रेढ़: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''रेढ़''' एक प्राचीन स्थल है, जो [[राजस्थान]] के [[टोंक ज़िला|टोंक ज़िले]] में [[जयपुर]] से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है। [[बनास नदी|बनास]] की एक उपनदी इस [[ग्राम]] के निकट बहती है। यहाँ से आहत टंक मुद्राओं (Punchmarked Coins) सहित एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसमें माला के दाने, [[शंख]], हाथीदांत और [[कांसा|कांसे]] आदि की वस्तुएं भी रखी थीं। सिक्कों से [[अलक्षेन्द्र]] (सिकंदर) की लौटती हुई सेना के विरुद्व युद्ध करने वाले एक राजवंश के अस्तित्व के बारे में सूचना मिलती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=799|url=}}</ref>
'''रेढ़''' एक प्राचीन स्थल है, जो [[राजस्थान]] के [[टोंक ज़िला|टोंक ज़िले]] में [[जयपुर]] से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है।
 
*इस प्राचीन स्थल का [[उत्खनन]] 1938 ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।  
*[[राजस्थान]] का यह स्थान नवाई स्टेशन से 15 मील दक्षिण पूर्व में स्थित है।
*रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में [[मिट्टी]] के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री [[शुंग काल|शुंग]] एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती है।
*इस प्राचीन स्थल का [[उत्खनन]] [[1938]] ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।
*रेढ़ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें [[महात्मा बुद्ध]] या बौद्ध भिक्षुओं के [[अवशेष]] [[स्तूप|स्तूपों]] में रखे जाते थे।  
*रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में [[मिट्टी]] के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर मात्रा में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री [[शुंग काल|शुंग]] एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती हैं।
*रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी शताब्दी ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।  
*यहाँ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें [[महात्मा बुद्ध]] या [[भिक्कु|बौद्ध भिक्षुओं]] के [[अवशेष]] [[स्तूप|स्तूपों]] में रखे जाते थे।
*रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी [[शताब्दी]] ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।
*मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: [[मौर्य]] व [[शुंग]] शासकों के अधीन राज्य करते थे।  
*मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: [[मौर्य]] व [[शुंग]] शासकों के अधीन राज्य करते थे।  


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान}}
{{राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:राजस्थान]]
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान का इतिहास]][[Category:राजस्थान_के_ऐतिहासिक_स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:राजस्थान_के_ऐतिहासिक_स्थान]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 13:26, 20 December 2014

रेढ़ एक प्राचीन स्थल है, जो राजस्थान के टोंक ज़िले में जयपुर से 27 किलोमीटर की दूरी स्थित है। बनास की एक उपनदी इस ग्राम के निकट बहती है। यहाँ से आहत टंक मुद्राओं (Punchmarked Coins) सहित एक मृदभांड प्राप्त हुआ था, जिसमें माला के दाने, शंख, हाथीदांत और कांसे आदि की वस्तुएं भी रखी थीं। सिक्कों से अलक्षेन्द्र (सिकंदर) की लौटती हुई सेना के विरुद्व युद्ध करने वाले एक राजवंश के अस्तित्व के बारे में सूचना मिलती है।[1]

  • राजस्थान का यह स्थान नवाई स्टेशन से 15 मील दक्षिण पूर्व में स्थित है।
  • इस प्राचीन स्थल का उत्खनन 1938 ई. में के. एन. पुरी द्वारा करवाया गया।
  • रेढ़ में छोटे-छोटे टीले विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहाँ से उत्खनन में प्राप्त सामग्री में मिट्टी के मकान, अनेक लौह उपहरण, प्रचुर मात्रा में पाषाण मनके, मृण्मूर्तियाँ सम्मिलित हैं। यह सामग्री शुंग एवं शुंगोत्तर काल का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • यहाँ से प्राप्त सेलखड़ी की डिबिया उन डिबियों के सदृश हैं, जिनमें महात्मा बुद्ध या बौद्ध भिक्षुओं के अवशेष स्तूपों में रखे जाते थे।
  • रेढ़ के उत्खनन से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि यह स्थान तीसरी शताब्दी ई. पू. में एक विकसित नगर था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी तक पल्लवित होता रहा।
  • मालव सिक्कों एवं मालव मुद्राओं एवं आहत सिक्कों की उपलब्धि से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह मालवों का एक केन्द्र था, जो सम्भवत: मौर्यशुंग शासकों के अधीन राज्य करते थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 799 |

संबंधित लेख