पणीक्कर, के. एम.: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ") |
||
Line 39: | Line 39: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''कावलम माधव पणिक्कर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''K. M. Panikkar'', जन्म: [[3 जून]], [[1895]] त्रावणकोर; मृत्यु: [[10 दिसंबर]], [[1963]] [[मैसूर]]) [[भारत]] के जानेमाने इतिहासकार, राजनीतिज्ञ, राजनायिक, पत्रकार और | '''कावलम माधव पणिक्कर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''K. M. Panikkar'', जन्म: [[3 जून]], [[1895]] त्रावणकोर; मृत्यु: [[10 दिसंबर]], [[1963]] [[मैसूर]]) [[भारत]] के जानेमाने इतिहासकार, राजनीतिज्ञ, राजनायिक, पत्रकार और विद्वान् थे। वे सरदार के. एम. पणिक्कर के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। पणिक्कर के अनुसार- "राजनयज्ञ एक देश का दूसरे देश में स्थित [[आँख]] और कान है।" | ||
==शिक्षा== | ==शिक्षा== | ||
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने वाले पणिक्कर ने [[लंदन]] के मिड्ल टेंपल से बार के लिए अध्ययन किया और [[भारत]] लौटकर [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़]] तथा [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] में अध्यापन किया। | ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने वाले पणिक्कर ने [[लंदन]] के मिड्ल टेंपल से बार के लिए अध्ययन किया और [[भारत]] लौटकर [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़]] तथा [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] में अध्यापन किया। |
Latest revision as of 14:54, 6 July 2017
पणीक्कर, के. एम.
| |
पूरा नाम | कावलम माधव पणिक्कर |
जन्म | 3 जून, 1895 |
जन्म भूमि | त्रावणकोर |
मृत्यु | 10 दिसंबर, 1963 |
मृत्यु स्थान | मैसूर |
कर्म-क्षेत्र | राजनीतिज्ञ, राजनायिक, लेखक, संपादक |
विद्यालय | ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी |
विशेष योगदान | ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने वाले पणिक्कर ने लंदन के मिड्ल टेंपल से बार के लिए अध्ययन किया और भारत लौटकर अलीगढ़ तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | उन्होंने पटियाला रियासत के विदेश मंत्री तथा बीकानेर रियासत के विदेशी मंत्री और बाद में मुख्यमंत्री (1944-47) के रूप में भी काम किया। |
कावलम माधव पणिक्कर (अंग्रेज़ी: K. M. Panikkar, जन्म: 3 जून, 1895 त्रावणकोर; मृत्यु: 10 दिसंबर, 1963 मैसूर) भारत के जानेमाने इतिहासकार, राजनीतिज्ञ, राजनायिक, पत्रकार और विद्वान् थे। वे सरदार के. एम. पणिक्कर के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। पणिक्कर के अनुसार- "राजनयज्ञ एक देश का दूसरे देश में स्थित आँख और कान है।"
शिक्षा
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त करने वाले पणिक्कर ने लंदन के मिड्ल टेंपल से बार के लिए अध्ययन किया और भारत लौटकर अलीगढ़ तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्यापन किया।
कार्यक्षेत्र
1925 में वह पत्रकारिता की ओर मुड़े और द हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक बने। नरेंद्र मंडल[1] के चांसलर के सचिव के रूप में काम करते हुए भारतीय रजवाड़ों की सेवा के दौरान उन्होंने राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया। उन्होंने पटियाला रियासत के विदेश मंत्री तथा बीकानेर रियासत के विदेशी मंत्री और बाद में मुख्यमंत्री (1944-47) के रूप में भी काम किया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद उन्हें चीन (1948-52), मिस्र (1952-53) और फ़्रांस (1956-59) का राजदूत बनाया गया। जीवन के उत्तरार्ध में वह पुन: शिक्षण की ओर लौटे तथा जीवनपर्यंत मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे। पणिक्कर द्वारा मालाबार[2] में पुर्तग़ालियों तथा डचों पर अध्ययन, विशेषकर उनकी कृति 'एशिया ऐंड वेस्टर्न डॉमिनेन्स' (1953) से एशिया पर यूरोपीय प्रभाव के प्रति उनकी रुचि परिलक्षित होती है। 'टू चाइनाज़' (1955) से साम्यवादी चीन के प्रति उनकी सहानभूति का पता चलता है। उन्होंने नाटक और उपन्यास भी लिखे हैं।
राजनयज्ञ
भारत के आधुनिक राजनयज्ञों में सरदार के.एम. पणिक्कर के नाम का उल्लेख अवश्य किया जाता है। पणिक्कर चीन में लम्बे समय तक भारत के राजदूत रहे। उनका मानना था कि राजनय का जन्म यूरोप में आधुनिक राज्यों के जन्म से सम्बन्धित है। राजनय की परिभाषा देते हुए पणिक्कर ने कहा- "अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रयुक्त राजनय अपने हितों को दूसरे देशों से अग्रिम रखने की एक कला है।" पणिक्कर के अनुसार राजनयज्ञ "एक देश का दूसरे देश में स्थित आँख और कान है।" कोई भी देश अपने राजनयज्ञों के माध्यम से दूसरे देश की घटनाओं, नीतियों और दृष्टिकोण के बारे में जानकारी प्राप्त कर अपनी विदेश नीति को आवश्यक मोड़ देता रहता है।
बहुत-से विचारकों ने चातुर्य, कुशलता, कपट आदि को राजनयिक गुण माना है जबकि पणिक्कर के अनुसार धूर्तता, कपट आदि से पूर्ण राजनय अपने देश के प्रति दूसरे देशों की शुभ कामना प्राप्त करने की दृष्टि से प्रेरित होता है और कपट आदि इस उद्देश्य के मार्ग में खतरनाक साधन है। दूसरे देश की शुभकमाना, प्राप्ति के लक्ष्य की पूर्ति चार प्रकार से अधिक अच्छी तरह हो सकती है। दूसरे देश उस देश की नीतियों को ठीक प्रकार से समझें और उसके प्रति सम्मान की भावना रखें, वह देश दूसरे देशों की जनता के न्यायोचित हितों को समझे एवं सर्वोपरि माने तथा वह ईमानदारी से व्यवहार करे। आप बहुत से लोगों को सदा के लिए धोखे में नहीं रख सकते। जब देश की नीति की असलियत जाहिर हो जायेगी तो विश्व-समाज में उस देश के स्तर को धक्का पहुंचेगा। पणिक्कर का मत है कि व्यक्तिगत जीवन की भाँति अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में भी ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चेंबर ऑफ़ प्रिंसेज़, भारतीय रजवाड़ों के शासकों का संगठन
- ↑ दक्षिण भारत