वरदविनायक: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
Line 32: Line 32:
*[http://astrobix.com/hindudharm/post/shree-ashtavinayak-yatra-shri-siddhivinayak-siddhatek.aspx श्री वरदविनायक]
*[http://astrobix.com/hindudharm/post/shree-ashtavinayak-yatra-shri-siddhivinayak-siddhatek.aspx श्री वरदविनायक]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{हिन्दू तीर्थ}}{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}}
{{महाराष्ट्र के धार्मिक स्थल}}{{हिन्दू तीर्थ}}{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}}
[[Category:महाराष्ट्र]][[Category:हिन्दू तीर्थ]][[Category:महाराष्ट्र के धार्मिक स्थल]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
[[Category:महाराष्ट्र]][[Category:हिन्दू तीर्थ]][[Category:महाराष्ट्र के धार्मिक स्थल]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 12:47, 23 November 2016

वरदविनायक
विवरण वरदविनायक देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप है।
वरदविनायक चतुर्थी ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष चतुर्थी
धार्मिक मान्यता शास्त्रों के अनुसार 'वरदविनायक चतुर्थी' का साल भर नियमपूर्वक व्रत करने से संपूर्ण मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
अन्य जानकारी वरदविनायक जी का मंदिर गणेश जी के आठ पीठों में से एक है, जो महाराष्ट्र राज्य में रायगढ़ ज़िले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है।

वरदविनायक देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप है। वरदविनायक जी का मंदिर गणेश जी के आठ पीठों में से एक है, जो महाराष्ट्र राज्य में रायगढ़ ज़िले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है।

मान्यता

इस मंदिर के विषय में भक्तों की यह मान्यता है कि यहाँ वरदविनायक गणेश अपने नाम के समान ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान देते हैं। प्राचीन काल में यह स्थान 'भद्रक' नाम से भी जाना जाता था। इस मंदिर में नंददीप नाम से एक दीपक निरंतर प्रज्जवलित है। इस दीपक के बारे में यह माना जाता है कि यह सन 1892 से लगातार प्रदीप्यमान है।

व्रत एवं पूजन

इसके साथ ही यह मान्यता भी है कि पुष्पक वन में गृत्समद ऋषि के तप से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें "गणानां त्वां" मंत्र के रचयिता की पदवी यहीं पर दी थी, और ईश देवता बना दिया। उन्हीं वरदविनायक गणपति का यह स्थान है। वरदविनायक गणेश का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है। यहाँ शुक्ल पक्ष की मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी के समय 'वरदविनायक चतुर्थी' का व्रत एवं पूजन करने का विशेष विधान है। शास्त्रों के अनुसार 'वरदविनायक चतुर्थी' का साल भर नियमपूर्वक व्रत करने से संपूर्ण मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख