पणि: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - ")</ref" to "</ref") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[ऋग्वेद]] में पणि नाम से ऐसे व्यक्ति अथवा समूह का बोध होता है, जो कि धनी है किन्तु [[देवता|देवताओं]] का [[यज्ञ]] नहीं करता तथा [[पुरोहित|पुरोहितों]] को [[दक्षिणा]] नहीं देता। अतएव यह वेदमार्गियों की घृणा का पात्र है। देवों को पणियों के ऊपर आक्रमण करने के लिए कहा गया है। आगे यह उल्लेख उनकी हार तथा वध के साथ हुआ है। कुछ परिच्छेदों में पणि [[पुराण|पौराणिक]] [[दैत्य]] हैं, जो कि स्वर्गीय गायों अथवा आकाशीय [[जल]] को रोकते हैं। उनके पास [[इन्द्र]] दूती सरमा भेजी जाती है।<ref>ऋग्वेद 10.108</ref> ऋग्वेद<ref>ऋग्वेद (8.66, 10; 7.6, 2 | [[ऋग्वेद]] में पणि नाम से ऐसे व्यक्ति अथवा समूह का बोध होता है, जो कि धनी है किन्तु [[देवता|देवताओं]] का [[यज्ञ]] नहीं करता तथा [[पुरोहित|पुरोहितों]] को [[दक्षिणा]] नहीं देता। अतएव यह वेदमार्गियों की घृणा का पात्र है। देवों को पणियों के ऊपर आक्रमण करने के लिए कहा गया है। आगे यह उल्लेख उनकी हार तथा वध के साथ हुआ है। कुछ परिच्छेदों में पणि [[पुराण|पौराणिक]] [[दैत्य]] हैं, जो कि स्वर्गीय गायों अथवा आकाशीय [[जल]] को रोकते हैं। उनके पास [[इन्द्र]] दूती सरमा भेजी जाती है।<ref>ऋग्वेद 10.108</ref> ऋग्वेद<ref>ऋग्वेद (8.66, 10; 7.6, 2</ref> में [[दस्यु]], मृधवाक् एवं ग्रथिन के रूप में भी इनका वर्णन है। | ||
==पणि कौन थे?== | ==पणि कौन थे?== |
Latest revision as of 12:51, 27 July 2011
ऋग्वेद में पणि नाम से ऐसे व्यक्ति अथवा समूह का बोध होता है, जो कि धनी है किन्तु देवताओं का यज्ञ नहीं करता तथा पुरोहितों को दक्षिणा नहीं देता। अतएव यह वेदमार्गियों की घृणा का पात्र है। देवों को पणियों के ऊपर आक्रमण करने के लिए कहा गया है। आगे यह उल्लेख उनकी हार तथा वध के साथ हुआ है। कुछ परिच्छेदों में पणि पौराणिक दैत्य हैं, जो कि स्वर्गीय गायों अथवा आकाशीय जल को रोकते हैं। उनके पास इन्द्र दूती सरमा भेजी जाती है।[1] ऋग्वेद[2] में दस्यु, मृधवाक् एवं ग्रथिन के रूप में भी इनका वर्णन है।
पणि कौन थे?
- राथ के मतानुसार यह शब्द 'पण्=विनिमय' से बना है तथा पणि वह व्यक्ति है, जो कि बिना बदले के कुछ नहीं दे सकता।
- इस मत का समर्थन जिमर तथा लुड्विग ने भी किया है।
- लड्विग ने इस पार्थक्य के कारण पणिओं को यहाँ का आदिवासी व्यवसायी माना है।
- ये अपने सार्थ अरब, पश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ़्रीका में भेजते थे और अपने धन की रक्षा के लिए बराबर युद्ध करने को प्रस्तुत रहते थे।
- दस्यु अथवा दास शब्द के प्रसंगों के आधार पर उपर्युक्त मत पुष्ट होता है। किन्तु आवश्यक है कि आर्यों के देवों की पूजा न करने वाले और पुरोहितों को दक्षिणा न देने वाले इन पणियों को धर्मनिरपेक्ष, लोभी और हिंसक व्यापारी कहा जा सकता है।
- ये आर्य और अनार्य दोनों हो सकते हैं।
- हिलब्रैण्ट ने इन्हें स्ट्राबो द्वारा उल्लिखित पर्नियन जाति के तुल्य माना है। जिसका सम्बन्ध दहा (दास) लोगों से था।
- फ़िनिशिया इनका पश्चिमी उपनिवेश था, जहाँ ये भारत से व्यापारिक वस्तुएँ, लिपि, कला आदि ले गए।
|
|
|
|
|