Difference between revisions of "हिरण्यकशिपु"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 1: Line 1:
 
*हिरण्यकशिपु अत्यंत बलवान दैत्यराज था। उसने कठोर तपस्या के बल पर [[ब्रह्मा]] से यह वर प्राप्त किया कि रात में या दिन में, कोई पशु, पक्षी, जलचर, मनुष्य देवता इत्यादि किसी भी प्रकार के शस्त्र से घर के बाहर अथवा भीतर उसे नहीं मार पायेगा। वरदान प्राप्त कर वह अपनी अमरता के उन्माद में सब पर नानाविध अत्याचार करने लगा। इस प्रकार वह पांच करोड़, इकसठ लाख, साठ हज़ार वर्ष तक सबको त्रस्त करता रहा। [[देवता|देवताओं]] ने ब्रह्मा से अनुनय-विनय की। ब्रह्मा ने कहा कि उनके भी जनक [[विष्णु|नारायण]] हैं, जो क्षीर सागर में शयन कर रहे हैं, वही उनका उद्धार कर पायेंगे। देवगण उनकी शरण में गये। नारायण ने आधा शरीर मनुष्य का सा तथा आधा सिंह का-सा बनाकर [[नृसिंह अवतार|नरसिंह विग्रह]] धारण किया तथा हिरण्यकशिपु से युद्ध प्रारंभ किया। कई हज़ार दैत्यों को मारकर उन्होंने हिरण्यकशिपु को सायंकाल के समय (जब न दिन था, न रात थी) राजमहल की देहली पर (जो भवन के भीतर थी, न बाहर) अपने नाख़ूनों से (जो कि शस्त्र नहीं थे) जंघा पर रखकर मार डाला। <ref>[[महाभारत]], [[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]], अध्याय 38</ref>
 
*हिरण्यकशिपु अत्यंत बलवान दैत्यराज था। उसने कठोर तपस्या के बल पर [[ब्रह्मा]] से यह वर प्राप्त किया कि रात में या दिन में, कोई पशु, पक्षी, जलचर, मनुष्य देवता इत्यादि किसी भी प्रकार के शस्त्र से घर के बाहर अथवा भीतर उसे नहीं मार पायेगा। वरदान प्राप्त कर वह अपनी अमरता के उन्माद में सब पर नानाविध अत्याचार करने लगा। इस प्रकार वह पांच करोड़, इकसठ लाख, साठ हज़ार वर्ष तक सबको त्रस्त करता रहा। [[देवता|देवताओं]] ने ब्रह्मा से अनुनय-विनय की। ब्रह्मा ने कहा कि उनके भी जनक [[विष्णु|नारायण]] हैं, जो क्षीर सागर में शयन कर रहे हैं, वही उनका उद्धार कर पायेंगे। देवगण उनकी शरण में गये। नारायण ने आधा शरीर मनुष्य का सा तथा आधा सिंह का-सा बनाकर [[नृसिंह अवतार|नरसिंह विग्रह]] धारण किया तथा हिरण्यकशिपु से युद्ध प्रारंभ किया। कई हज़ार दैत्यों को मारकर उन्होंने हिरण्यकशिपु को सायंकाल के समय (जब न दिन था, न रात थी) राजमहल की देहली पर (जो भवन के भीतर थी, न बाहर) अपने नाख़ूनों से (जो कि शस्त्र नहीं थे) जंघा पर रखकर मार डाला। <ref>[[महाभारत]], [[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]], अध्याय 38</ref>
 
*हिरण्यकशिपु ने तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न करके अवध्य होने का वर प्राप्त किया। तदुपरांत देवतागण उसके निंरकुश उद्धत रूप से त्रस्त हो गये, अत: विष्णु नरसिंह का रूप धारण करके हिरण्यकशिपु की सभा में गये। उनका हिरण्यकशिपु से युद्ध हुआ जिसमें वह (हिरण्यकशिपु) मारा गया। <ref>हरिवंश पुराण, भविष्यपर्व, 41-47,</ref>
 
*हिरण्यकशिपु ने तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न करके अवध्य होने का वर प्राप्त किया। तदुपरांत देवतागण उसके निंरकुश उद्धत रूप से त्रस्त हो गये, अत: विष्णु नरसिंह का रूप धारण करके हिरण्यकशिपु की सभा में गये। उनका हिरण्यकशिपु से युद्ध हुआ जिसमें वह (हिरण्यकशिपु) मारा गया। <ref>हरिवंश पुराण, भविष्यपर्व, 41-47,</ref>
 
+
{{प्रचार}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

Revision as of 13:01, 16 June 2011

  • hiranyakashipu atyant balavan daityaraj tha. usane kathor tapasya ke bal par brahma se yah var prapt kiya ki rat mean ya din mean, koee pashu, pakshi, jalachar, manushy devata ityadi kisi bhi prakar ke shastr se ghar ke bahar athava bhitar use nahian mar payega. varadan prapt kar vah apani amarata ke unmad mean sab par nanavidh atyachar karane laga. is prakar vah paanch karo d, ikasath lakh, sath hazar varsh tak sabako trast karata raha. devataoan ne brahma se anunay-vinay ki. brahma ne kaha ki unake bhi janak narayan haian, jo kshir sagar mean shayan kar rahe haian, vahi unaka uddhar kar payeange. devagan unaki sharan mean gaye. narayan ne adha sharir manushy ka sa tatha adha sianh ka-sa banakar narasianh vigrah dharan kiya tatha hiranyakashipu se yuddh praranbh kiya. kee hazar daityoan ko marakar unhoanne hiranyakashipu ko sayankal ke samay (jab n din tha, n rat thi) rajamahal ki dehali par (jo bhavan ke bhitar thi, n bahar) apane nakhoonoan se (jo ki shastr nahian the) jangha par rakhakar mar dala. [1]
  • hiranyakashipu ne tapasya se brahma ko prasann karake avadhy hone ka var prapt kiya. taduparaant devatagan usake nianrakush uddhat roop se trast ho gaye, at: vishnu narasianh ka roop dharan karake hiranyakashipu ki sabha mean gaye. unaka hiranyakashipu se yuddh hua jisamean vah (hiranyakashipu) mara gaya. [2]


tika tippani aur sandarbh

  1. mahabharat, sabhaparv, adhyay 38
  2. harivansh puran, bhavishyaparv, 41-47,

sanbandhit lekh