कल्याणजी आनंदजी: Difference between revisions
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कल्याणजी-आनंदजी अपनी किराने की दुकान पर नून तेल बेचते हुए ही जिंदगी गुजार देते अगर एक तंगहाल ग्राहक ने उधारी चुकाने के बदले दोनों को [[संगीत]] की तालीम देने की पेशकश न की होती। वीरजी शाह का [[परिवार]] [[कच्छ]] से [[मुंबई]] आया और आजीविका चलाने के लिए किराने की दुकान खोल ली। एक ग्राहक दुकान से सामान तो लेता था, लेकिन पैसे नहीं चुका पाता था। वीरजी ने एक दिन जब उससे तकाजा किया तो उसने उधारी चुकाने के लिए वीरजी के दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने का जिम्मा संभाला और इस तरह उधारी के पैसे से एक ऐसी संगीतकार जोड़ी की नींव पड़ी जिसने अपने संगीत से हिंदी फ़िल्म जगत को हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया। हालाँकि उधारी के संगीत के इन गुरुजी को सुर और ताल की समझ कुछ | कल्याणजी-आनंदजी अपनी किराने की दुकान पर नून तेल बेचते हुए ही जिंदगी गुजार देते अगर एक तंगहाल ग्राहक ने उधारी चुकाने के बदले दोनों को [[संगीत]] की तालीम देने की पेशकश न की होती। वीरजी शाह का [[परिवार]] [[कच्छ]] से [[मुंबई]] आया और आजीविका चलाने के लिए किराने की दुकान खोल ली। एक ग्राहक दुकान से सामान तो लेता था, लेकिन पैसे नहीं चुका पाता था। वीरजी ने एक दिन जब उससे तकाजा किया तो उसने उधारी चुकाने के लिए वीरजी के दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने का जिम्मा संभाला और इस तरह उधारी के पैसे से एक ऐसी संगीतकार जोड़ी की नींव पड़ी जिसने अपने संगीत से हिंदी फ़िल्म जगत को हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया। हालाँकि उधारी के संगीत के इन गुरुजी को सुर और ताल की समझ कुछ ख़ास नहीं थी, लेकिन उन्होंने वीरजी के पुत्रों कल्याणजी और आनंदजी में संगीत की बुनियादी समझ जरूर पैदा कर दी। इसके बाद संगीत में दोनों की रुचि बढ़ने लगी और दोनों भाई संगीत की दुनिया से जुड़ गए।<ref name="wdh">{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%B0-1080626083_1.htm |title=कल्याणजी : किराने की दुकान से संगीतकार बनने का सफर |accessmonthday=3 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेबदुनिया हिंदी |language=हिंदी }}</ref>[[चित्र:Kalyanji-Anandji-3.jpg|thumb|left|कल्याणजी-आनंदजी]] | ||
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कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी के नाम से अपना आर्केस्ट्रा ग्रुप शुरू किया और मुंबई तथा उससे बाहर अपने संगीत शो आयोजित करने लगे। इसी दौरान वे फ़िल्म संगीतकारों के संपर्क में आए और फिर दोनों भाई उस जमाने में हिंदी फ़िल्म जगत में पहुँच गए, जहाँ [[सचिन देव बर्मन]], [[मदन मोहन]], [[हेमंत कुमार]], [[नौशाद]] और रवि जैसे संगीतकारों के नाम की तूती बोलती थी।<ref name="wdh"/> | कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी के नाम से अपना आर्केस्ट्रा ग्रुप शुरू किया और मुंबई तथा उससे बाहर अपने संगीत शो आयोजित करने लगे। इसी दौरान वे फ़िल्म संगीतकारों के संपर्क में आए और फिर दोनों भाई उस जमाने में हिंदी फ़िल्म जगत में पहुँच गए, जहाँ [[सचिन देव बर्मन]], [[मदन मोहन]], [[हेमंत कुमार]], [[नौशाद]] और रवि जैसे संगीतकारों के नाम की तूती बोलती थी।<ref name="wdh"/> |
Revision as of 13:29, 1 November 2014
कल्याणजी आनंदजी
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पूरा नाम | कल्याणजी वीरजी शाह और आनंदजी वीरजी शाह |
प्रसिद्ध नाम | कल्याणजी-आनंदजी |
जन्म | कल्याणजी- 30 जून, 1928 |
जन्म भूमि | कच्छ, गुजरात |
मृत्यु | कल्याणजी- 24 अगस्त, 2000 |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म संगीत |
मुख्य फ़िल्में | छलिया (1960), कोरा काग़ज़ (1973), सरस्वतीचंद्र (1968), मदारी (1959), हिमालय की गोद में (1965), मुकद्दर का सिकंदर (1978), लावारिस (1981), धर्मात्मा (1975), क़ुर्बानी (1980), जाँबाज़ (1986) आदि |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री, राष्ट्रीय पुरस्कार (सरस्वतीचंद्र), फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (कोरा काग़ज़) |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्ध गीत | अकेले हैं चले आओ, और इस दिल में क्या रखा है, चंदन सा बदन, चांद सी महबूबा, चांदी की दीवार ना तोड़ी, छलिया मेरा नाम, छोटी सी उमर में लग गया रोग आदि |
अन्य जानकारी | शुरू में कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी शाह के नाम से फ़िल्मों में संगीत देना शुरू किया और सम्राट चंद्रगुप्त (1959) उनके संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी। |
अद्यतन | 18:34, 3 जनवरी 2014 (IST)
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कल्याणजी-आनंदजी (अंग्रेज़ी: Kalyanji Anandji) हिन्दी सिनेमा जगत की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी थी। कल्याणजी और आनंदजी दोनों आपस में भाई थे, जिसमें कल्याणजी का 24 अगस्त, 2000 को निधन हो गया।
जीवन परिचय
कल्याणजी-आनंदजी अपनी किराने की दुकान पर नून तेल बेचते हुए ही जिंदगी गुजार देते अगर एक तंगहाल ग्राहक ने उधारी चुकाने के बदले दोनों को संगीत की तालीम देने की पेशकश न की होती। वीरजी शाह का परिवार कच्छ से मुंबई आया और आजीविका चलाने के लिए किराने की दुकान खोल ली। एक ग्राहक दुकान से सामान तो लेता था, लेकिन पैसे नहीं चुका पाता था। वीरजी ने एक दिन जब उससे तकाजा किया तो उसने उधारी चुकाने के लिए वीरजी के दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने का जिम्मा संभाला और इस तरह उधारी के पैसे से एक ऐसी संगीतकार जोड़ी की नींव पड़ी जिसने अपने संगीत से हिंदी फ़िल्म जगत को हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया। हालाँकि उधारी के संगीत के इन गुरुजी को सुर और ताल की समझ कुछ ख़ास नहीं थी, लेकिन उन्होंने वीरजी के पुत्रों कल्याणजी और आनंदजी में संगीत की बुनियादी समझ जरूर पैदा कर दी। इसके बाद संगीत में दोनों की रुचि बढ़ने लगी और दोनों भाई संगीत की दुनिया से जुड़ गए।[1]thumb|left|कल्याणजी-आनंदजी
आर्केस्ट्रा ग्रुप
कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी के नाम से अपना आर्केस्ट्रा ग्रुप शुरू किया और मुंबई तथा उससे बाहर अपने संगीत शो आयोजित करने लगे। इसी दौरान वे फ़िल्म संगीतकारों के संपर्क में आए और फिर दोनों भाई उस जमाने में हिंदी फ़िल्म जगत में पहुँच गए, जहाँ सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, हेमंत कुमार, नौशाद और रवि जैसे संगीतकारों के नाम की तूती बोलती थी।[1]
पहली फ़िल्म
शुरू में कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी शाह के नाम से फ़िल्मों में संगीत देना शुरू किया और सम्राट चंद्रगुप्त (1959) उनके संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी। इसी साल आनंदजी भी उनके साथ जुड़ गए और कल्याणजी-आनंदजी नाम से एक अमर संगीतकार जोड़ी बनी।[1]
प्रमुख फ़िल्में
कल्याणजी-आनंदजी ने 1959 में फ़िल्म ‘सट्टा बाज़ार’ और ‘मदारी’ का संगीत दिया जबकि 1961 में ‘छलिया’ का संगीत दिया। 1965 की ‘हिमालय की गोद में’ और ‘जब जब फूल खिले’ ने इन दोनों को सफल संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। इस जोड़ी ने लगातार तीन दशकों 1960, 70 और 80 तक बॉलीवुड पर राज किया। कल्याणजी ने हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था और वर्ष 1954 में आई फ़िल्म ‘नागिन’ के गीतों के कुछ छंद संगीतबद्ध किए। भारतीय फ़िल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत की शुरुआत करने का श्रेय भी कल्याणजी को ही जाता है। फ़िल्म ‘छलिया’ में राजकपूर और नूतन पर फ़िल्माए गए कल्याणजी-आनंदजी के गीत ‘छलिया मेरा नाम’ और ‘डम डम डिगा डिगा’ बेहद लोकप्रिय हुए। इस फ़िल्म ने उन्हें पृथक पहचान दिलाई। फ़िल्म ‘हिमालय की गोद’ (1965) से यह जोड़ी शीर्ष पर पहुँच गई। ‘सरस्वतीचंद्र’ (1968) के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। फ़िल्मकार प्रकाश मेहरा के साथ कल्याणजी आनंदजी का सफल गठजोड़ बन गया, जिसने ‘हसीना मान जाएगी’, ‘हाथ की सफाई’, ‘हेराफेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘लावारिस’ जैसी कई सफल फ़िल्में दीं। फ़िरोज़ ख़ान के साथ किया हुआ काम भी बहुत लोकप्रिय हुआ। इस तिकड़ी ने ‘धर्मात्मा’, ‘अपराध’, ‘कुर्बानी’ और ‘जाँबाज़’ में खूब वाहवाही लूटी।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- सिने संगीत निर्देशक पुरस्कार - 1965 - हिमालय की गोद में
- प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार - 1968 - सरस्वतीचंद्र
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार - 1974 - कोरा काग़ज़
- एचएमवी (HMV) द्वारा पहली प्लेटीनम डिस्क- मुक़द्दर का सिकंदर (1978)
- पॉलीडोर (Polydor) द्वारा पहली प्लेटीनम डिस्क- क़ुरबानी (1980)
- आईएमपीपीए (IMPPA) पुरस्कार – 1992 - फ़िल्मों में योगदान के लिए
- भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान
- आईफ़ा पुरस्कार (दक्षिण अफ़्रीका) - 2003 लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
- सहारा परिवार पुरस्कार (संयुक्त राष्ट्र) - 2004 - लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 कल्याणजी : किराने की दुकान से संगीतकार बनने का सफर (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 3 जनवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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