगीरथ, यमुनोत्री आदि।


अन्य जानकारी गंगोत्री भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है। जहाँ कहा जाता है कि शिव ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है।
अद्यतन‎

गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। केदारखंड के चारों धामों में यमुनोत्री की यात्रा के पश्चात गंगोत्री की यात्रा करने का विधान है। गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं। गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है। तीर्थ यात्रा करने का समय अप्रैल से नवंबर तक के बीच है।

पौराणिक संदर्भ

यहाँ पर शंकराचार्य ने गंगा देवी की एक मूर्ति स्थापित की थी। जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां 18वीं शती ई. में एक गुरखा अधिकारी ने मंदिर का निर्माण करा दिया है। इसके निकट भैरवनाथ का एक मंदिर है। इसे भगीरथ का तपस्थल भी कहते हैं। जिस शिला पर बैठकर उन्होंने तपस्या की थी वह भगीरथ शिला कहलाती है। उस शिला पर लोग पिंडदान करते हैं। गंगोत्री में सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर अनेक कुंड हैं।

भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है। जहां कहा जाता है कि शिव ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हुई 30-35 फुट नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह प्रताप नाला गौरीकुंड कहलाता है। इसके बीच में एक शिवलिंग है जिसके ऊपर प्रपात के बीच का जल गिरता रहता है।

गंगा का उद्गम

परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया।

यद्यपि जनसाधारण के बीच यही माना जाता है कि गंगा यहीं से निकली हैं किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत में है। वहाँ गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है।


{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- गंगा नदी

thumb|गंगोत्री|left


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