चाँद का मुँह टेढ़ा है -गजानन माधव मुक्तिबोध

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:06, 11 February 2021 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replacement - "मुताबिक" to "मुताबिक़")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
चाँद का मुँह टेढ़ा है -गजानन माधव मुक्तिबोध
कवि गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
मूल शीर्षक 'चाँद का मुँह टेढ़ा है'
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, सन 2004
ISBN 9788126308239
देश भारत
पृष्ठ: 296
भाषा हिन्दी
शैली नई कविता
विषय कविता
विधा कविता संग्रह
विशेष बीमारी के दौरान मुक्तिबोध ने इच्छा ज़ाहिर की थी कि प्रथम संस्करण में उनकी दो कविताएँ-‘चम्बल की घाटियाँ’ और ‘आशंका के द्वीप अँधेरे में’, ज़रूर शामिल की जाएँ।

चाँद का मुँह टेढ़ा है भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व गजानन माधव 'मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई कविताओं का संग्रह है। यह पुस्तक 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा 1 जनवरी, सन 2004 में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।

पुस्तक अंश

मुक्तिबोध की लम्बी कविताओं का पैटर्न विस्तृत होता है। एक विशाल म्यूरल पेण्टिंग आधुनिक प्रयोगवादी, अत्याधुनिक जिसमें सब चीजें ठोस और स्थिर होती है, किसी बहुत ट्रैजिक सम्बन्ध के जाल में कसी हुई। यदि किसी ने स्वयं मुक्तिबोध की जबानी उनकी कोई रचना सुनी हो तो। कविता समाप्त होने पर ऐसा लगता है कि जैसे हम कोई आतंकित करने वाली फ़िल्म देखने के बाद एकाएक होश में आये हों। चूँकि वह पेण्टर और मूर्तिकार हैं, अपनी कविताओं में, और उनकी शैली बड़ी शक्तिशाली, कुछ यथार्थवादी मेक्सिकन भित्ति-चित्रों की सी है। वह एक-एक चित्र को मेहनत से तैयार करते हैं, और फिर उसके अम्बार लगाते चलते है। एक तारतम्य जैसे किसी ट्रैजिक नाट्य मंच पर एक उभरती भीड़ का दृश्य-पूर्वनियोजित प्रभाव के साथ हो। इनके प्रतीक गाथाओं के टुकड़ों में सन्दर्भ आधुनिक होता है। यह आधुनिक यथार्थ कथा का भयानकतम अंश होता है। मुक्तिबोध का वास्तविक मूल्यांकन अगली, यानी अब आगे की पीढ़ी निश्चय ही करेगी, क्योंकि उसकी करूण अनुभूतियों को, उसकी व्यर्थता और खोखलेपन को पूरी शक्ति के साथ मुक्तिबोध ने ही अभिव्यक्त किया है। इस पीढ़ी के लिए शायद यही अपना खास महान् कवि हो।[1]

प्रथम संस्करण

मुक्तिबोध अगर स्वस्थ होते तो पता नहीं अपनी कविताओं का संकलन किस प्रकार करते। शायद उन्होंने अपनी कविताएँ अधिक विवेक और परख के साथ चुनी होतीं, क्योंकि इन तमाम आत्मपरक कविताओं के कवि मुक्तिबोध न केवल दूसरों के प्रति बल्कि ख़ुद अपने प्रति एक सही और तटस्थ दृष्टि रखते थे और दूसरों से या अपनों से उन्हें जो भी मोह रहा हो। अपने से मोह उन्हें कभी नहीं रहा। अपने प्रति यह निर्मोह उनकी इन कविताओं की रचना-प्रकिया में भी प्रकट है, जिन्हें उन्होंने कई बार लिखा और एक ही कविता के कई प्रारूप हैं। इस संकलन में अन्तिम प्रारूपों को ही शामिल किया गया है, हालाँकि मुक्तिबोध ने इन्हें अन्तिम प्रारूप मान लिया होगा, यह विश्वास कर सकना कठिन है। अपने-आपसे, जैसे किसी पहाड़ से, बराबर जूझते रहने वाले कवि ये लंबी कविताएँ ज़्यादातर पिछले दस साल की हैं।

मुक्तिबोध का पहला संकलन उनकी पहली कविताओं का नहीं बल्कि अन्तिम [2] कविताओं का संकलन है। किसी और कवि की कविताएँ उसका इतिहास न हों, मुक्तिबोध की कविताएँ अवश्य उनका इतिहास हैं। जो इन कविताओं को समझेंगे, उन्हें मुक्तिबोध को किसी और रूप में समझने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जिंदगी के एक-एक स्नायु के तनाव को एक बार जीवन में और दूसरी बार अपनी कविताओं में जीकर मुक्तिबोध ने अपनी समृति के लिए सैकड़ों कविताएँ छोड़ी हैं और ये कविताएँ ही उनका जीवन वृत्तान्त हैं।

बीमारी के दौरान मुक्तिबोध ने इच्छा ज़ाहिर की थी कि इस संकलन में उनकी दो कविताएँ-‘चम्बल की घाटियाँ’ और ‘आशंका के द्वीप अँधेरे में’, ज़रूर शामिल की जाएँ। दोनों एक के बाद दूसरी छापी जाएँ और दूसरी का शीर्षक बदल दिया जाए। उन्होंने कहा था कि ‘आशंका के द्वीप अँधेरे में’ शीर्षक एक विशेष मनःस्थिति के प्रवाह में मैंने दिया था। उनकी इच्छा के मुताबिक़ शीर्षक से ‘आशंका के द्वीप’ हटा दिया गया। हालाँकि यह शीर्षक इस कविता के अर्थ को अधिक अच्छी तरह व्यंजित करता है। ये दोनों ही कविताएँ उनकी, बीमार पड़ने के कुछ समय पहले की कविताएँ हैं और इस दृष्टि से अब तक की कविताओं में ये उनकी अन्तिम कविताएँ हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चाँद का मुँह टेढ़ा है (हिन्दी) पुस्तक.ओआरजी। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।
  2. फ़िलहाल जब तक वह निरोग नहीं होते तब तक अन्तिम

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः