Difference between revisions of "जलोढ़ मिट्टी"

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'''जलोढ़ मिट्टी''' [[उत्तर भारत]] के पश्चिम में [[पंजाब]] से लेकर सम्पूर्ण उत्तरी विशाल मैदान को आवृत करते हुए [[गंगा नदी]] के डेल्टा क्षेत्र तक फैली है। अत्यधिक उर्वरता वाली इस मिट्टी का विस्तार सामान्यतः देश की नदियों के वेसिनों एवं मैदानी भागों तक ही सीमित है। हल्के [[भूरा रंग|भूरे]] रंगवाली यह मिट्टी 7.68 लाख वर्ग किमी को आवृत किये हुए है। इसकी भौतिक विशेषताओं का निर्धारण जलवायविक दशाओं विशेषकर वर्षा तथा वनस्पतियों की वृद्धि द्वारा किया जाता है। इस मिट्टी में [[उत्तरी भारत]] में सिंचाई के माध्यम से [[गन्ना]], [[गेहूँ]], [[चावल]], [[जूट]], [[तम्बाकू]], [[तिलहन]] फसलों तथा [[सब्जियाँ|सब्जियों]] की खेती की जाती है। उत्पत्ति, संरचना तथा उर्वरता की मात्रा के आधार पर इसको तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्नलिखित है -  
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'''जलोढ़ मिट्टी''' [[उत्तर भारत]] के पश्चिम में [[पंजाब]] से लेकर सम्पूर्ण उत्तरी विशाल मैदान को आवृत करते हुए [[गंगा नदी]] के [[डेल्टा]] क्षेत्र तक फैली है। अत्यधिक उर्वरता वाली इस मिट्टी का विस्तार सामान्यतः देश की नदियों के वेसिनों एवं मैदानी भागों तक ही सीमित है। हल्के [[भूरा रंग|भूरे]] रंगवाली यह मिट्टी 7.68 लाख वर्ग किमी को आवृत किये हुए है। इसकी भौतिक विशेषताओं का निर्धारण जलवायविक दशाओं विशेषकर वर्षा तथा वनस्पतियों की वृद्धि द्वारा किया जाता है। इस मिट्टी में [[उत्तरी भारत]] में सिंचाई के माध्यम से [[गन्ना]], [[गेहूँ]], [[चावल]], [[जूट]], [[तम्बाकू]], [[तिलहन]] फसलों तथा [[सब्जियाँ|सब्जियों]] की खेती की जाती है। उत्पत्ति, संरचना तथा उर्वरता की मात्रा के आधार पर इसको तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्नलिखित है -  
 
==पुरातन जलोढ़ या बांगर मिट्टी==
 
==पुरातन जलोढ़ या बांगर मिट्टी==
नदियों द्वारा बहाकर उनके पाश्र्ववर्ती भागों में अत्यधिक ऊंचाई तक बिछायी गयी पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर के नाम से जाना जाता है। नदियों में आने वाली बाढ़ का पानी ऊंचाई के कारण इन पर नहीं पहुंच पाता है। नदी जल की प्राप्ति न होने, धरातलीय ऊंचाई तथा जल-तल के नीचा होने के कारण [[उत्तर प्रदेश]], [[पंजाब]], [[हरियाणा]], [[राजस्थान]] एवं [[बिहार]] की काफी [[मिट्टी]] ऊसर हो गयी है। ऐसी मिट्टी रेह या कल्लर कहलाती है।
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नदियों द्वारा बहाकर उनके पाश्र्ववर्ती भागों में अत्यधिक ऊंचाई तक बिछायी गयी पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर के नाम से जाना जाता है। नदियों में आने वाली बाढ़ का पानी ऊंचाई के कारण इन पर नहीं पहुंच पाता है। नदी जल की प्राप्ति न होने, धरातलीय ऊंचाई तथा जल-तल के नीचा होने के कारण [[उत्तर प्रदेश]], [[पंजाब]], [[हरियाणा]], [[राजस्थान]] एवं [[बिहार]] की काफ़ी [[मिट्टी]] ऊसर हो गयी है। ऐसी मिट्टी रेह या कल्लर कहलाती है।
 
==नूतन जलोढ़ या खादर मिट्टी==
 
==नूतन जलोढ़ या खादर मिट्टी==
 
यह मिट्टी नदियों के बाढ़ के मैदानों तक ही सीमित होती है। इसके कण बहुत ही महीन होते हैं तथा इनकी जलधारण शक्ति पुरातन जलोढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। नदी घाटी में स्थित होने के कारण इस मिट्टी की आवश्यकता सामान्यतः नहीं होती है। रबी की फसल के लिए यह मिट्टी उत्तम है।
 
यह मिट्टी नदियों के बाढ़ के मैदानों तक ही सीमित होती है। इसके कण बहुत ही महीन होते हैं तथा इनकी जलधारण शक्ति पुरातन जलोढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। नदी घाटी में स्थित होने के कारण इस मिट्टी की आवश्यकता सामान्यतः नहीं होती है। रबी की फसल के लिए यह मिट्टी उत्तम है।
 
==अतिनूतन जलोढ़ मिट्टी==
 
==अतिनूतन जलोढ़ मिट्टी==
इस प्रकार की मिट्टी गंगा, [[ब्रह्मपुत्र]], [[महानदी]], [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] आदि बड़ी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में ही मिलती है। यह मिट्टी दलदली एवं नमकीन प्रकृति की होती है। इसके कण अत्यधिक बारीक होते हैं तथा इसमें पोटाश, चूना, [[फास्फोरस]], [[मैग्नीशियम]] एवं जीवांशों की अधिक मात्रा समाहित रहती है। इस मिट्टी में [[गन्ना]], [[जूट]] आदि फसलों की [[कृषि]] की जाती है। डेल्टा के उच्च भागों में पुरानी काँप मिट्टी पायी जाती है, जिसे राढ़ कहते हैं।
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इस प्रकार की मिट्टी गंगा, [[ब्रह्मपुत्र]], [[महानदी]], [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[कृष्णा नदी|कृष्णा]], [[कावेरी नदी|कावेरी]] आदि बड़ी नदियों के [[डेल्टा]] क्षेत्र में ही मिलती है। यह मिट्टी दलदली एवं नमकीन प्रकृति की होती है। इसके कण अत्यधिक बारीक होते हैं तथा इसमें पोटाश, चूना, [[फास्फोरस]], [[मैग्नीशियम]] एवं जीवांशों की अधिक मात्रा समाहित रहती है। इस मिट्टी में [[गन्ना]], [[जूट]] आदि फसलों की [[कृषि]] की जाती है। डेल्टा के उच्च भागों में पुरानी काँप मिट्टी पायी जाती है, जिसे राढ़ कहते हैं।
 
 
 
उपर्युक्त प्रकार की जलोढ़ मिट्टियों का गठन बलुई-दोमट से लेकर मृत्तिकामय रूप में पाया जाता है तथा इनका रंग हल्का भूरा होता है। इस प्रकार की मिट्टी में [[नाइट्रोजन]], फास्फोरस तथा वनस्पतियों के अंश कम मात्रा में मिलते हैं तथापित ये बहुत ऊपजाऊ हैं।
 
उपर्युक्त प्रकार की जलोढ़ मिट्टियों का गठन बलुई-दोमट से लेकर मृत्तिकामय रूप में पाया जाता है तथा इनका रंग हल्का भूरा होता है। इस प्रकार की मिट्टी में [[नाइट्रोजन]], फास्फोरस तथा वनस्पतियों के अंश कम मात्रा में मिलते हैं तथापित ये बहुत ऊपजाऊ हैं।
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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Latest revision as of 13:04, 2 April 2014

jalodh mitti uttar bharat ke pashchim mean panjab se lekar sampoorn uttari vishal maidan ko avrit karate hue ganga nadi ke delta kshetr tak phaili hai. atyadhik urvarata vali is mitti ka vistar samanyatah desh ki nadiyoan ke vesinoan evan maidani bhagoan tak hi simit hai. halke bhoore rangavali yah mitti 7.68 lakh varg kimi ko avrit kiye hue hai. isaki bhautik visheshataoan ka nirdharan jalavayavik dashaoan visheshakar varsha tatha vanaspatiyoan ki vriddhi dvara kiya jata hai. is mitti mean uttari bharat mean sianchaee ke madhyam se ganna, gehooan, chaval, joot, tambakoo, tilahan phasaloan tatha sabjiyoan ki kheti ki jati hai. utpatti, sanrachana tatha urvarata ki matra ke adhar par isako tin prakaroan mean vargikrit kiya jata hai, jo nimnalikhit hai -

puratan jalodh ya baangar mitti

nadiyoan dvara bahakar unake pashrvavarti bhagoan mean atyadhik ooanchaee tak bichhayi gayi purani jalodh mitti ko baangar ke nam se jana jata hai. nadiyoan mean ane vali badh ka pani ooanchaee ke karan in par nahian pahuanch pata hai. nadi jal ki prapti n hone, dharataliy ooanchaee tatha jal-tal ke nicha hone ke karan uttar pradesh, panjab, hariyana, rajasthan evan bihar ki kafi mitti oosar ho gayi hai. aisi mitti reh ya kallar kahalati hai.

nootan jalodh ya khadar mitti

yah mitti nadiyoan ke badh ke maidanoan tak hi simit hoti hai. isake kan bahut hi mahin hote haian tatha inaki jaladharan shakti puratan jalodh ki apeksha adhik hoti hai. nadi ghati mean sthit hone ke karan is mitti ki avashyakata samanyatah nahian hoti hai. rabi ki phasal ke lie yah mitti uttam hai.

atinootan jalodh mitti

is prakar ki mitti ganga, brahmaputr, mahanadi, godavari, krishnaa, kaveri adi b di nadiyoan ke delta kshetr mean hi milati hai. yah mitti daladali evan namakin prakriti ki hoti hai. isake kan atyadhik barik hote haian tatha isamean potash, choona, phasphoras, maignishiyam evan jivaanshoan ki adhik matra samahit rahati hai. is mitti mean ganna, joot adi phasaloan ki krishi ki jati hai. delta ke uchch bhagoan mean purani kaanp mitti payi jati hai, jise radh kahate haian.

uparyukt prakar ki jalodh mittiyoan ka gathan baluee-domat se lekar mrittikamay roop mean paya jata hai tatha inaka rang halka bhoora hota hai. is prakar ki mitti mean naitrojan, phasphoras tatha vanaspatiyoan ke aansh kam matra mean milate haian tathapit ye bahut oopajaoo haian.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

bahari k diyaan

sanbandhit lekh