प्रसून जोशी: Difference between revisions

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Revision as of 15:14, 1 October 2011

प्रसून जोशी
पूरा नाम प्रसून जोशी
जन्म 16 सितम्बर, 1968
जन्म भूमि अल्मोड़ा, उत्तराखंड
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र गीतकार, लेखक
शिक्षा एम.एस.सी, एम. बी.ए.
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्म 'तारे ज़मीं पर' के गाने 'मां...' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, शैलेंद्र सम्मान आदि
प्रसिद्धि 'दिल्ली.6’, ‘तारे जमीन पर’, ‘रंग दे बस्ती’, ‘हम तुम’ और ‘फना’ जैसी फ़िल्मों में कई सुपरहिट गाने लिखे हैं।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्रसून जोशी विज्ञापन जगत में "विज्ञापन गुरु" के नाम से विख्यात तो हैं ही इसके साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन कंपनी 'मैकऐन इरिक्सन' में कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
अद्यतन‎

'द एड गुरु ऑफ इंडिया' प्रसून जोशी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले में 16 सितम्बर 1968 को हुआ था। प्रसून जोशी का पैतृक गाँव दन्या ज़िला अल्मोड़ा है। प्रसून जोशी विज्ञापन जगत में विज्ञापन गुरु के नाम से विख्यात तो हैं ही इसके साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापन कंपनी 'मैकऐन इरिक्सन' में कार्यकारी अध्यक्ष हैं। वे इस कंपनी का एशिया महाद्वीप में सजृनात्मक निदेशक की भूमिका निभा रहे हैं। इन व्यवसायिक गतिविधियों के साथ-साथ वे संवेदनशील लेखक, बॉलीवुड में गीत और गज़लों के रचियताओं में उनका नाम शीर्ष पर है। सुपरहिट फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ के गाने ‘मां...’ के लिए उन्हें 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी मिल चुका है।

परिचय

प्रसून जोशी का जन्म अल्मोड़ा में हुआ। अल्मोड़ा में ही उनका ननिहाल भी है। प्रसून जोशी के पिता का नाम श्री देवेन्द्र कुमार जोशी और उनकी माता का नाम श्रीमती सुषमा जोशी है। उनका बचपन एवं उनकी प्रारम्भिक शिक्षा  टिहरी, गोपेश्वर, रुद्रप्रयाग, चमोली एवं नरेन्द्र नगर में हुई क्योंकि उनके पिता उत्तर प्रदेश सरकार में 'शिक्षा निदेशक' थे और उनका  कार्यकाल अधिकतर इन्हीं जगहों पर रहा। प्रसून जोशी बचपन से ही प्रकृति, सृष्टि द्वारा सृजित चीजों एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति आकर्षित रहे। इसलिए लेखन उनके स्वभाव में स्वत: ही प्रवेश कर गया। बचपन में वे खुद की हस्तलिखित पत्रिका भी निकालते थे और इस प्रकार लेखन उनका शौक बना। जहां तक गीतों की रचना का प्रश्र है उनके माता-पिता संगीत के बहुत ज्ञाता थे। जब उन्होंने उनसे संगीत विरासत में ग्रहण किया और वे उसकी बारिकियों से वाकिफ़ हुए तो फिर वो गीतों के रचनाकार बने। बड़े होकर जब प्रसून जोशी ने व्यवसायिक शिक्षा (एमबीए) पूरी की तब उन्हें लगा कि  उन्हें सृजन को दूसरे माध्यम से भी आगे बढ़ाना चाहिए। यह माध्यम विज्ञापन के अलावा दूसरा नहीं था। काम चाहे लेखन का हो या विज्ञापन का दोनों ही अपनी बात को दूसरों के दिलों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। [1]

शिक्षा

प्रसून जोशी की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा उत्तराखण्ड के गोपेश्वर एवं नरेन्द्र नगर में हुई। उन्होंने एम.एससी., के बाद एम.बी.ए. की पढ़ाई भी की।[2]

शास्त्रीय संगीत की दीक्षा

गीतकार प्रसून के लिखे गीतों से हम सब वाकिफ हैं, पर बहुत कम लोग जानते है कि वो उन्होंने उस्ताद हफीज़ अहमद खान से शास्त्रीय संगीत की दीक्षा भी ले रखी है। उनके उस्ताद उन्हें ठुमरी गायक बनाना चाहते थे। उन दिनों को याद कर प्रसून बताते हैं कि उनके पास रियाज़ का समय नही होता था, तो बाईक पर घर लौटते समय गाते हुए आते थे और उनका हेलमेट उनके लिए "अकॉस्टिक" का काम करता था।

कार्यक्षेत्र

प्रसून संगीत को अपना उपार्जन नही बना पाये। उनके पिता उन्हें प्रशासन अधिकारी बनाना चाहते थे पर ये उनका मिजाज़ नही था, तो MBA करने के बाद आखिरकार विज्ञापन की दुनिया में आकर उनकी रचनात्मकता को जमीन मिली। बचपन से उन्हें हिन्दी और उर्दू भाषा साहित्य में रूचि थी। उनके शहर रामपुर के एक पुस्तकालय में उर्दू शायरों का जबरदस्त संकलन मौजूद था। मात्र 17 साल की उम्र में उनका पहला काव्य संकलन आया। कविता अभी भी उनका पहला प्रेम है। प्रसून मानते हैं कि यदि संगीत के किसी एक घटक की बात की जाए जो आमो ख़ास सब तक पहुँचता हो और जहाँ हमने विश्व स्तर की निरंतरता बनाये रखी हो तो वो गीतकारी का घटक है। 50 के दशक से आज तक फ़िल्म जगत के गीतकारों ने गजब का काम किया है। "हम तुम", "फ़ना" और "तारे जमीन पर" जैसी फिल्मों के गीत लिख कर फ़िल्म फेयर पाने वाले प्रसून तारे ज़मीन पर के अपने सभी गीतों को अपनी बेटी ऐश्निया को समर्पित करते हैं, और बताते हैं कि किस तरह एक 80 साल के बूढे आदमी ने उनके लिखे "माँ" गीत की तारीफ करते हुए उनसे कहा था कि वो अपनी माँ को बचपन में ही खो चुके थे, गाने के बोल सुनकर उन्हें उनका बचपन याद आ गया। ए. आर. रहमान के साथ गजनी में काम कर रहे प्रसून से जब रहमान गीत को आवाज़ देने की "गुजारिश" की तो प्रसून ने बड़ी आत्मीयता से कहा कि जिस दिन आप धाराप्रवाह हिन्दी बोलने लगेंगे उस दिन मैं आपके लिए अवश्य गाऊंगा.देखते हैं वो दिन कब आता है।[3]

उपलब्धियां

राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापनों में पुरस्कार। शुभा मुदगल तथा ‘सिल्क रूट’ के ऊपर चार सुपर हिट ‘एलबम्स’ में धुन रचना के लिए पुरस्कार। फिल्म ‘लज्जा’, ‘आंखें’, ‘क्यों’ में संगीत दिया। तीन पुस्तकें प्रकाशित कीं। ‘ठण्डा मतलब कोका कोला’ एवं ‘बार्बर शॉप-ए जा बाल कटा ला’ जैसे प्रचलित विज्ञापनों हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।[4]

सम्मान

  • मशहूर गीतकार प्रसून जोशी को इस क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आज यहां 'शैलेंद्र सम्मान' प्रदान किया गया। युवा गीतकार प्रसून ने ‘दिल्ली.6’, ‘तारे जमीन पर’, ‘रंग दे बस्ती’, ‘हम तुम’ और ‘फना’ जैसी फिल्मों के लिए कई सुपरहिट गाने लिखे हैं। यह सम्मान पाने के बाद प्रसून कैफी आजमी और गुलजार की कतार में शामिल हो गये। इन लोगों को पहले शैलेंद्र सम्मान मिल चुका है।[5]
  • उन्होने कई हिंदी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं। सुपरहिट फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ के गाने ‘मां...’ के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।[6]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तराखण्डी जिंदगी की लड़ाई लडऩे में सक्षम (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2011।
  2. प्रसून जोशी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2011।
  3. मैं उस दिन गाऊँगा (हिंदी)। ।
  4. http://www.apnauttarakhand.com/prasoon-joshi/ (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2011।
  5. गीतकार प्रसून जोशी को शैलेंद्र सम्मान (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2011।
  6. प्रसून जोशी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2011।

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