स्वस्तिक का परिचय
स्वस्तिक का परिचय
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विवरण | पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न 'स्वस्तिक' अपने आप में विलक्षण है। यह देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक है। |
स्वस्तिक का अर्थ | सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। संस्कृत व्याकरण के अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है- वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो"। |
स्वस्ति मंत्र | ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा । स्वस्ति न-ह ताक्षर्यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥ |
अन्य जानकारी | भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक चिह्न को विष्णु, सूर्य, सृष्टिचक्र तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक मानकर इसे प्रथम वन्दनीय भी माना है। |
स्वस्तिक पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न है, जो अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ-लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है।
शुभ-मंगल का प्रतीक
भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही स्वस्तिक को शुभ मंगल का प्रतीक माना जाता है। जब कोई भी शुभ काम करते हैं तो सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह अंकित करते हैं और उसकी पूजा करते हैं। स्वस्तिक का शाब्दिक अर्थ होता है- "अच्छा या मंगल करने वाला।" स्वस्तिक चिन्ह को हिन्दू धर्म ने ही नहीं सभी धर्मों ने परम पवित्र माना है। हिन्दू संस्कृति के प्राचीन ऋषियों ने अपने धर्म के आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिन्हों की रचना की, ये चिन्ह मंगल भावों को प्रकट करते हैं, ऐसा ही एक चिन्ह है- 'स्वस्तिक'।
- प्रकार
स्वस्तिक को मंगल चिन्हों में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है और पुरे विश्व में इसे सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। इसी कारण किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। स्वस्तिक दो प्रकार का होता है-
- दायाँ
- बायाँ
विश्व उत्पत्ति का मूल स्रोत
दाहिना स्वस्तिक नर का प्रतीक है और बायाँ नारी का। वेदों में ज्योतिर्लिंग को विश्व की उत्पत्ति का मूल स्त्रोत माना गया है। स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है और आड़ी रेखा सृष्टि के विस्तार का प्रतीक है तथा स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु का नाभि कमल माना जाता है, जहाँ से विश्व की उत्पत्ति हुई है। स्वस्तिक में प्रयोग होने वाले 4 बिन्दुओ को 4 दिशाओं का प्रतीक माना जाता है। कुछ विद्वान इसे गणेश का प्रतीक मानकर प्रथम पूज्य मानते हैं। कुछ लोग इनको 4 वर्णों की एकता का प्रतीक मानते हैं, कुछ इसे ब्रह्माण्ड का प्रतीक मानते हैं, कुछ इसे इश्वर का प्रतीक मानते हैं।
स्वस्तिक दो रेखाओं द्वारा बनता है और दोनों रेखाओं को बीच में समकोण स्थिति में विभाजित किया जाता है। दोनों रेखाओं के सिरों पर बायीं से दायीं ओर समकोण बनाती हुई रेखाएं इस तरह खींची जाती हैं कि वे आगे की रेखा को न छू सकें। स्वस्तिक को किसी भी स्थिति में रखा जाए, तब भी उसकी रचना एक-सी ही रहेगी। स्वस्तिक के चारों सिरों पर खींची गयी रेखाएं किसी बिंदु को इसलिए स्पर्श नहीं करतीं, क्योंकि इन्हें ब्रहाण्ड के प्रतीक स्वरूप अन्तहीन दर्शाया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- स्वस्तिक , पिरामिड और पुनर्जन्म के रहस्य
- भारतीय संस्कृ्ति का महान् प्रतीक चिन्ह- स्वस्तिक
- स्वास्थ्य व सौभाग्य घर लाते हैं, स्वस्तिक और मंगल कलश