एस. एच. रज़ा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 27: Line 27:
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.livehindustan.com/news/article/article1-sayed-haider-raza-great-artist-310969.html भारतीय संस्कृति से प्रेरणा लेता हूँ : रज़ा]
*[http://hindi.webdunia.com/nri-activities/syed-haider-raza-115071500071_1.html एसएच रजा को फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{चित्रकार}}
{{चित्रकार}}

Revision as of 13:06, 23 July 2016

एस. एच. रज़ा (पूरा नाम- सैयद हैदर रज़ा, अंग्रेज़ी: Syed Haider Raza, जन्म- 22 फ़रवरी, 1922, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 23 जुलाई, 2016) प्रतिष्ठित चित्रकार थे। उनके प्रमुख चित्र अधिकतर तेल या एक्रेलिक में बने परिदृश्य हैं, जिनमें रंगों का अत्यधिक प्रयोग किया गया है तथा जो भारतीय ब्रह्माण्ड विज्ञान के साथ-साथ इसके दर्शन के चिह्नों से भी परिपूर्ण हैं। एस. एच. रज़ा सन 1950 के बाद से फ़्राँस में रहने लगे थे, लेकिन भारत और यहाँ की संस्कृति के साथ वे हमेशा मजबूती से जुड़े रहे। जून, 2010 में उनकी एक पेंटिंग 16.42 करोड़ में बिकी थी, जो खासी चर्चा में रही। करीब छह दशक का वक्त फ़्राँस में गुजारने के बाद भी भारतीय संस्कृति को दिल में सहेजकर रखने वाले वरिष्ठ चित्रकार सैयद हैदर रज़ा का कहना था कि- "उन्हें भारतीय संस्कृति की विविधता से चित्र बनाने की प्रेरणा मिलती है"।

जन्म

एस. एच. रज़ा का जन्म 22 फ़रवरी, सन 1922 को मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले के बाबरिया नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम सैयद मोहम्मद रज़ी और माता का नाम ताहिरा बेगम था। सैयद मोहम्मद रज़ी ज़िले के उप वन अधिकारी थे। इसी स्थान पर सैय्यद ने अपने जीवन के प्रारंभिक वर्ष गुज़ारे व 12 वर्ष की आयु में चित्रकला सीखी।[1]

शिक्षा

तेरह वर्ष की आयु में एस. एच. रज़ा को दामोह भेज दिया गया था, जहाँ उन्होंने 'राजकीय उच्च विद्यालय' से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद उन्होंने 'नागपुर कला विद्यालय' में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने 1939-1943 के मध्य अध्ययन किया और उसके बाद मुंबई के प्रसिद्ध 'सर जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट' में दाखिला लिया; जहाँ उन्होंने सन 1943 से 1947 तक शिक्षा ग्रहण की। इसके उपरान्त उन्हें सन 1950 में फ़्राँस सरकार से छात्रवृति प्राप्त हो गयी, जिसके बाद अक्टूबर 1950 में वे पेरिस के विश्व प्रसिद्ध ‘इकोल नेशनल सुपेरियर डे ब्यू आर्ट्स’ से शिक्षा ग्रहण करने के लिए फ़्राँस चले गए। उन्होंने यहाँ 1950-1953 के मध्य पढ़ाई की और उसके बाद पूरे यूरोप की यात्रा की। शिक्षा समाप्ति के बाद वे पेरिस में रहकर काम करने लगे और अपने चित्रों का प्रदर्शन जारी रखा। सन 1956 में उन्हें पेरिस में ‘प्रिक्स डे ला क्रिटिक’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसे प्राप्त करने वाले वह पहले गैर-फ़्राँसीसी कलाकार थे।

विवाह

एस.एच. रज़ा ने सन 1959 में पेरिस के ‘इकोल डे ब्यू आर्ट्स’ की अपनी सहपाठी जेनाइन मोंगिल्लेट से विवाह किया था। जेनाइन बाद में एक प्रसिद्ध कलाकार और मूर्तिकार बन गई थीं। विवाह के उपरान्त जेनाइन की मां ने एस. एच. रज़ा से फ़्राँस में ही रहने का अनुरोध किया, जिसके बाद वे वहीँ बस गए। जेनाइन की मृत्यु 5 अप्रैल, 2002 को पेरिस में हुई।

कॅरियर

सन 1946 में एस. एच. रज़ा की पहली एकल प्रदर्शनी 'बॉम्बे आर्ट सोसाइटी' में प्रदर्शित हुई। सोसाइटी ने उन्हें रजत पदक से सम्मानित किया था। 1940 के शुरुआती दौर में परिदृश्यों तथा शहर के चित्रणों से गुजरते हुए उनकी चित्रकारी का झुकाव चित्रकला की अधिक अर्थपूर्ण भाषा, मस्तिष्क के चित्रण की ओर हो गया। वर्ष 1947 में उन्होंने के. एच. आरा तथा एफ़. एन. सूज़ा के साथ ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप’ की स्थापना की। इस ग्रुप का मुख्य मकसद था- 'भारतीय कला को यूरोपीय यथार्थवाद के प्रभावों से मुक्ति और इसमें भारतीय अंतर दृष्टि (अंतर ज्ञान) का समावेश'। 'बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप’ ने अपनी पहली प्रदर्शनी सन 1948 में आयोजित की।

एस. एच. रज़ा ने फ़्राँस में वृहद् परिदृश्यों के चित्रण तथा अंततः इसमें भारतीय हस्तलिपियों के तांत्रिक तत्वों को सम्मिलित कर पश्चिमी आधुनिकता की धारा के साथ प्रयोग जारी रखा। जिस समय उनके समकालीन चित्रकार अपनी कला के लिए अधिक औपचारिक विषय चुन रहे थे, उस समय रज़ा ने 1940 और 50 के दशकों के परिदृश्यों के चित्रण पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। सन 1962 में उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (बर्कले) में अंशकालिक व्याख्याता का पद स्वीकार किया। प्रारंभ में फ़्राँस के ग्रामीण इलाकों और उसके ग्राम्य जीवन ने रज़ा को बहुत आकृष्ट किया। 1970 के दशक में उनके जीवन में ऐसा समय आया, जब रज़ा अपने काम से नाखुश और बेचैन होने लगे। वे अपनी कला में एक नई दिशा और गहरी प्रामाणिकता पाना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने भारत का दौरा किया, जहाँ उन्हें अपनी जड़ों का एहसास हुआ तथा भारतीय संस्कृति को निकटता से जानने का अवसर मिला, जो उनकी कला में ‘बिंदु’ के रूप में उभरकर सामने आया। ‘बिंदु’ का उदय 1980 में हुआ और यह उनके कला को और अधिक गहराई में ले गया।

'रज़ा फाउंडेशन' की स्थापना

सन 2000 के आस-पास उनकी कला ने एक नई करवट ली, जब उन्होंने भारतीय अध्यात्म पर अपने विचारों को व्यक्त करना शुरू किया। इसका परिणाम था कुंडलिनी, नाग और महाभारत के विषयों पर आधारित चित्र। एस. एच. रज़ा ने भारतीय युवाओं को कला में प्रोत्साहन देने के लिए भारत में ‘रज़ा फाउंडेशन’ की स्थापना भी की, जो युवा कलाकारों को वार्षिक 'रज़ा फाउंडेशन पुरस्कार' प्रदान करता है।

पुरस्कार और सम्मान

  1. 1946 - रजत पदक, बॉम्बे आर्ट सोसाइटी, मुंबई
  2. 1948 - स्वर्ण पदक, बॉम्बे आर्ट सोसायटी, मुंबई
  3. 1956 - प्रिक्स डे ला क्रिटिक, पेरिस
  4. 1981 - पद्म श्री, भारत सरकार
  5. 1981 - 'ललित कला अकादमी' की मानद सदस्यता, नई दिल्ली
  6. 1981 - कालिदास सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार
  7. 2007 - पद्म भूषण, भारत सरकार

निधन

अपनी बेजोड़ चित्रकारी से एक ख़ास पहचान बनाने वाले एस. एच. रज़ा का निधन 23 जुलाई, 2016 को हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एस. एच. रज़ा (हिन्दी) Culturalindia Hindi। अभिगमन तिथि: 23 जुलाई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख