अपरांत: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:24, 16 April 2019

  • अपरांत महाराष्ट्र के अंतर्गत उत्तर कोंकण[1] में स्थित है। भारतवर्ष की पश्चिम दिशा का देशविशेष। 'अपरांत' (अपर-अंत) का अर्थ है- 'पश्चिम का अंत'। आजकल यह कोंकण प्रदेश माना जाता है। टॉल्मी नामक भूगोलवेत्ता ने इस प्रदेश को, जिसे उसने 'अरिआके' या 'अबरातिके' के नाम से पुकारा, चार भागों मे विभक्त बतलाया है।
  • अपरांत का प्राचीन साहित्य में अनेक स्थानों पर उल्लेख है-

'तत: शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे,
सहसा जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्'।[2]
'तथापरान्ता: सौराष्ट्रा: शूराभीरास्तथार्बुदा:'।[3]
'तस्यानीकैर्विसर्पदिभरपरान्तजयोद्यतै:'।[4]

  • कालिदास ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को अपरांत नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है।
  • रघुवंश[5] में भी 'अपरांत' के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार 'अपरांत' नाम सामान्य रूप से 'पश्चिमी देशों' का व्यंजक था किंतु विशेष रूप से[6] इस नाम से उत्तर कोंकण का बोध होता था।
  • महावंश[7] के उल्लेख के अनुसार अशोक के शासनकाल में यवन धर्मरक्षित को अपरांत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा गया था। इस संदर्भ में भी 'अपरांत' से पश्चिम के देशों का ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए।
  • रुद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख में 'अपरान्त'[8] में अशोक के गवर्नर के रूप में यवनराज तुफ़ास्क का नाम मिलता है। जो स्पष्टतः एक ईरानी नाम है।
  • जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ अशोक ने सुदर्शन झील को पुननिर्मित कराया था, जैसा रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। 'प्रांतपति तुहशाष्म' को वहाँ के देखरेख करने का भार सौंपा था। इसी क्षेत्र के लिए 'अपरांत'[9]) शब्द अभिलेखों में प्रयुक्त है।[10]
  • महाभारत शान्ति पर्व[11] से सूचित होता है कि शूर्पारक नामक देश को जो 'अपरांत भूमि' में स्थित था, परशुराम के लिए सागर ने छोड़ दिया था।

'तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम'।

  • महाभारत सभा पर्व [12] से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे-

'अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्'

  • गिरनार - स्थित रुद्रदामन के प्रसिद्ध अभिलेख में अपरांत का रुद्रदामन द्वारा जीते जाने का उल्लेख है-

'स्ववीर्यार्जितनामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां सुराष्ट्रश्वभ्रभरुकच्छसिंधुसौवीरकुकुरापरान्तनिषादादीनां'-

  • यहां अपरांत कोंकण का ही पर्याय जान पड़ता है। विष्णुपुराण में 'अपरांत' का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है।
  • वायुपुराण में अपरांत को अपरित कहा गया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

माथुर, विजयेन्द्र कुमार ऐतिहासिक स्थानावली, द्वितीय संस्करण- 1990 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, पृष्ठ संख्या- 26-27।

  1. गोवा आदि का इलाका
  2. शान्ति पर्व महाभारत 49, 66-67
  3. विष्णु पुराण 2,3,16
  4. रघुवंश महाकाव्य 4,53
  5. रघुवंश महाकाव्य 4,58
  6. जैसे महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में
  7. महावंश 12,4
  8. पश्चिम भारत
  9. पश्चिमी समुद्री तट
  10. सहाय, डॉ. शिव स्वरूप भारतीय पुरालेखों का अध्ययन (हिंदी), 144।
  11. शान्ति पर्व महाभारत 49,66-67
  12. सभा पर्व महाभारत 51,28

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