गंगोत्री: Difference between revisions

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भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है। जहां कहा जाता है कि [[शिव]] ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हुई 30-35 फुट नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह प्रताप नाला गौरीकुंड कहलाता है। इसके बीच में एक [[शिवलिंग]] है जिसके ऊपर प्रपात के बीच का जल गिरता रहता है।
भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है। जहां कहा जाता है कि [[शिव]] ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हुई 30-35 फुट नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह प्रताप नाला गौरीकुंड कहलाता है। इसके बीच में एक [[शिवलिंग]] है जिसके ऊपर प्रपात के बीच का जल गिरता रहता है।
==गंगा का उद्गम==
==गंगा का उद्गम==
[[चित्र:Gaumukh-Mountain.jpg|thumb|250px|left|गोमुख, [[गंगोत्री]]]]
परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया।
परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया।



Revision as of 06:14, 8 August 2016

thumb|250px|गंगोत्री |thumb|250px|गंगोत्री मंदिर गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। केदारखंड के चारों धामों में यमुनोत्री की यात्रा के पश्चात गंगोत्री की यात्रा करने का विधान है। गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं। गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है।

पौराणिक संदर्भ

यहाँ पर शंकराचार्य ने गंगा देवी की एक मूर्ति स्थापित की थी। जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी वहां 18वीं शती ई. में एक गुरखा अधिकारी ने मंदिर का निर्माण करा दिया है। इसके निकट भैरवनाथ का एक मंदिर है। इसे भगीरथ का तपस्थल भी कहते हैं। जिस शिला पर बैठकर उन्होंने तपस्या की थी वह भगीरथ शिला कहलाती है। उस शिला पर लोग पिंडदान करते हैं। गंगोत्री में सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर अनेक कुंड हैं।

भगीरथ शिला से कुछ दूर पर रुद्रशिला है। जहां कहा जाता है कि शिव ने गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया था। इसके निकट ही केदारगंगा, गंगा में मिलती है। इससे आधी मील दूर पर वह पाषाण के बीच से होती हुई 30-35 फुट नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह प्रताप नाला गौरीकुंड कहलाता है। इसके बीच में एक शिवलिंग है जिसके ऊपर प्रपात के बीच का जल गिरता रहता है।

गंगा का उद्गम

[[चित्र:Gaumukh-Mountain.jpg|thumb|250px|left|गोमुख, गंगोत्री]] परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया।

यद्यपि जनसाधारण के बीच यही माना जाता है कि गंगा यहीं से निकली हैं किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत में है। वहाँ गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है।

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- गंगा नदी


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