रामानाथन कृष्णन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:05, 30 September 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''रामानाथन कृष्णन''' (अंग्रेज़ी: ''Ramanathan Krishnan'', जन्म- 11 अप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

रामानाथन कृष्णन (अंग्रेज़ी: Ramanathan Krishnan, जन्म- 11 अप्रैल, 1937, नागरकोइल, तमिलनाडु) भारत के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से है। उनकी जैसी ऊंचाई तक भारत का कोई अन्य टेनिस खिलाड़ी नहीं पहुंच सका। वह विश्व के सर्वश्रेष्ठ 10 खिलाड़ियों में अपना स्थान बना सके। विंबलडन में वह चौथी सीड के खिलाड़ी बने। यदि रामानाथन कृष्णन को स्वतन्त्रता के बाद भारतीय टेनिस का आर्किटेक्ट कहा जाए तो शायद अतिशोयोक्ति नहीं होगी। उन्हें 1967 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 1962 में ‘पद्मश्री’ तथा 1967 में ‘पद्मभूषण’ प्रदान किया गया था।

परिचय

रामानाथन कृष्णन का जन्म 11 अप्रैल सन 1937 ई. में तमिलनाडु के नागरकोइल में हुआ था। उनको टेनिस खेलने की प्रेरणा अपने पिता टी. के. रामानाथन से मिली, जो टेनिस के चैंपियन रहे थे। कृष्णन ने अपने पिता के निर्देशन में आगे बढ़ते हुए शीघ्र ही खेल में निपुणता हासिल कर ली। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया था। उन्होंने टेनिस में एक कुशल खिलाड़ी की भाँति अपने लिए शीघ्र ही जगह बना ली और बहुत जल्दी टेनिस की एक जानी-मानी हस्ती बन गए। उन्होंने 8 वर्ष तक लगातार टेनिस की जूनियर तथा सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतीं।[1]

इसके पश्चात् उन्होंने कुछ ऐसी धाक जमाई कि वह भारतीय टेनिस का आईना बन गए। उन्होंने लगभग 13 वर्षों तक अपनी कुशलता को प्रदर्शित कर अपना उच्च स्थान बनाए रखा। वह विश्व रेटिंग में उस स्थान तक पहुँचे जहां भारत का कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका। उनकी उपलब्धि तक उनके बाद के खिलाड़ी विजय अमृतराज भी नहीं पहुँच सके। अलग-अलग पाँच अवसरों पर रामानाथन कृष्णन को विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में स्थान दिया गया। फिर 1962 के विंबलडन में वह 4 सीडेड खिलाड़ी थे। तब उन्हें टखने की चोट के कारण। खेल से हटना पड़ा।

अन्तरराष्ट्रीय शुरुआत

रामानाथन कृष्णन ने एक 16 वर्षीय खिलाड़ी के रूप में अन्तरराष्ट्रीय शुरुआत करके अपनी बहुत अच्छी पहचान बनाई। वह तब तक इतनी कम उम्र में राष्ट्रीय चैंपियन बन चुके थे। 1953 में डेविस कप टूर्नामेंट में बेल्जियम के विरुद्ध खेलते हुए उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। यद्यपि उस समय भारत 0-5 से हार गया, लेकिन कृष्णन ने 5 सेटों के रोमांचकारी मुकाबले में अपने खेल की जबरदस्त छाप छोड़ी। तभी पांच सेटों के अन्य मुकाबले में सुमन्त मिश्रा के साथ डबल्स खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया। डेविस कप खेलने वाले अति युवा खिलाड़ियों में से एक कृष्णन का एक-एक स्ट्रोक अत्यन्त प्रभावशाली था। बैक हैंड से खेला गया उनका स्ट्रोक उनकी पहचान था। वह आत्मविश्वास से पूर्ण थे और उन्हें विश्वास था कि डेविस कप खेलने के अगले ही वर्ष वह विंबलडन में भी भाग ले सकेंगे और अगले वर्ष उन्होंने विंबलडन में जूनियर एकल मुकाबले में फाइनल में एशली कूपर को हरा दिया। वह ऐसी जीत हासिल करने वाले प्रथम भारतीय ही नहीं, प्रथम एशियाई भी थे।

इसके पश्चात् रामानाथन कृष्णन का कैरियर ऊपर उठता चला गया। यद्यपि वह कभी भी विंबलडन नहीं जीत सके, लेकिन वह दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय खिलाड़ी थे। वह विंबलडन के सेमीफाइनल तक दो बार पहुँचे, उस वक्त तक भी वह वहाँ तक पहुँचने वाले एकमात्र भारतीय थे। वैसे दोनों ही मुकाबलों में अन्तत: उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा और 1960 में नीले फ्रेजर चैंपियन बन गए तथा 1961 में रॉड (रॉकेट) लेवर चैंपियन बने तथापि डेविस कप टूर्नामेंट में उनका बेहतरीन प्रदर्शन सदैव याद किया जाएगा। वह टीम मुकाबले में एकल मुकाबले से बेहतर प्रदर्शन कर सके। एकल स्पर्धा में रामानाथन कृष्णन ने 69 में से 50 मुकाबले जीते तथा डबल्स मुकाबलों में 29 में से 19 मुकाबले उन्होंने जीते। डबल्स मुकाबले उन्होंने जयदीप मुखर्जी के साथ जोड़ी बना कर खेले।[1]

1966 के चैलेंज राउंड में भारत को ले जाने में भी कृष्णन का ही हाथ रहा, यद्यपि टीम अन्त में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार गई। रामानाथन कृष्णन ने अपने खेल कैरियर में अनेकों बार सफलता पाई। इनमें से कुछ मुकाबले ऐसे रहे, जिनमें कृष्णन ने विजय पाई और वह उन्हें शायद कभी नहीं भुला सकेंगे। एक मुकाबला था-जब अमेरिका के ब्रुकलिन में 1959 में वह डेविस कप जोनल फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के रॉड लेवर के विरुद्ध खेलते हुए जीते थे। दूसरा मुकाबला था-जब वह 1966 में कलकत्ता में 5 वें रबर में ब्राजील के थामस कोच से मुकाबला जीते थे। यह कृष्णन के लिए भी अविश्वसनीय-सा था, जब वह दो सेटों में से एक में हार रहे थे, फिर चौथे सेट में 15-30 से हार रहे थे, लेकिन पांच सेटों के मुकाबले में उन्होंने बजी पलट डाली और वह खेल जीतने में सफल रहे।

पुरस्कार व सम्मान

रामानाथन कृष्णन की खेल उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ देकर सम्मानित किया। फिर 1967 में रामानाथन कृष्णन को ‘पद्मभूषण’ प्रदान किया गया। इसे भी पढ़ें- महेश भूपति का जीवन परिचय

टेनिस के प्रति समर्पण

उनके खेलों से रिटायर होने के पश्चात् उन्होंने टेनिस के प्रति समर्पण का भाव नहीं छोड़ा। उनके पुत्र रमेश कृष्णन ने टेनिस में खूब धाक जमाई।[1]

उपलब्धियां

  1. वह विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक रहे जहां कोई भारतीय टेनिस खिलाड़ी नहीं पहुँच सका है।
  2. 1962 में विबंलडन में वह 4 सीडेड खिलाड़ी रहे।
  3. डेविस कप में खेलने वाले कृष्णन सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे।
  4. वह विबंलडन के फाइनल तक वाले प्रथम भारतीय ही नहीं, प्रथम एशियाई थे।
  5. कृष्णन को 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  6. 1962 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
  7. 1967 में कृष्णन को ‘पद्म भूषण’ सम्मान प्रदान किया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 रामानाथन कृष्णन का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः