महाराणा प्रताप की मृत्यु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:53, 28 December 2016 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('अकबर के युद्ध बन्द कर देने से महाराणा प्रताप को बड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अकबर के युद्ध बन्द कर देने से महाराणा प्रताप को बड़ा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उन्होंने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से चित्तौड़ का उद्धार न कर सके। वे एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे। ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा, "महाराज! ऐसे कौन से दारुण दुःख ने आपको दुःखित कर रखा है और अन्तिम समय में आपकी शान्ति को भंग कर रहा है।" प्रताप का उत्तर था, "सरदार जी! अभी तक प्राण अटके हुए हैं, केवल एक ही आश्वासन की वाणी सुनकर यह अभी सुखपूर्वक देह को छोड़ जायेगा। यह वाणी आप ही के पास है। आप सब लोग मेरे सम्मुख प्रतिज्ञा करें कि जीवित रहते अपनी मातृभूमि किसी भी भाँति तुर्कों के हाथों में नहीं सौंपेंगे। पुत्र राणा अमर सिंह हमारे पूर्वजों के गौरव की रक्षा नहीं कर सकेगा। वह मुग़लों के ग्रास से मातृभूमि को नहीं बचा सकेगा। वह विलासी है, वह कष्ट नहीं झेल सकेगा।"

राणा की मृत्यु

राणा प्रताप ने अपने सरदारों को अमरसिंह की बातें सुनाते हुए कहा, "एक दिन इस नीचि कुटिया में प्रवेश करते समय अमरसिंह अपने सिर से पगड़ी उतारना भूल गया था। द्वार के एक बाँस से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गई। दूसरे दिन उसने मुझसे कहा कि यहाँ पर बड़े-बड़े महल बनवा दीजिए।" कुछ क्षण चुप रहकर प्रताप ने कहा, "इन कुटियों के स्थान पर बड़े-बड़े रमणीक महल बनेंगे, मेवाड़ की दुरावस्था भूलकर अमरसिंह यहाँ पर अनेक प्रकार के भोग-विलास करेगा। अमर के विलासी होने पर मातृभूमि की वह स्वाधीनता जाती रहेगी, जिसके लिए मैंने बराबर पच्चीस वर्ष तक कष्ट उठाए, सभी भाँति की सुख-सुविधाओं को छोड़ा। वह इस गौरव की रक्षा न कर सकेगा और तुम लोग-तुम सब उसके अनर्थकारी उदाहरण का अनुसरण करके मेवाड़ के पवित्र यश में कलंक लगा लोगे।" प्रताप का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदारों ने उनसे कहा, "महाराज! हम लोग बप्पा रावल के पवित्र सिंहासन की शपथ करते हैं कि जब तक हम में से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई तुर्क मेवाड़ की भूमि पर अधिकार न कर सकेगा। जब तक मेवाड़ भूमि की पूर्व-स्वाधीनता का पूरी तरह उद्धार हो नहीं जायेगा, तब तक हम लोग इन्हीं कुटियों में निवास करेंगे।" इस संतोषजनक वाणी को सुनते ही प्रताप के प्राण निकल गए। यह 29 जनवरी, 1597 ई. का दिन था।[1]

इस प्रकार एक ऐसे राजपूत के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक सिसोदिया को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक राणा प्रताप की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा।

पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता इस प्रकार है-
महाराणा प्रताप पर एक कविता

राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है।
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।।
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।।
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है।
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।।
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का।
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।।
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था।
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।।
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई।
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई।
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।।
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया।
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।।
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ।
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।


left|30px|link=महाराणा प्रताप की मानसिंह से भेंट|पीछे जाएँ महाराणा प्रताप की मृत्यु right|30px|link=वीरता के परिचायक महाराणा|आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कहीं-कहीं प्रताप के स्वर्गवास की तिथि 19 जनवरी, 1597 कही गई है।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः