लॉर्ड मिण्टो द्वितीय: Difference between revisions
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Revision as of 10:37, 14 February 2011
लॉर्ड मिण्टो द्वितीय (1845-1914 ई.), लॉर्ड कर्ज़न के बाद 1905 से 1910 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। वह लॉर्ड मिण्टो प्रथम का प्रपौत्र था। इसका पूरा नाम गिलबर्ट जॉन एलिएट मिण्टो था, जिसका जन्म 9 जुलाई, 1845 को लन्दन, इंग्लैण्ड में हुआ और मृत्यु 1 मार्च 1914 में, मिण्टो रॉक्सबर्ग, स्कॉटलैण्ड में हुई। लॉर्ड कर्ज़न ने भारत में जो संकटपूर्ण स्थित उत्पन्न कर दी थी, उसका सामना करने में तथा तत्कालीन भारतमंत्री लॉर्ड जॉन मार्ले के साथ मिल-जुलकर कार्य करने में उसने काफ़ी युक्ति कौशल का परिचय दिया। लॉर्ड कर्ज़न और प्रधान सेनापति लॉर्ड किचनर एक-दूसरे से झगड़ा कर बैठे थे। उसने लॉर्ड किचनर से झगड़ा समाप्त किया और अफ़ग़ानिस्तान के अमीर के सम्बन्धों में काफ़ी सुधार किया। अमीर उससे मिलने के लिए कलकत्ता आया।
भारत का वाइसराय
यह (1898-1905 ई.) तक कनाडा का गवर्नर-जनरल तथा (1905-1910 ई.) तक भारत का वाइसराय रहा। भारत में इसने एवं इसके साथ लॉर्ड जॉन मॉर्ले ने मॉर्ले मिण्टो सुधार अधिनियम (1909) प्रायोजित किया। इस अधिनियम से सरकार में भारतीय प्रतिनिधित्व में मामूली वृद्धि की गई, लेकिन हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मण्डल बनाने के कारण भारतीय राष्ट्रवादियों ने इसकी आलोचना की, क्योंकि उनका विश्वास था कि इससे ब्रिटिश शासन के लिए रास्ता साफ़ करने के लिए भारतीयों में दरार पैदा की गई है।
जीविका साधन
कैम्ब्रिज़ के ईटन एवं ट्रनिटी कॉलेज में शिक्षित मिण्टो स्कॉट्स गार्डस में सेवारत रहा(1867-70), फिर कुछ समय के लिए घुड़सवारी को अपनी आजीविका साधन बनाया और बाद में स्पेन एवं तुर्की में समाचार पत्र संवाददाता (1874-77) रहा। उसने 1833 में सेवा सचिव के रूप में कनाडा जाने से पहले द्वितीय अफ़ग़ान युद्ध (1879) में और मिस्र अभियान में हिस्सा लिया। 1886 में वह इंग्लैण्ड लौट गया, जहाँ उसे 1891 में विरासत में पिता की उपाधियाँ मिलीं। 1898 में कनाडा का गवर्नर-जनरल नियुक्त किए जाने पर उसने कनाडा के प्रधानमंत्री सर विलफ़्रिड लौरिए और ब्रिटिश औपनिवेशिक मंत्री जोसेफ़ चेम्बरलिन के बीच के विवाद को कम करने में भूमिका निभाई।
राजनीतिक सुधार
1905 में मिण्टो को भारत का वाइसराय और मॉर्ले को राज्य सचिव नियुक्त किया गया। ये दोनों इस बात पर सहमत थे कि उभरते राष्ट्र्रवाद पर क़ाबू पाने, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी नेताओं को मज़बूत बनाने और शिक्षित भारतीयों की संतुष्टि के लिए कुछ राजनीतिक सुधार आवश्यक हैं। परिणामस्वरूप राज्य सचिव की परिषद में दो भारतीय सदस्यों और वाइसराय की कार्यपरिषद में एक भारतीय की नियुक्ति की गई। विधायी परिषद में भू एवं वाणिज्यिक हितों एवं मुसलमानों के बेहतर प्रतिनिधित्व को सुरक्षित करने की मिण्टो की इच्छा के फलस्वरूप हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग-अलग निर्वाचक मण्डलों की स्थापना हुई। उन्होंने कांग्रेस के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में मुस्लिम लीग की स्थापना को भी प्रोत्साहित किया। उनके आलोचकों ने इसे फूट डालो और राज करो की नीति के हिस्से के रूप में देखा, जिसे भारत के विभाजन के लिए दोषी माना जाता है।
मिण्टो ने क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय और अजीत सिंह से निपटने के लिए बिना मुक़दमा चलाए ही निर्वासन करने का सरकार का अधिकार बहाल किया और ब्रिटिश शासन के सशस्त्र विरोध की वक़ालत करने वालों के ख़िलाफ़ कड़े उपाय किए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-363
- (पुस्तक 'भारत ज्ञानकोश') पृष्ठ संख्या-354
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