लॉर्ड नार्थब्रुक: Difference between revisions

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*[[मेयो लॉर्ड|मेयो]] के बाद [[1872]] ई. में नार्थब्रुक [[भारत]] का [[वायसराय]] बना।
[[चित्र:Lord-Northbrook.jpg|thumb|लॉर्ड नार्थब्रुक]]
*नार्थब्रुक के समय में [[बंगाल]] में भयानक अकाल पड़ा। उसने [[बड़ौदा]] के मल्हार राव गायकवाड़ को भ्रष्टाचार के आरोप में पदच्युत कर [[मद्रास]] भेज दिया।
'''लॉर्ड नार्थब्रुक''' [[1872]] ई. से [[1876]] ई. तक [[भारत]] का [[वाइसराय]] और [[गवर्नर-जनरल]] रहा। वह 'ग्लैडस्टोन' के विचारों का समर्थक और उदार दल का था। भारत में उसकी नीति "करों में कमी, अनावश्यक क़ानूनों को न बनाने तथा [[कृषि]] योग्य भूमि पर भार कम करने" की थी।
*[[1873]] ई. में उसने घोषणा की "मेरा उद्देश्य करों को हटाना तथा अनावश्यक वैधानिक कार्यवाहियों को बंद करना है"।
==करों में कमी==
*इसके समय में [[पंजाब]] का प्रसिद्ध कूका आन्दोलन हुआ। उसने [[अफ़गानिस्तान]] के सन्दर्भ में हस्तक्षेप नीति का पालन किया।
लॉर्ड नार्थब्रुक मुक्त व्यापार का समर्थक था, परन्तु आयात होने वाली वस्तुओं पर अल्प करों से होने वाली आय को तिलांजलि नहीं दे सका। उसने तेल, [[चावल]], नील और लाख को छोड़कर निर्यात होने वाली समस्त वस्तुओं पर से निर्यात कर हटा दिया और आयात करों में भी 7 प्रतिशत से 5 प्रतिशत की कमी कर दी। परन्तु इस अल्प आयात कर का भी लंकाशायर के सूती उद्योगपतियों ने विरोध किया। परिणामस्वरूप लॉर्ड डिजरेली की अनुदार सरकार तथा तत्कालीन [[भारत]] मंत्री लॉर्ड सैलिबरी ने उद्योगपतियों के हितों को ध्यान में रखकर 5 प्रतिशत के आयात कर को भी हटा देने पर बल दिया। इस कारण भारत मंत्री (लॉर्ड सैलिसबरी) और नार्थब्रुक में मतभेद हो गया। यह मतभेद [[अफ़ग़ानिस्तान]] के प्रति अपनायी जाने वाली नीति के प्रश्न पर और भी बढ़ गया।
*रूस के अफ़गानिस्तान की तरफ बढ़ने के कारण शेर अली ने भयभीत होकर नार्थब्रुक से अंग्रेज़ी संरक्षण की मांग की, परन्तु नार्थब्रुक ने ऐसा कर पाने में विवशता का परिचय दिया।
==शेरअली का प्रस्ताव==
*जब गृह सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान में एक अंग्रेज़ रेजीडेन्ट रखना चाहा, नार्थब्रुक ने सरकार की इस नीति के विरोध में [[1876]] ई. में इस्तीफा दे दिया।
[[1873]] ई. में जब [[रूस]] ने कीब पर अधिकार कर लिया, तब अफ़ग़ानिस्तान के अमीर [[शेरअली]] ने भारत की [[अंग्रेज़]] सरकार से और भी निकट के मैत्री सम्बन्ध का प्रस्ताव रखा। भविष्य में रूस के आक्रमण और साम्राज्य विस्तार को ध्यान में रखकर यह संधि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। नार्थब्रुक शेरअली की इस प्रार्थना को उचित समझता था, इसलिए उसने ब्रिटिश सरकार से अफ़ग़ानिस्तान के साथ इस आशय का लिखित समझौता कर लेने की अमुमति चाही। किन्तु [[इंग्लैण्ड]] की सरकार ने अनुमति देना स्वीकार न किया और शेरअली को केवल साधारण सहायता का वचन देने को कहा गया। किन्तु इंग्लैण्ड में डिजरैली की सरकार बनते ही ब्रिटिश मंत्रिमंडल की नीतियों में परिवर्तन आ गया।
*इसके समय में स्वेज नहर के खुल जाने के कारण [[ब्रिटेन]] और भारत के मध्य व्यापार में वृद्धि हुई।
==सैलिसबरी का आदेश==
डिजरैली ने अफ़ग़ानिस्तान के प्रति [[1873]] ई. से चली आती हुई अत्यधिक निष्क्रियता की नीति को त्यागकर अग्रसर नीति को अपनाने में रुचि प्रकट की। नये भारत मंत्री लॉर्ड सैलिसबरी ने [[1874]] ई. में नार्थब्रुक को आदेश दिया कि वे अमीर शेरअली से अपने राज्यों में एक अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखने को कहें। किन्तु नार्थब्रुक ने इस मांग को अनुचित समझा, क्योंकि थोड़े हि दिन पूर्व [[भारत]] सरकार ने अमीर के संधि प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उनके विचार से रेजीडेण्ट रखने का प्रस्ताव अनुचित था और उसके भयंकर परिणाम हो सकते थे।
==त्यागपत्र==
इन सब बातों के चलते लॉर्ड नार्थब्रुक ने [[अंग्रेज़]] सरकार के साथ पहले से ही मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे दिया। कहना न होगा कि [[भारत की अर्थव्यवस्था|भारतीय अर्थव्यवस्था]] की स्थिरता की दृष्टि से उक्त आयात कर का प्रचलित रहना अत्यावश्यक था।


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thumb|लॉर्ड नार्थब्रुक लॉर्ड नार्थब्रुक 1872 ई. से 1876 ई. तक भारत का वाइसराय और गवर्नर-जनरल रहा। वह 'ग्लैडस्टोन' के विचारों का समर्थक और उदार दल का था। भारत में उसकी नीति "करों में कमी, अनावश्यक क़ानूनों को न बनाने तथा कृषि योग्य भूमि पर भार कम करने" की थी।

करों में कमी

लॉर्ड नार्थब्रुक मुक्त व्यापार का समर्थक था, परन्तु आयात होने वाली वस्तुओं पर अल्प करों से होने वाली आय को तिलांजलि नहीं दे सका। उसने तेल, चावल, नील और लाख को छोड़कर निर्यात होने वाली समस्त वस्तुओं पर से निर्यात कर हटा दिया और आयात करों में भी 7 प्रतिशत से 5 प्रतिशत की कमी कर दी। परन्तु इस अल्प आयात कर का भी लंकाशायर के सूती उद्योगपतियों ने विरोध किया। परिणामस्वरूप लॉर्ड डिजरेली की अनुदार सरकार तथा तत्कालीन भारत मंत्री लॉर्ड सैलिबरी ने उद्योगपतियों के हितों को ध्यान में रखकर 5 प्रतिशत के आयात कर को भी हटा देने पर बल दिया। इस कारण भारत मंत्री (लॉर्ड सैलिसबरी) और नार्थब्रुक में मतभेद हो गया। यह मतभेद अफ़ग़ानिस्तान के प्रति अपनायी जाने वाली नीति के प्रश्न पर और भी बढ़ गया।

शेरअली का प्रस्ताव

1873 ई. में जब रूस ने कीब पर अधिकार कर लिया, तब अफ़ग़ानिस्तान के अमीर शेरअली ने भारत की अंग्रेज़ सरकार से और भी निकट के मैत्री सम्बन्ध का प्रस्ताव रखा। भविष्य में रूस के आक्रमण और साम्राज्य विस्तार को ध्यान में रखकर यह संधि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। नार्थब्रुक शेरअली की इस प्रार्थना को उचित समझता था, इसलिए उसने ब्रिटिश सरकार से अफ़ग़ानिस्तान के साथ इस आशय का लिखित समझौता कर लेने की अमुमति चाही। किन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने अनुमति देना स्वीकार न किया और शेरअली को केवल साधारण सहायता का वचन देने को कहा गया। किन्तु इंग्लैण्ड में डिजरैली की सरकार बनते ही ब्रिटिश मंत्रिमंडल की नीतियों में परिवर्तन आ गया।

सैलिसबरी का आदेश

डिजरैली ने अफ़ग़ानिस्तान के प्रति 1873 ई. से चली आती हुई अत्यधिक निष्क्रियता की नीति को त्यागकर अग्रसर नीति को अपनाने में रुचि प्रकट की। नये भारत मंत्री लॉर्ड सैलिसबरी ने 1874 ई. में नार्थब्रुक को आदेश दिया कि वे अमीर शेरअली से अपने राज्यों में एक अंग्रेज़ रेजीडेण्ट रखने को कहें। किन्तु नार्थब्रुक ने इस मांग को अनुचित समझा, क्योंकि थोड़े हि दिन पूर्व भारत सरकार ने अमीर के संधि प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उनके विचार से रेजीडेण्ट रखने का प्रस्ताव अनुचित था और उसके भयंकर परिणाम हो सकते थे।

त्यागपत्र

इन सब बातों के चलते लॉर्ड नार्थब्रुक ने अंग्रेज़ सरकार के साथ पहले से ही मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे दिया। कहना न होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता की दृष्टि से उक्त आयात कर का प्रचलित रहना अत्यावश्यक था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 221।

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