संदीप पांडेय: Difference between revisions
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*आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं। | *आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं। | ||
*सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार से आम जनता को निजात दिलाने के लिये आपने ''घूस को घूंसा'' नामक एक आन्दोलन आरंभ किया है। | |||
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Revision as of 02:56, 15 September 2014
संदीप पांडेय
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पूरा नाम | संदीप पाण्डेय |
जन्म | 22 जुलाई, 1965 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | सामाजिक कार्यकर्ता, प्राध्यापक |
विद्यालय | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, कॅलिफोर्निया विश्वविद्यालय |
शिक्षा | पी.एच.डी. |
पुरस्कार-उपाधि | रेमन मैगसेसे पुरस्कार |
विशेष योगदान | 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं। |
अद्यतन | 19:53, 6 जनवरी 2014 (IST)
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संदीप पाण्डेय (अंग्रेज़ी: Sandeep Pandey, जन्म: 22 जुलाई, 1965) भारत के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे डॉ. दीपक गुप्ता और वीजेपी श्रीवास्तव के साथ 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं। सम्प्रति वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी में प्राध्यापक हैं। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं।
संक्षिप्त परिचय
- संदीप पाण्डेय का जन्म 22 जुलाई, 1965 को हुआ था।
- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इस छात्र ने कॅलिफोर्निया से पी.एच.डी. की डिग्री लेने के बाद आई.आई.टी. में अध्यापन का कार्य किया। बाद में पूरा समय सामाजिक सेवा में लगाने के भाव से यह पद भार छोड़ दिया।
- सन् 2002 में 'रमन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित आई.आई.टी., कानपुर के पूर्व प्रोफेसर डॉ. संदीप पाण्डेय को ग़रीबों के उत्थान और गरीब बच्चों के लिए शिक्षा सहायता की पहल के लिए प्रतिबद्ध नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में देखा जाता है।
- गांधीवाद को मानने वाले डॉ. संदीप पाण्डेय ने लखनऊ के पास लालपुर में 'आशा' नामक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की।
- प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सभी नागरिकों को 'सूचना का अधिकार' मिले इसके लिए भी उन्होंने कार्य किया।
- स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी भ्रष्टाचार, जातिवाद, दलित शोषण के खिलाफ उन्होंने मुहिम चलाई।
- 2005 में उन्होंने दिल्ली, भारत से मुल्तान, पाकिस्तान तक 'मैत्री यात्रा' भी की।
- 1999 में पोखरन से सारनाथ तक की पैदल यात्रा परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए एक सन्देश थी।
- आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं।
- सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार से आम जनता को निजात दिलाने के लिये आपने घूस को घूंसा नामक एक आन्दोलन आरंभ किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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आदरणीय संदीप पाण्डेय जी के सानिध्य में अशोक कुमार शुक्ला