दूर्वा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Cynodon-dactylon-1.jpg|thumb|250px|दूर्वा घास]]
'''दूर्वा''' अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। [[वर्षा]] काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा [[वर्ष]] में दो बार [[सितम्बर]]-[[अक्टूबर]] और [[फ़रवरी]]-[[मार्च]] में इसमें [[फूल]] आते है। दूर्वा सम्पूर्ण [[भारत]] में पाई जाती है।
'''दूर्वा''' अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। [[वर्षा]] काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा [[वर्ष]] में दो बार [[सितम्बर]]-[[अक्टूबर]] और [[फ़रवरी]]-[[मार्च]] में इसमें [[फूल]] आते है। दूर्वा सम्पूर्ण [[भारत]] में पाई जाती है।



Revision as of 11:15, 29 April 2013

thumb|250px|दूर्वा घास दूर्वा अथवा 'दूब' ज़मीन पर फैल कर बढ़ने वाली घास है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। इस घास का वैज्ञानिक नाम 'साइनोडान डेक्टीलान' है। यह घास औषधि के रूप में भी विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है। वर्षा काल में दूर्वा घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूर्वा सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है।

  • हिन्दू मान्यताओं में दूर्वा घास प्रथम पूजनीय भगवान श्रीगणेश को बहुत प्रिय है।
  • दूर्वा को संस्कृत में 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से भी जानते हैं।
  • हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है।
  • चाहे 'नाग पंचमी' का पूजन हो या विवाह आदि का उत्सव या फिर अन्य कोई शुभ मांगलिक अवसर, पूजन-सामग्री के रूप में दूर्वा की उपस्थिति से उस समय उत्सव की शोभा और भी बढ़ जाती है।
  • दूर्वा का पौधा ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी नम्रता को देखकर गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है-

नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब
और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।

  • भगवान गणेश की पूजा में दो, तीन या पाँच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है।
  • तीन दूर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये 'आणव'[1], 'कार्मण'[2] और 'मायिक'[3] रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।


  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भौतिक
  2. कर्मजनित
  3. माया से प्रभावित

संबंधित लेख