भारती का सपूत -रांगेय राघव: Difference between revisions
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'''भारती का सपूत''' प्रसिद्ध उपन्यासकार और साहित्यकार [[रांगेय राघव]] द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा [[1 जनवरी]], [[2002]] को प्रकाशित किया गया था। 'भारती का सपूत' नामक यह उपन्यास [[हिन्दी भाषा]] तथा [[साहित्य]] के आरंभिक निर्माता [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] के जीवन पर आधारित है। | '''भारती का सपूत''' प्रसिद्ध उपन्यासकार और साहित्यकार [[रांगेय राघव]] द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा [[1 जनवरी]], [[2002]] को प्रकाशित किया गया था। 'भारती का सपूत' नामक यह उपन्यास [[हिन्दी भाषा]] तथा [[साहित्य]] के आरंभिक निर्माता [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] के जीवन पर आधारित है। | ||
*हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिन्तकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' हिन्दी निर्माताओं में से एक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन पर आधारित अत्यन्त रोचक और मौलिक रचना है। | *हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिन्तकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' हिन्दी निर्माताओं में से एक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन पर आधारित अत्यन्त रोचक और मौलिक रचना है।<ref name="ab">{{cite web |url= http://pustak.org/home.php?bookid=1419|title=भारती का सपूत |accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
*भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को '''आधुनिक हिन्दी का पितामह''' माना जाता है। महाकवि जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' ने उन्हें 'भारती का सपूत' कहा था। | *भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को '''आधुनिक हिन्दी का पितामह''' माना जाता है। महाकवि जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' ने उन्हें 'भारती का सपूत' कहा था। | ||
*उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हुए, तब [[अवधी]] और [[ब्रजभाषा]] से बाहर निकलकर दैनंदनि प्रयोग की सरल [[खड़ी बोली]] का निर्माण हो रहा था। | *उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हुए, तब [[अवधी]] और [[ब्रजभाषा]] से बाहर निकलकर दैनंदनि प्रयोग की सरल [[खड़ी बोली]] का निर्माण हो रहा था। | ||
*भारतेन्दु ने विविध प्रकार की रचनाएँ देकर इसको गति प्रदान की और इसका भावी स्वरूप सुनिश्चित किया। | *भारतेन्दु ने विविध प्रकार की रचनाएँ देकर इसको गति प्रदान की और इसका भावी स्वरूप सुनिश्चित किया। | ||
*धनी परिवार की सन्तान भारतेन्दु सामन्ती जीवन की सभी अच्छाइयों और बुराइयों का शिकार थे। वे 34 वर्ष की अल्प आयु में तपेदिक से दिवंगत हो गए, परन्तु इतने समय में ही उन्होंने इतना कुछ कर दिया जो आज तक चला आ रहा है। | *धनी परिवार की सन्तान भारतेन्दु सामन्ती जीवन की सभी अच्छाइयों और बुराइयों का शिकार थे। वे 34 वर्ष की अल्प आयु में तपेदिक से दिवंगत हो गए, परन्तु इतने समय में ही उन्होंने इतना कुछ कर दिया जो आज तक चला आ रहा है। | ||
*[[भारतेन्दु हरिशचंद्र|भारतेन्दु]] का व्यक्तित्व भी बड़ा रंगीला और रोचक था। लेखक रांगेय राघव [[इतिहास]] के गहरे विद्वान और आग्रही थे, इसलिए उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' अपना चित्रण पठनीय होने के साथ ही इतिहास सम्मत और सत्य के बहुत समीप है। | *[[भारतेन्दु हरिशचंद्र|भारतेन्दु]] का व्यक्तित्व भी बड़ा रंगीला और रोचक था। लेखक रांगेय राघव [[इतिहास]] के गहरे विद्वान और आग्रही थे, इसलिए उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' अपना चित्रण पठनीय होने के साथ ही इतिहास सम्मत और सत्य के बहुत समीप है।<ref name="ab"/> | ||
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Revision as of 07:13, 24 January 2013
भारती का सपूत -रांगेय राघव
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लेखक | रांगेय राघव |
प्रकाशक | राजपाल एंड संस |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2002 |
ISBN | 81-7028-504-6 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 128 |
भाषा | हिन्दी |
प्रकार | उपन्यास |
भारती का सपूत प्रसिद्ध उपन्यासकार और साहित्यकार रांगेय राघव द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह उपन्यास 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा 1 जनवरी, 2002 को प्रकाशित किया गया था। 'भारती का सपूत' नामक यह उपन्यास हिन्दी भाषा तथा साहित्य के आरंभिक निर्माता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन पर आधारित है।
- हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिन्तकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' हिन्दी निर्माताओं में से एक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन पर आधारित अत्यन्त रोचक और मौलिक रचना है।[1]
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिन्दी का पितामह माना जाता है। महाकवि जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' ने उन्हें 'भारती का सपूत' कहा था।
- उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हुए, तब अवधी और ब्रजभाषा से बाहर निकलकर दैनंदनि प्रयोग की सरल खड़ी बोली का निर्माण हो रहा था।
- भारतेन्दु ने विविध प्रकार की रचनाएँ देकर इसको गति प्रदान की और इसका भावी स्वरूप सुनिश्चित किया।
- धनी परिवार की सन्तान भारतेन्दु सामन्ती जीवन की सभी अच्छाइयों और बुराइयों का शिकार थे। वे 34 वर्ष की अल्प आयु में तपेदिक से दिवंगत हो गए, परन्तु इतने समय में ही उन्होंने इतना कुछ कर दिया जो आज तक चला आ रहा है।
- भारतेन्दु का व्यक्तित्व भी बड़ा रंगीला और रोचक था। लेखक रांगेय राघव इतिहास के गहरे विद्वान और आग्रही थे, इसलिए उनका उपन्यास 'भारती का सपूत' अपना चित्रण पठनीय होने के साथ ही इतिहास सम्मत और सत्य के बहुत समीप है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 भारती का सपूत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।