शिव के अवतार: Difference between revisions
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*[[वेद|वेदों]] में [[शिव]] का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं। | *[[वेद|वेदों]] में [[शिव]] का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं। |
Revision as of 08:37, 4 April 2010
शिव के अवतार / Avtar of Shiva
अर्धनारीश्वर
Ardhnarishwar|thumb|180px
- वेदों में शिव का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं।
- विष्णु की भांति शिव के भी अनेक अवतारों का वर्णन पुराणों में प्राप्त होता है।
- शिव की महत्ता पुराणों के अन्य सभी देवताओं में सर्वाधिक है। जटाजूटधारी, भस्म भभूत शरीर पर लगाए, गले में नाग, रुद्राक्ष की मालाएं, जटाओं में चंद्र और गंगा की धारा, हाथ में त्रिशूल एवं डमरू, कटि में बाघम्बर और नंगे पांव रहने वाले शिव कैलास धाम में निवास करते हैं।
- पार्वती उनकी पत्नी अथवा शक्त्ति है।
- गणेश और कार्तिकेय के वे पिता हैं।
- शिव भक्त्तों के उद्धार के लिए वे स्वयं दौड़े चले आते हैं। सुर-असुर और नर-नारी—वे सभी के अराध्य हैं।
- शिव की पहली पत्नी सती दक्षराज की पुत्री थी, जो दक्ष-यज्ञ में आत्मदाह कर चुकी थी। उसे अपने पिता द्वारा शिव का अपमान सहन नहीं हुआ था। इसी से उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।
- 'सती' शिव की शक्त्ति थी। सती के पिता दक्षराज शिव को पसंद नहीं करते थे। उनकी वेशभूषा और उनके गण सदैव उन्हें भयभीत करते रहते थे। एक बार दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और शिव का अपमान करने के लिये शिव को निमन्त्रण नहीं भेजा। सती बिना बुलाए पिता के यज्ञ में गई। वहां उसे अपमानित होना पड़ा और अपने जीवन का मोह छोड़ना पड़ा। उसने आत्मदाह कर लिया। जब शिव ने सती दाह का समाचार सुना तो वे शोक विह्वल होकर क्रोध में भर उठे। अपने गणों के साथ जाकर उन्होंने दक्ष-यज्ञ विध्वंस कर दिया। वे सती का शव लेकर इधर-उधर भटकने लगे। तब ब्रह्मा जी के आग्रह पर विष्णु ने सती के शव को काट-काटकर धरती पर गिराना शुरू किया। वे शव-अंग जहां-जहां गिरे, वहां तीर्थ बन गए। इस प्रकार शव-मोह से शिव मुक्त्त हुए।
- बाद में तारकासुर वध के लिए शिव का विवाह हिमालय पुत्री उमा (पार्वती) से कराया गया। परन्तु शिव के मन में काम-भावना नहीं उत्पन्न हो सकी। तब 'कामदेव' को उनकी समाधि भंग करने के लिए भेजा गया। परंतु शिव ने कामदेव को ही भस्म कर दिया। बहुत बाद में देवगण शिव पुत्र—गणपति और कार्तिकेय को पाने में सफल हुए तथा तारकासुर का वध हो सका।
- शिव के सर्वाधिक प्रसिद्ध अवतारों में अर्द्धनारीश्वर अवतार का उल्लेख मिलता है। ब्रह्मा ने सृष्टि विकास के लिए इसी अवतार से संकेत पाकर मैथुनी-सृष्टि का शुभारम्भ कराया था।
- शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों का वर्णन मिलता है।
- उनमें
- महाकाल,
- तारा,
- भुवनेश,
- षोडश,
- भैरव,
- छिन्नमस्तक गिरिजा,
- धूम्रवान,
- बगलामुखी,
- मातंग और
- कमल नामक अवतार हैं।
- भगवान शंकर के ये दसों अवतार तन्त्र शास्त्र से सम्बन्धित हैं। ये अद्भुत शक्त्तियों को धारण करने वाले हैं।
- शिव के अन्य ग्यारह अवतारों में
- कपाली,
- पिंगल,
- भीम,
- विरुपाक्ष,
- विलोहित,
- शास्ता,
- अजपाद,
- आपिर्बुध्य,
- शम्भु,
- चण्ड तथा
- भव का उल्लेख मिलता है। ये सभी सुख देने वाले शिव रूप हैं। दैत्यों के संहारक और देवताओं के रक्षक हैं।
- इन अवतारों के अतिरिक्त्त शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यनाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है।
- शिव के बारह ज्योतिर्लिंग भी अवतारों की ही श्रेणी में आते हैं। ये बारह ज्योतिर्लिंग हैं-
- सौराष्ट में ‘सोमनाथ’,
- श्रीशैल में ‘मल्लिकार्जुन’,
- उज्जयिनी में ‘महाकालेश्वर’,
- ओंकार में ‘अम्लेश्वर’,
- हिमालय में ‘केदारनाथ’,
- डाकिनी में ‘भीमेश्वर’,
- काशी में ‘विश्वनाथ’,
- गोमती तट पर ‘त्र्यम्बकेश्वर’,
- चिताभूमि में ‘वैद्यनाथ’,
- दारुक वन में ‘नागेश्वर’,
- सेतुबन्ध में ‘रामेश्वर’ और
- शिवालय में ‘घुश्मेश्वर’।
- अन्य देवगण—पुराणों में ब्रह्मा, वरुण, कुबेर, वायु, सूर्य, यमराज, अग्नि, मरुत, चन्द्र, नर-नारायण आदि देवताओं के अवतारों का वर्णन बहुत कम संख्या में है। उनके प्रसंग प्रायः इन्द्र के साथ ही आते हैं।
वीथिका
-
भूतेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Bhuteshwar Mahadev Temple, Mathura -
गोकरन नाथ महादेव, मथुरा
Gokaran Nath Mahadeva, Mathura -
गर्तेश्वर महादेव, मथुरा
Garteshwar Mahadev Temple, Mathura -
रंगेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
Rangeshwar Mahadev Temple, Mathura