जॉन मार्ले

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  • जॉन मार्ले 1905 ई. से 1910 ई. तक भारत का मंत्री रहा था।
  • 1907 ई. में उसने जहाँ एक ओर भारत में आतंकवादियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने का समर्थन किया, वहीं दूसरी ओर लन्दन में भारत मंत्री की कौंसिल में दो भारतीयों तथा वाइसराय की एक्ज़ीक्यूटिव कौंसिल में एक भारतीय की नियुक्ति करके शिक्षित भारतीयों को संतुष्ट करने का प्रयत्न किया।
  • उसने भारत में संसदीय शासन-व्यवस्था की स्थापना करने का कोई सरकारी इरादा होने से इन्कार किया, किन्तु 1909 ई. का गवर्नमेण्ट ऑफ़ इण्डिया एक्ट पास करके भारत के संविधान में काफ़ी परिवर्तन कर दिया।
  • यह मार्ले-मिण्टो सुधार क़ानून के नाम से विख्यात है।
  • इसके अंतर्गत भारतीय संविधान में पहले से अधिक बड़ी संख्या में निर्वाचित जन प्रतिनिधिओं की व्यवस्था की गई, विधान मण्डलों में प्रश्न पूछने, बजट पर बहस करने तथा प्रस्ताव पेश करने का अधिकार दे दिया गया।
  • लॉर्ड मिण्टो द्वितीय के साथ-साथ वह भी भारतीय विधान मण्डलों में साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली आरम्भ करने के लिए ज़िम्मेदार था।
  • दस वर्ष के बाद, भारत मंत्री के पद से हट जाने के पश्चात् उसने मांटेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुघारों को असामयिक बताया था।
  • वह युद्ध विरोधी था और 1914 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ने पर उसने सार्वजनिक जीवन से अवकाश ग्रहण कर लिया।
  • वह एक प्रसिद्ध लेखक भी था और 1923 ई. में मृत्यु से पूर्व उसकी गणना सबसे वयोवृद्ध अंग्रेज़ साहित्यकारों में की जाने लगी थी।
  • अंग्रेज़ी भाषा में उसकी मुख्य पुस्तकें 'ग्लैडस्टोन का जीवन' (1903 ई.), 'वाल्टेयर' (1872 ई.), 'रूसो' (1873 ई.), 'काबडेन' (1881 ई.), 'बर्क' (1879 ई.), 'बालपोल' (1889 ई.), 'कामवेल' (1900 ई.) था 1917 ई. में प्रकाशित उसके 'संस्मरण' (दो खण्ड) हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 360।

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