जगत शिरोमणि मंदिर

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जगत शिरोमणि मंदिर राजस्थान के आमेर में स्थित है। आमेर के प्रमुख प्राचीन मंदिरों में 'जगत शिरोमणि मंदिर' का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह मंदिर महाराजा मानसिंह प्रथम के पुत्र जगतसिंह की याद में बनवाया गया था। तत्कालीन समय के अन्य मंदिरों की भांति इस पर मुस्लिम शिल्पकला का प्रभाव कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता है। मंदिर के निर्माण में दक्षिण भारतीय शैली का प्रयोग किया गया है।

निर्माण

महाराजा मानसिंह प्रथम की पत्नी महारानी कनखावती ने पुत्र जगतसिंह की याद में इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर का निर्माण कार्य 1599 ई. में आरंभ हुआ और 1608 ई. में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ। कई मंजिला प्राचीन भवनों की श्रेणी में यह मंदिर प्रमुख पहचान रखता है।[1]

नामकरण

महारानी की इच्छा थी कि इस मंदिर के द्वारा उनके पुत्र को सदियों तक याद रखा जाए। इसीलिए मंदिर का नाम 'जगत शिरोमणि' रखा गया।

शिल्प कला

स्थानीय पीले पत्थर, सफ़ेद और काले संगमरमर से बने इस मंदिर में पुराण कथाओं के आधार पर गढ़े गए शिल्प भी दर्शन योग्य हैं। मंदिर का मंडप दुमंजिला और भव्य है। शिखर प्रारूप से बने भव्य मंदिरों में से यह एक है। 'जगत शिरोमणि' भगवान विष्णु का ही एक नाम है। मंदिर के निर्माण में दक्षिण भारतीय शैली का प्रयोग किया गया है। मंदिर के तोरण, द्वारशाखाओं, स्तंभों आदि पर बारीक शिल्प गढ़ा गया है। मंदिर में कृष्ण की भक्त मीरा बाई और कृष्ण के मंदिर भी हैं। साथ ही भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की भी भव्य प्रतिमा है। कहा जाता है, उस समय इस मंदिर के निर्माण में 11 लाख रुपए खर्च किए गए थे।

यह मन्दिर राजपूत स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। एक अन्य मत के अनुसार इस मंदिर का निर्माण रानी कनकवती ने करवाया था। यह मंदिर आमेर के उत्तरी-पश्चिमी पहाड़ी तल पर स्थित है। इसका निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के नमूने पर हुआ है। तत्कालीन युग के अन्य मंदिरों की भांति इस पर मुसलमानी शिल्पकला का प्रभाव कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता। यह मंदिर एक 15 फुट चबुतरे पर संगमरमर से बनाया गया है।

मंदिर में प्रतिमाएँ

मुख्य उपासना गृह में राधा, गिरिधर, गोपाल और विष्णु की मूर्तियां हैं। एक दीर्घायत विशाल कक्ष उत्कृष्ट रूप से निर्मित कला और शिल्प की शोभा को प्रदर्शित करता है और इस मंदिर के सामने हाथ जोड़े खड़ी हुई गरुड़ की एक विलक्षण मूर्ति इस मंदिर की शोभा में श्रीवृद्धि करती है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जयपुर के पसिद्ध मंदिर (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2014।
  2. तोन्गारिया, राहुल। अम्बेर के देवालय (हिन्दी) इगनका। अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2014।

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