बादामी: Difference between revisions
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छठी-सातवीं शती ई. में वातापी नगरी [[चालुक्य वंश]] की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी। पहली बार यहाँ 550 ई. के लगभग [[पुलकेशी प्रथम]] ने अपनी राजधानी स्थापित की थी। उसने वातापी में [[अश्वमेध यज्ञ]] सम्पन्न करके अपने वंश की सुदृढ़ नींव स्थापित की थी। 608 ई. में [[पुलकेशी द्वितीय]] वातापी के सिंहासन पर आसीन हुआ। यह बहुत प्रतापी राजा था। इसने प्रायः 20 वर्षों में [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[मालवा]], [[कोंकण]], [[वेंगी]] आदि प्रदेश को विजित किया। 620 ई. के आसपास [[नर्मदा नदी]] के दक्षिण में वातापी नरेश की सर्वत्र दुंदुभि बज रही थी और उसके समान यशस्वी राजा दक्षिण [[भारत]] में दूसरा नहीं था। मुसलमान इतिहास लेखक [[तबरी]] के अनुसार 625-626 ई. में [[ईरान]] के बादशाह ख़ुसरो द्वितीय ने पुलकेशियन की राज्यसभा में अपना एक दूत भेजकर उसके प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया था। | छठी-सातवीं शती ई. में वातापी नगरी [[चालुक्य वंश]] की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी। पहली बार यहाँ 550 ई. के लगभग [[पुलकेशी प्रथम]] ने अपनी राजधानी स्थापित की थी। उसने वातापी में [[अश्वमेध यज्ञ]] सम्पन्न करके अपने वंश की सुदृढ़ नींव स्थापित की थी। 608 ई. में [[पुलकेशी द्वितीय]] वातापी के सिंहासन पर आसीन हुआ। यह बहुत प्रतापी राजा था। इसने प्रायः 20 वर्षों में [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[मालवा]], [[कोंकण]], [[वेंगी]] आदि प्रदेश को विजित किया। 620 ई. के आसपास [[नर्मदा नदी]] के दक्षिण में वातापी नरेश की सर्वत्र दुंदुभि बज रही थी और उसके समान यशस्वी राजा दक्षिण [[भारत]] में दूसरा नहीं था। मुसलमान इतिहास लेखक [[तबरी]] के अनुसार 625-626 ई. में [[ईरान]] के बादशाह ख़ुसरो द्वितीय ने पुलकेशियन की राज्यसभा में अपना एक दूत भेजकर उसके प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया था। [[चित्र:Shiva-2.jpg|thumb|left|[[शिव]] के मंदिर पर नक़्क़ाशी]] शायद इसी घटना का दृश्य [[अजन्ता]] के एक चित्र (गुहा संख्या 1) में अंकित किया गया है। वातापी नगरी इस समय अपनी समृद्धी के मध्याह्न काल में थी। किन्तु 642 ई. में पल्लवनरेश [[नरसिंह वर्मन प्रथम|नरसिंह वर्मन]] ने पुलकेशियन को युद्ध में परास्त कर सत्ता का अन्त कर दिया। पुलकेशियन स्वंय भी इस युद्ध में आहत हुआ। वातापी को जीतकर नरसिंह वर्मन ने नगर में खूब लूटमार मचाई। [[पल्लव वंश|पल्लवों]] और चालुक्यों की शत्रुता इसके पश्चात भी चलती रही। 750 ई. में राष्ट्रकूटों ने वातापी तथा परिवर्ति प्रदेश पर अधिकार कर लिया। वातापी पर चालुक्यों का 200 वर्षों तक राज्य रहा। इस काल में वातापि ने बहुत उन्नति की। [[हिन्दू]], [[बौद्ध]] और [[जैन]] तीनों ही सम्पद्रायों ने अनेक मन्दिरों तथा कलाकृतियों से इस नगरी को सुशोभित किया। छठी शती के अन्त में [[मंगलेश|मंगलेश चालुक्य]] ने वातापी में एक गुहामन्दिर बनवाया था जिसकी वास्तुकला बौद्ध गुहा मन्दिरों के जैसी है। वातापी के राष्ट्रकूट नरेशों में दंन्तिदुर्ग और कृष्ण प्रथम प्रमुख हैं। कृष्ण के समय में [[एलोरा की गुफ़ाएं|एलौरा]] का जगत प्रसिद्ध मन्दिर बना था किन्तु राष्ट्रकूटों के शासनकाल में वातापी का चालुक्यकालीन गौरव फिर न उभर सका और इसकी ख्याति धीरे-धीरे विलुप्त हो गई। | ||
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Revision as of 12:27, 24 September 2011
thumb|यील्लाम्मा मंदिर, बादामी बादामी नगर उत्तरी कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर) राज्य के दक्षिण-पश्चिमी भारत में है। इस नगर को प्राचीन समय में वातापी के नाम से जाना जाता था। और यह चालुक्य राजाओं की पहली राजधानी था।
इतिहास
छठी-सातवीं शती ई. में वातापी नगरी चालुक्य वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी। पहली बार यहाँ 550 ई. के लगभग पुलकेशी प्रथम ने अपनी राजधानी स्थापित की थी। उसने वातापी में अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न करके अपने वंश की सुदृढ़ नींव स्थापित की थी। 608 ई. में पुलकेशी द्वितीय वातापी के सिंहासन पर आसीन हुआ। यह बहुत प्रतापी राजा था। इसने प्रायः 20 वर्षों में गुजरात, राजस्थान, मालवा, कोंकण, वेंगी आदि प्रदेश को विजित किया। 620 ई. के आसपास नर्मदा नदी के दक्षिण में वातापी नरेश की सर्वत्र दुंदुभि बज रही थी और उसके समान यशस्वी राजा दक्षिण भारत में दूसरा नहीं था। मुसलमान इतिहास लेखक तबरी के अनुसार 625-626 ई. में ईरान के बादशाह ख़ुसरो द्वितीय ने पुलकेशियन की राज्यसभा में अपना एक दूत भेजकर उसके प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया था। [[चित्र:Shiva-2.jpg|thumb|left|शिव के मंदिर पर नक़्क़ाशी]] शायद इसी घटना का दृश्य अजन्ता के एक चित्र (गुहा संख्या 1) में अंकित किया गया है। वातापी नगरी इस समय अपनी समृद्धी के मध्याह्न काल में थी। किन्तु 642 ई. में पल्लवनरेश नरसिंह वर्मन ने पुलकेशियन को युद्ध में परास्त कर सत्ता का अन्त कर दिया। पुलकेशियन स्वंय भी इस युद्ध में आहत हुआ। वातापी को जीतकर नरसिंह वर्मन ने नगर में खूब लूटमार मचाई। पल्लवों और चालुक्यों की शत्रुता इसके पश्चात भी चलती रही। 750 ई. में राष्ट्रकूटों ने वातापी तथा परिवर्ति प्रदेश पर अधिकार कर लिया। वातापी पर चालुक्यों का 200 वर्षों तक राज्य रहा। इस काल में वातापि ने बहुत उन्नति की। हिन्दू, बौद्ध और जैन तीनों ही सम्पद्रायों ने अनेक मन्दिरों तथा कलाकृतियों से इस नगरी को सुशोभित किया। छठी शती के अन्त में मंगलेश चालुक्य ने वातापी में एक गुहामन्दिर बनवाया था जिसकी वास्तुकला बौद्ध गुहा मन्दिरों के जैसी है। वातापी के राष्ट्रकूट नरेशों में दंन्तिदुर्ग और कृष्ण प्रथम प्रमुख हैं। कृष्ण के समय में एलौरा का जगत प्रसिद्ध मन्दिर बना था किन्तु राष्ट्रकूटों के शासनकाल में वातापी का चालुक्यकालीन गौरव फिर न उभर सका और इसकी ख्याति धीरे-धीरे विलुप्त हो गई।
दर्शनीय स्थल
यहाँ छठी और सातवीं शताब्दी के ब्राह्मी एवं जैन गुफ़ा मंदिर है। ठोस चट्टानों को काटकर बनाए गए इन मंदिरों की आंतरिक सज्जा विशिष्ट है। चालुक्य काल के कई मंदिर भी यहाँ पर स्थित हैं। यह अपने पाषाण शिल्प कला के मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है।
जनसंख्या
2001 की गणना के अनुसार बादामी नगर की जनसंख्या 25,851 है।
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