नुसरत फ़तेह अली ख़ां: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
|कर्म भूमि=[[पाकिस्तान]] | |कर्म भूमि=[[पाकिस्तान]] | ||
|कर्म-क्षेत्र=संगीतकार और गायक | |कर्म-क्षेत्र=संगीतकार और गायक | ||
|मुख्य रचनाएँ= | |मुख्य रचनाएँ=दमादम मस्त क़लन्दर, छाप तिलक सब छीनी रे, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी आदि। | ||
|मुख्य फ़िल्में= | |मुख्य फ़िल्में= | ||
|विषय=[[क़व्वाली]], ग़ज़ल | |विषय=[[क़व्वाली]], ग़ज़ल | ||
Line 49: | Line 49: | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.youtube.com/watch?v=6sa85QO6pyA दमादम मस्त क़लन्दर (यू-ट्यूब)] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{संगीतकार}} | {{संगीतकार}} |
Revision as of 08:59, 31 October 2011
नुसरत फ़तेह अली ख़ां
| |
पूरा नाम | नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ |
जन्म | 13 अक्टूबर 1948 |
जन्म भूमि | फ़ैसलाबाद, पाकिस्तान |
मृत्यु | 16 अगस्त, 1997 |
मृत्यु स्थान | लंदन, इंग्लैंड |
कर्म भूमि | पाकिस्तान |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार और गायक |
मुख्य रचनाएँ | दमादम मस्त क़लन्दर, छाप तिलक सब छीनी रे, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी आदि। |
विषय | क़व्वाली, ग़ज़ल |
प्रसिद्धि | सूफ़ी भक्ति संगीत की विधा क़व्वाली के महानतम गायक थे। |
सक्रिय वर्ष | 1965–1997 |
वाद्य यंत्र | हारमोनियम |
अन्य जानकारी | फ़तेह अली ख़ाँ की सबसे बड़ी विशेषता उनका सुरीला सृजन और लगातार गाने की विलक्षण क्षमता था। फ़तेह अली ख़ाँ को दस घंटे तक लगातार गाने के लिए जाना जाता था। |
अद्यतन | 13:57, 30 अक्टूबर 2011 (IST)
|
नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ (जन्म: 13 अक्टूबर 1948, लायलपुर {वर्तमान फ़ैसलाबाद}, पाकिस्तान; मृत्यु: 16 अगस्त 1997, लंदन, इंग्लैंड) मुस्लिम सूफ़ी भक्ति संगीत की विधा क़व्वाली के महानतम गायक थे।
कला जगत में प्रवेश
1996 में उन्होंने पाया कि वह अमेरिकी मनोरंजन व्यवसाय के केंद्र में पहुँच चुके हैं। उन्होंने फ़िल्मों के लिए गाने रिकार्ड कराए, एम. टी. वी. पर आए और कई धर्मनिरपेक्ष गाने रिकार्ड किए, जिन्हें विशेष रूप से पश्चिमी श्रोताओं ने सराहा। कुछ को ऐसा लगा कि इस प्रकार का गायन सूफ़ी संगीत को जन्म देने वाली आध्यात्मिक विरासत और उनकी जन्मभूमि के लाखों प्रशंसकों के साथ विश्वासघात है, लेकिन नुसरत का मानना था कि उन्होंने कुछ भी छोड़ा नहीं और वह केवल अपने स्वर की गहराइयों को पाने की कोशिश में थे। वह ज़्यादा श्रोताओं के साथ अपनी प्रतिभा और संगीत विरासत की भागीदारी के इच्छुक रहे, फिर भी वह संभलकर चलने और अपनी आस्था से समझौता न करने के प्रति भी सतर्क रहे।
शिक्षा
उनके पिता फ़तेह अली ख़ाँ और उनके दो चाचा शास्त्रीय शैली के प्रसिद्ध क़व्वाल थे। नुसरत ने संगीत की शिक्षा अपने पिता से हासिल की, लेकिन 1964 में अपने पिता की अंत्येष्टि पर गाने के बाद ही क़व्वाली परंपरा के प्रति अपने को समर्पित किया। दो साल बाद उन्होंने अपने चाचाओं के साथ अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दी।
उत्कृष्ट क़व्वाल
1970 के दशक के शुरू में उन्होंने स्वयं को पूरे पाकिस्तान में अपने समय के उत्कृष्ट क़व्वाल के रूप में स्थापित कर दिया। 1985 में इंग्लैंड में विश्व संगीत सम्मेलन में गाने के बाद उनकी प्रतिभा की चर्चा चारों ओर फैलनी शुरू हो गई और शीघ्र ही वह नियमित रूप से यूरोप भर में प्रदर्शन करने लगे। उन्होंने पहली बार 1989 में अमेरिका का भ्रमण किया और 1992 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अतिथि कलाकार के रूप में एक साल बिताया।
विशेषता
आमतौर पर तबला, हारमोनियम और साथी गायकों की संगत में ख़ां बहुत ऊँचे सुर (पारिवारिक विशेषता) में गाते थे। उनकी आवाज़ बहुत सशक्त और अत्यंत अभिव्यंजक थी। शायद उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनका सुरीला सृजन और लगातार गाने की विलक्षण क्षमता था। उन्हें दस घंटे तक लगातार गाने के लिए जाना जाता था। हालांकि 1996 तक मधुमेह और उम्र के कारण उनकी ऊर्जा कुछ कम हो गई थी।
निधन
16 अगस्त 1997 में 49 वर्ष की आयु में हृदय गति रुक जाने से उनका निधन हो गया। उनकी असामयिक मृत्यु के कुछ ही पहले एक भारतीय फ़िल्म के लिए उनकी पहली संगीत रचना प्रदर्शित हुई थी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख