वस्वोकसारा: Difference between revisions
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*महाभारत भीष्म पर्व के उल्लेखानुसार यह कैलास से उत्तर मैनाक है और उससे भी उत्तर दिव्य तथा | *महाभारत भीष्म पर्व के उल्लेखानुसार यह कैलास से उत्तर मैनाक है और उससे भी उत्तर दिव्य तथा महान् मणिमय पर्वत हिरण्यश्रृडग हैं। उसी के पास विशाल, दिव्य, उज्जवल तथा काञ्चनमयी बालुका से सुशोभित रमणीय बिन्दुसरोवर है। | ||
*[[ब्रह्मलोक]] से उतरकर त्रिपथगामिनी दिव्य नदी [[गंगा नदी| गंगा]] पहले उस बिन्दुसरोवर में ही प्रतिष्ठित हुई थी। वहीं से उनकी सात धाराएं विभक्त हुई हैं। उन धाराओं के नाम इस प्रकार हैं- वस्वोकसारा, [[नलिनी]], [[सरस्वती|पावनी सरस्वती]], जम्बूनदी, सीता, गंगा और सिंधु।<ref>महाभारत भीष्म पर्व 6.43-56</ref> | *[[ब्रह्मलोक]] से उतरकर त्रिपथगामिनी दिव्य नदी [[गंगा नदी| गंगा]] पहले उस बिन्दुसरोवर में ही प्रतिष्ठित हुई थी। वहीं से उनकी सात धाराएं विभक्त हुई हैं। उन धाराओं के नाम इस प्रकार हैं- वस्वोकसारा, [[नलिनी]], [[सरस्वती|पावनी सरस्वती]], जम्बूनदी, सीता, गंगा और सिंधु।<ref>महाभारत भीष्म पर्व 6.43-56</ref> | ||
Revision as of 11:07, 1 August 2017
वस्वोकसारा का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। महाभारत भीष्म पर्व के अनुसार यह एक नदी का नाम था।
- महाभारत भीष्म पर्व के उल्लेखानुसार यह कैलास से उत्तर मैनाक है और उससे भी उत्तर दिव्य तथा महान् मणिमय पर्वत हिरण्यश्रृडग हैं। उसी के पास विशाल, दिव्य, उज्जवल तथा काञ्चनमयी बालुका से सुशोभित रमणीय बिन्दुसरोवर है।
- ब्रह्मलोक से उतरकर त्रिपथगामिनी दिव्य नदी गंगा पहले उस बिन्दुसरोवर में ही प्रतिष्ठित हुई थी। वहीं से उनकी सात धाराएं विभक्त हुई हैं। उन धाराओं के नाम इस प्रकार हैं- वस्वोकसारा, नलिनी, पावनी सरस्वती, जम्बूनदी, सीता, गंगा और सिंधु।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 96 |
- ↑ महाभारत भीष्म पर्व 6.43-56
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