तम्बाकू
thumb|250px|तम्बाकू का पौधा तम्बाकू पौधे की पत्तियों से प्राप्त होता है। यह एक मादक और उत्तेजक पदार्थ है, जो 'निकोशियाना" (अंग्रेज़ी नाम : Nicotiana) जाति के पौधे की बारीक कटी हुई पत्तियों, जो कि खाने-पीने तथा सूँघने के काम आती हैं, से प्राप्त किया जाता है। किसी अन्य मादक या उत्तेजक पदार्थ की अपेक्षा तम्बाकू का प्रयोग आज सबसे अधिक मात्रा में किया जा रहा है। भारत में तम्बाकू का पौधा पुर्तग़ालियों द्वारा सन 1608 ई. में लाया गया था और तब से इसकी खेती का क्षेत्र भारत के लगभग सभी भागों में फैल गया है। भारत विश्व के उत्पादन का लगभग 7.8 प्रतिशत तम्बाकू उत्पन्न करता है।
उत्पत्ति तथा इतिहास
तम्बाकू की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई, इसका ठीक पता नहीं चलता। कहते हैं कि, एक बार पुर्तग़ाल स्थित फ्राँसीसी राजदूत 'जॉन निकोट' ने अपनी रानी के पास तम्बाकू का बीज भेजा और तभी से इस पौधे का प्रवेश प्राचीन संसार में हुआ। निकोट के नाम को अमर रखने के लिये तम्बाकू का वानस्पतिक नाम 'निकोशियाना' रखा गया। तम्बाकू दक्षिणी अमेरिका का पौधा माना जाता है। इसकी खेती ऐतिहासि काल से हाती चली आ रही है। यद्यपि तम्बाकू अयनवृत्तीय पौधा है, तथापि इसकी सफल खेती अन्य स्थानों में भी होती है, क्योंकि यह अपने को विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु के अनुकूल बना लेता है।
विभिन्न जातियाँ
अब तक संसार में तम्बाकू की 60 विभिन्न जातियाँ मिल चुकी हैं। इनमें से 'निकोशियाना टबैकम' और 'निकोशियाना रस्टिका' की खेती बड़े पैमाने पर होती है। खेती तथा व्यापार की दृष्टि से केवल ये ही दो जातियाँ उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
भारत में तम्बाकू का आगमन
ऐसा माना जाता है कि, 17वीं सदी में पुर्तग़ालियों द्वारा भारत में तम्बाकू की खेती का प्रारंभ हुआ। 17वीं, 18वीं सदियों में यूरोपीय यात्रियों ने भारत में तम्बाकू की खेती और उसके उपयोग का उल्लेख किया है। मुग़ल सम्राट जहाँगीर के समय में तम्बाकू की खेती का प्रचार नहीं हो पाया, क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी, कि तम्बाकू पीनेवालों के होठों को काट दिया जाएगा। व्हाइटलॉ आइन्स्ली की लिखी हुई 'मेटिरिया इंडिका' नामक पुस्तक में देशी तथा यूरोपीय डॉक्टरों द्वारा भारत में दवा संबंधी प्रयोजनों के लिये तम्बाकू के उपयोग के बारे में लिखा है। सामाजिक रुकावटों के अभाव के कारण अब धूम्रपान सरलता से अपनाई जानेवाली आदत बन गई है।
राजस्व प्राप्ति का साधन
आज विश्वभर में अमेरीका तथा चीन के बाद बड़े पैमाने पर तम्बाकू पैदा करने वाला तीसरा राष्ट्र भारत है। आज भारत तथा विश्व में अन्य राष्ट्रों की सरकारों के लिये तम्बाकू कर के रूप में कामधेनु के समान है। कृषक के लिये तम्बाकू बहुत ही मुख्य नक़द शस्य (फ़सल) है। प्रतिवर्ष अनुमानत: 45 करोड़ रुपए तम्बाकू की खेती से उत्पादकों को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त केंद्रीय सरकार को 45 करोड़ रुपये तम्बाकू उत्पादन शुल्क, अनुमानत: दो करोड़ निर्यातकर और देश को 16 करोड़ की मूल्य का विदेशी विनिमय मिलता है। thumb|300px|left|तम्बाकू तम्बाकू की खेती करने वाले निर्माता, निर्यातक तथा अनगिनत मध्यवर्ती लोग इससे खूब लाभ उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त तम्बाकू के विभिन्न उद्योगों में लाखों व्यक्ति जीविका पा रहे हैं। भारत तम्बाकू में स्वयं समृद्ध है और अपनी पैदावार का 16-17 प्रतिशत दुनिया के विभिन्न भागों को निर्यात करता है।
भारत में तम्बाकू की पैदावार
सब फ़सलों का केवल 0.28 प्रतिशत भाग ही भारत में तम्बाकू की खेती होती है। सन् 1959 में तम्बाकू की खेती का क्षेत्र 8,96,000 एकड़ था। इसमें अनुमानत: 5,89,00,000 पाउंड तम्बाकू पैदा हुआ। भारत में आंध्र प्रदेश तम्बाकू उत्पादन का प्रधान केन्द्र है। यहाँ तम्बाकू उत्पादन का 66 प्रतिशत तथा देश के वर्जीनिया सिगरेट तम्बाकू का 95 प्रतिशत पैदा होता है। तम्बाकू पैदा करने वाले अन्य क्षेत्र हैं: महाराष्ट्र, गुजरात, मद्रास, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, हैदराबाद, मैसूर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब।
भौगोलिक दशाएँ
तम्बाकू की खेती के समय निम्नलिखित भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता रहती है-
- तापमान - तम्बाकू की पैदावार का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है। इसका उत्पादन समुद्र के धरातल से लेकर 1800 मीटर की ऊंचाई तक भी किया जा सकता है। इसके पूर्ण विकास के लिए तापमान 18° से 40° सेल्सियस के मध्य ठीक रहता है। पाला तम्बाकू के लिए घातक है। अतः इसकी खेती वहीं की जाती है, जहाँ पाले का 200 दिन तक भय नहीं रहता, जैसे- पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र एवं अन्य दक्षिणी राज्यों में।
- वर्षा - इसके लिए साधारणतः 50 से 100 सेटीमीटर वर्षा ही चाहिए। इससे अधिक वर्षा वाले भागों में इसकी खेती नहीं की जा सकती। पत्तियों के पकने के समय वर्षा हो जाने से इसकी किस्म बिगड़ जाती है। पकने के समय स्वच्छ आकाश और तेज धूप का होना आवश्यक है। इसकी जड़ों में जल एकत्रित नहीं होना चाहिए, अतः तम्बाकू की कृषि नदियों की ढालू घाटियों और पठारी भागों पर अधिक की जाती है।
- मिट्टी - तम्बाकू के लिए गहरी दोमट अथवा मिश्रित लाल व कछारी मिट्टी उपयुक्त रहती है। तम्बाकू भूमि में से उपजाऊ तत्वों को बहुत जल्दी खींच लेती है, अतः पोटाश, फ़ॉस्फ़ोरिक ऐसिड और लोहांश के रूप में खाद की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर हरी या रासायनिक खाद (अमोनियम सल्फेअ व फ़ॉस्फेट) दी जाती है।
- श्रम - तम्बाकू के पौधे लगाने, काटने, पत्तियों के सुखाने और तेयार करने में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
तम्बाकू की किस्में
तम्बाकू शीतकाल में पैदा होती है। जहाँ सिंचाई की सुविधाएँ प्राप्त हैं, वहाँ दो फ़सलें भी प्राप्त की जाती हैं। पहली फ़सल जनवरी से जून तक तथा दूसरी अक्टूबर से मार्च तक। तम्बाकू की किस्म मिट्टी, अपने रंग, वज़न और खाद पर निर्भर करती है। मौसम में हल्के परिवर्तन एवं पत्तियों की छंटनी और सफाई और तैयार करने की विशेष विधि का भी किस्म पर प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः कहा जा सकता है कि ठण्डी नम, ग्रीष्म ऋतु और हल्की नरम भूमि होने पर पत्तियाँ अच्छे रेशे वाली और मधुर स्वाद वाली होती हैं, किन्तु जब भूमि कठोर और तापमान ऊँचा रहता है तो पत्तियाँ मोटी और तेज स्वाद वाली होती है।
भारत में लगभग 60 किस्म की तम्बाकू बोयी जाती है, किन्तु इनमें दो ही मुख्य हैं- 'निकोटिना टुवैकम' और 'निकोटिना रस्टिका'। भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल प्रथम किस्म के अन्तर्गत है। टुवैकम सारे भारत में बोयी जाती है। इसमें गुलाबी रंग के के फूल होते हैं। इसका पौधा लम्बा और पत्तियाँ बड़ी होती हैं। सिगरेट, चुरुट, बीड़ी, हुक्का तथा खाने और सूंधनी बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है। बिहार का उत्तरी मैदान एवं कृष्णा-गोदावरी डेल्टा की जलवायु उष्णार्द्र होने के कारण ये क्षेत्र तम्बाकू उत्पादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। चूंकि रस्टिका तम्बाकू को ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है, अतः यह मुख्यतः उत्तरी और उत्तर-पूर्वी भारत में पैदा की जाती है, इसका पौधा छोटा, पत्तियाँ रूखी और भारी होती हैं। रंग काला और महक तेज होती है। इसका उपयोग हुक्का, खाने और सूंघनी बनाने में होता है। thumb|250px|left|तम्बाकू के फूल
भारत में उत्पादन के क्षेत्र
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख से 3.5 लाख हेक्टेअर क्षेत्र पर तम्बाकू की कृषि होती है। देश का लगभग 85 प्रतिशत तम्बाकू का उत्पादन क्षेत्र मात्र चार राज्यों आन्ध्र प्रदेश (36 प्रतिशत), कर्नाटक (24 प्रतिशत), गुजरात (21 प्रतिशत) तथा बिहार (4 प्रतिशत) में है। तम्बाकू उत्पादन की दृष्टि से आन्ध्र प्रदेश का स्थान प्रथम, गुजरात का द्वितीय तथा कर्नाटक का तृतीय स्थान है। तम्बाकू उत्पादन का शेष क्षेत्र तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों में है।
आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर, कृष्णा, पूर्वी और पश्चिमी गोदावरी ज़िले तथा तेलंगाना क्षेत्र में तम्बाकू अधिक पैदा की जाती है, किन्तु दो तिहाई से भी अधिक क्षेत्र गुंटूर ज़िले में है। इस क्षेत्र की मिट्टी काले रंग की है, जिसमें चूने की मात्रा कम है। इसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है। पत्तियों की तैयारी के समय पर्याप्त आर्द्रता रहती है, जिससे पत्तियाँ सुन्दर और उत्तम किस्म की होती हैं। गरम जलवायु व नम मिट्टी तथा सूर्य की धूप मिलने से यहाँ विभिन्न प्रकार की वर्जीनिया तम्बाकू तथा नाटू, थोक आकू आदि उगायी जाती हैं। मुख्यतः चुरुट और सिगार बनाने क काम में लायी जाती है।
उत्तरी बिहार में बिहार के समस्तीपुर, दरभंगा, मुंगेर और पूर्णिया ज़िले तथा पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी, माल्दा, हुगली, कूचबिहार और बहरामपुर ज़िले सम्मिलित हैं। गंगा के ढालू मैदान की उपजाऊ मिट्टी इसकी कृषि के लिए आदर्श है। यहाँ हुक्के के लिए उपयोगी एन टुबैकम, एन रस्टिका की विविध किस्में (विलायती, मोतीहारी और जट्टी) पैदा की जाती हैं। खाने और सूंघने की तम्बाकू भी यहाँ पैदा की जाती है।
गुजरात राज्य के खेड़ा ज़िले में आनन्द, घोरसद, पेटलाद और नाडियाड ताल्लुके चरोत्तर क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस प्रदेश में तम्बाकू की विभिन्न किस्में (निकोटिना रस्टिका और वर्जीनिया टुबकैम) बोयी जाती है। यहाँ की तम्बाकू बीड़ी के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, मिराज और सतारा ज़िले में निपानी क्षेत्र में मुख्यतः बीड़ी की तम्बाकू उगायी जाती है। यहाँ गहरी काली और गहरे लाल रंग की मिट्टी में तम्बाकू पैदा की जाती है। कर्नाटक के वेलगावी ज़िले में उत्तम तम्बाकू पैदा की जाती है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी, मेरठ, बुलन्दशहर, मैनपुरी, सहारनपुर, कन्नौज और फ़र्रुख़ाबाद ज़िले; पंजाब के अमृतसर, जालन्धर, गुरुदासपुर तथा फ़िरोजपुर ज़िले और हरियाणा के गुड़गांव, करनाल और अम्बाला ज़िले तम्बाकू के मुख्य उत्पादक शहर हैं। यहाँ हुक्का के लिए तथा खाने के लिए बढि़या किस्म की कलकतिया तम्बाकू उगायी जाती है।
तमिलनाडु राज्य के मदुरै, कोयम्बटूर, तंजावुर, डिंडीगुल, तिरुचिरापल्ली, ज़िलों में इसकी कृषि होती है। इसमें सिगार और चुरुट में भरी जाने वाली तथा खाने और सूंघने की तम्बाकू उगायी जाती है।
व्यापार
देश में तम्बाकू की औसत उत्पादकता 1500 से 1600 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर है। उत्पादन का अधिकांश देश में खप जाता है। निर्यात के लिए अधिक मात्रा नहीं बच पाती। फिर भी यहाँ से बिना तैयार की हुई तम्बाकू का निर्यात किया जाता है। यह निर्यात संयुक्त राज्य अमरीका, रूस, अदन, बेल्जियम, श्रीलंका, बांग्लादेश, चीन, नीदरलैण्ड्स, फ़्राँस, दक्षिण अफ़्रीका, ब्रिटेन, मिस्र, सिंगापुर, जापान और हांगकांग को किया जाता है। निर्यात कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई बन्दरगाहों द्वारा होता है। उच्च कोटि की सिगरेटों में मिश्रण के लिए संयुक्त राज्य अमरीका में गरम वायु में सुखायी गयी तम्बाकू आयात की जाती है। कुछ तम्बाकू मिस्र, पाकिस्तान और म्यांमार से भी आयात होती है।
विभिन्न उपयोग
thumb|300px|सूखते हुए तम्बाकू के पौधे एन. रस्टिका जाति के तम्बाकू का अधिकांश भाग हुक्के में पीने के लिये प्रयुक्त होता है। एन. टवैकम जाति का तम्बाकू सिगरेट, बीड़ी, सुँधनी और खानेवाले तम्बाकू के काम में आता है। वर्जीनिया तम्बाकू, जो अधिकतर आंध्र प्रदेश राज्य में उगाया जाता है और सिगरेट बनाने के काम में प्रयुक्त होता है, व्यापार की दृष्टि से प्रधान है। बर्ली तम्बाकू का सिगरेटों में संमिश्रण के लिये अधिकतर उपयोग किया जाता है। नाटू (देशी) तम्बाकू, जो की 'चुट्ट' नाम से प्रसिद्ध है, छोटे और हाथ से लपेटे जाने वाले चुरुट बनाने के काम आता है। इस तम्बाकू की हल्की तथा भूरे रंग की पत्तियों का सस्ती सिगरेटों के निर्माण में उपयोग किया जाता है। गहरे भूरे रंग की पत्तियाँ, पाइप में पीने के तम्बाकू की विभिन्न किस्में तैयार करने के लिये 'यूनाइटेड किंगडम' को निर्यात की जाती हैं। दक्षिण मद्रास के दिंडुकल, तिरुचिरापल्ली और कोयंवटूर ज़िलों में उगाया गया प्रमुख जाति का तम्बाकू चुरुट और सिगार बनाने में तथा खानेवाला तम्बाकू तैयार करन में काम आता है।
तम्बाकू के विभिन्न नाम
यद्यपि तम्बाकू नाम से एक ही फ़सल का आभास होता है, तथापि विभिन्न उपयागों में आने वाले तम्बाकूओं की खेती तथा सिझाई में इतना अंतर है कि, उनके भिन्न-भिन्न नाम रख दिए गए हैं, जैसे- 'हुक़्क़ा तम्बाकू', गरम हवा से सिझाया गया 'सिगरेट तम्बाकू', धूप में सुखाया गया 'सिगरेट तम्बाकू' इत्यादि।
पौधशाला तैयार करना
तम्बाकू रोपित फ़सल है, जिसकी सफलता उसकी पौधशाला पर निर्भर है। यदि सुदृढ़ स्वस्थ और एक ही अवस्था के पौधे नहीं लगाए जाएँगे, तो फ़सल अच्छी नहीं होती है। पौधशाला की भूमि का चुनाव करते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहए कि, स्थान ऊँचाई पर हो, पानी का निकास अच्छा हो तथा सिंचाई का साधन निकट हो। हर साल एक ही भूमि पर पौधशाला नहीं लेनी चाहिए। भूमि पर 4 फुट चौड़ी पटरियों पर पौधशाला उगानी चाहिए। पटरियों के बीच 1.1/2 फुट चौड़ा रास्ता आने जाने, पानी निकालने और काम करने के लिये छोड़ना चाहिए। आवश्यकतानुसार बीज को लेकर बालू या राख में मिलाकर बोने के बाद हथेली से पीओ देना चाहिए तथा पानी देते रहना चाहिए। एन. टबैकम का आधा सेर से एक सेर तक तथा एन. रस्टिका का दो से तीन सेर तक बीज एक एकड़ पौधशाला के लिये पर्याप्त होता है।
पौध-रोपण
जब पौधे 4-6 इंच बड़े हो जाते हैं, तो उनको अच्छी तरह तैयार किए हुए खेतों में लगा देते हैं। तम्बाकू की एन. टबैकम जाति के पौधों को सामान्यत: 2.1/2 से 3 फुट की दूरी पर तथा एन. रस्टिका के पौधों को 1.1/2 फुट की दूरी पर लगाते हैं। ये दूरियाँ कतार से कतार तथा पेड़ से पेड़ के बीच रखी जाती हैं। रोपाई शाम को करनी चाहिए। कहीं-कहीं नम खेत में रोपाई की जाती है और कहीं-कहीं रोपाई के बाद तुरंत पानी देते हैं।
ध्यान रखने योग्य तथ्य
तम्बाकू की फ़सल के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य मुख्य रूप से स्मरण रखने चाहिए -
- आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई और गुड़ाई करते रहना चाहिए।
- तम्बाकू के फूलों को तोड़ना अति आवश्यक है, नहीं तो पत्ते हलके पड़ जाएँगे और फलस्वरूप उपज कम हो जाएगी तथा पत्तियों के गुणों में भी कमी आ जाएगी।
- फूल तोड़ने के बाद पत्तियों के बीच की सहायक कलियों से पत्तियाँ निकलने लगती हैं, उनको भी समयानुसार तोड़ते रहना चाहिए।
- बीज के लिये छोड़े जाने वाले पौधों के फूलों को नहीं तोड़ना चाहिए।
पत्तियों को सिझाना
पके हुए पेड़ों को जड़ से काटकर या पकी पत्तियों को तोड़कर सिझाते हैं। सिझाने के तरीकों में विशेष अंतर है। सिझाई उस क्रिया का नाम है, जिसके द्वारा पत्तियाँ सुखाकर बेचने योग्य बनाई जाती हैं। इस क्रिया में बहुत से रासायनिक परिवर्तन होते हैं और नमी की मात्रा घटकर 12-14 प्रतिशत रह जाती है। अधिक नम तम्बाकू रखने से वह सड़ जाती है। सिझाई हुई तम्बाकू को ही खाने, पीने या सूँधने के काम में लाते हैं। हुक़्क़ा तम्बाकू का डंठल भी पीने के काम आता है। तम्बाकू की बीमारियों तथा कीड़ो का भी समुचित निरोध करते रहना चाहिए, नहीं तो फ़सल को हानि पहुँच सकती है।
तम्बाकू का तैयार माल
भारत में तम्बाकू के तैयार माल सिगरेट, सिगार, बीड़ी, सुँघनी, चबाया जाने वाला (खैनी) तम्बाकू और हुक़्क़ा तम्बाकू हैं। तम्बाकू के बीज से तेल भी निकलता है। इस तेल का वार्निश और रंग के उद्योग में लाभदायक रूप से उपयोग किया जा सकता है। इसकी खली का पशुओं को खिलाने या खेतों के लिए खाद के रूप में भी उपयोग हो सकता है।
मादक पदार्थ
तम्बाकू में मादकता या उत्तेजना देने वाली वस्तु 'निकोटिन' होती है। जिस तम्बाकू में जितनी अधिक 'निकोटिन' होगी, वह उतना ही तेज़ होगा। बीज में निकोटिन नहीं होता।
भारत में विकास
आजकल भारत में 'भारतीय केंद्रीय तम्बाकू अनुसंधान समिति', मद्रास द्वारा तम्बाकू के उत्पादन और व्यवसाय के विकास का कार्य किया जा रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ