दीपक: Difference between revisions

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*प्रत्येक धार्मिक कार्य में दीप प्रज्वलित करके उसका नमन किया जाता है।
[[चित्र:Diya-Diwali-1.jpg|thumb|250px|[[दीपावली]] की रात्रि में जलता हुए दीपक]]
*दीपक की ज्योति 'परब्रह्म' स्वरूप है।
'''दीपक''' प्रकाश (जीवन), उल्लास, पवित्रता और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है। आत्मा को 'स्वयंज्योति', 'स्वयंप्रकाश' कहा जाता है। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ। हिन्दू घरों में [[तुलसी]] चौरे पर दीया जलाने की प्रथा है। दीया जलाकर प्रार्थना की जाती है - 'हे दीपक रूप ज्योति! तू शुभ तथा कल्याण करती है, आरोग्य एवं धन संपत्ति प्रदान करती है, किसी को भी शत्रु समझने की बुद्धि का नाश करती है, इसलिए मैं तुझे नमस्कार करता हूँ। ऐसा कहा जाता है कि अकाल मृत्यु टालने के लिए [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] की रात्रि के आरम्भ में 14 दीये प्रज्वलित करने से [[यमराज]] संतुष्ट होते हैं।  
*दीपक प्रकाश (जीवन), उल्लास, पवित्रता और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है।  
==पूजन में दीपक का महत्त्व==
*आत्मा को 'स्वयंज्योति', 'स्वयंप्रकाश' कहा जाता है।  
जब भी हम किसी देवता का पूजन करते हैं तो पूजा का सबसे ख़ास हिस्सा दीपक होता है। पूजन में सामान्यत: [[घी]] या तेल का दीपक हम जलाते हैं। दीपक कैसा हो, उसमें कितनी बत्तियां हों, इसका भी एक विशेष महत्व है। उसमें जलने वाला तेल, घी किस-किस प्रकार का हो इसका भी विशेष महत्व है। यही महत्व उस देवता की कृपा और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
*'तमसो मा ज्योतिर्गमय' मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ।  
====सूर्य के लिए सरसों का दीपक====
*हिन्दू घरों में [[तुलसी]] चौरे पर दीया जलाने की प्रथा है।  
यदि हमें आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो, तो नियम पूर्वक अपने घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। अगर हमें शत्रुओं से पीड़ा हो, तो सरसों के तेल का दीपक भैरव जी के सामने जलाना चाहिए। भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]] की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। [[शनि ग्रह]] की प्रसन्नता के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
*दीया जलाकर प्रार्थना की जाती है - 'हे दीपक रूप ज्योति! तू शुभ तथा कल्याण करती है, आरोग्य एवं धन संपत्ति प्रदान करती है, किसी को भी शत्रु समझने की बुद्धि का नाश करती है, इसलिए मैं तुझे नमस्कार करता हूँ।  
 
*ऐसा कहा जाता है कि अकाल मृत्यु टालने के लिए [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] की रात्रि के आरम्भ में 14 दीये प्रज्वलित करने से [[यमराज]] संतुष्ट होते हैं।  
* पति की आयु के लिए महुए के तेल का और [[राहु]]-[[केतु]] ग्रह के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। किसी भी देवी या देवता की पूजा में शुद्ध [[गाय]] का घी या एक फूल बत्ती या [[तिल]] के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए। दो मुखी घी वाला दीपक माता [[सरस्वती]] की आराधना के समय और शिक्षा प्राप्ति के लिए जलाना चाहिए। भगवान [[गणेश]] की कृपा प्राप्ति के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।
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==सम्बंधित लेख==
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[[चित्र:Diya-Diwali-1.jpg|thumb|250px|दीपावली की रात्रि में जलता हुए दीपक]] दीपक प्रकाश (जीवन), उल्लास, पवित्रता और शुभकामनाओं का प्रतीक माना जाता है। आत्मा को 'स्वयंज्योति', 'स्वयंप्रकाश' कहा जाता है। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ। हिन्दू घरों में तुलसी चौरे पर दीया जलाने की प्रथा है। दीया जलाकर प्रार्थना की जाती है - 'हे दीपक रूप ज्योति! तू शुभ तथा कल्याण करती है, आरोग्य एवं धन संपत्ति प्रदान करती है, किसी को भी शत्रु समझने की बुद्धि का नाश करती है, इसलिए मैं तुझे नमस्कार करता हूँ। ऐसा कहा जाता है कि अकाल मृत्यु टालने के लिए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि के आरम्भ में 14 दीये प्रज्वलित करने से यमराज संतुष्ट होते हैं।

पूजन में दीपक का महत्त्व

जब भी हम किसी देवता का पूजन करते हैं तो पूजा का सबसे ख़ास हिस्सा दीपक होता है। पूजन में सामान्यत: घी या तेल का दीपक हम जलाते हैं। दीपक कैसा हो, उसमें कितनी बत्तियां हों, इसका भी एक विशेष महत्व है। उसमें जलने वाला तेल, घी किस-किस प्रकार का हो इसका भी विशेष महत्व है। यही महत्व उस देवता की कृपा और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

सूर्य के लिए सरसों का दीपक

यदि हमें आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो, तो नियम पूर्वक अपने घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। अगर हमें शत्रुओं से पीड़ा हो, तो सरसों के तेल का दीपक भैरव जी के सामने जलाना चाहिए। भगवान सूर्य की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। शनि ग्रह की प्रसन्नता के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

  • पति की आयु के लिए महुए के तेल का और राहु-केतु ग्रह के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। किसी भी देवी या देवता की पूजा में शुद्ध गाय का घी या एक फूल बत्ती या तिल के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए। दो मुखी घी वाला दीपक माता सरस्वती की आराधना के समय और शिक्षा प्राप्ति के लिए जलाना चाहिए। भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।

लक्ष्मी के लिए सातमुखी दीपक

आठ और बारह मुखी दीपक भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए और साथ में पीली सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। लक्ष्मीजी की प्रसन्नता के लिए सात मुखी घी का दीपक जलाना चाहिए। भगवान विष्णु की दशावतार आराधना के समय दस मुखी दीपक जलाना चाहिए। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दीपक सामान्य गहरा होना चाहिए। पूजा की थाली में दीपक कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे मिट्टी, आटा, तांबा, चांदी, लोहा, पीतल तथा स्वर्ण धातु का। सर्व प्रकार की साधनाओं में मूंग, चावल, गेहूं, उड़द तथा ज्वार को सामान्य भाग में लेकर इसके आटे का दीपक श्रेष्ठ होता है। किसी-किसी साधना में अखंड जोत जलाने का भी विशेष विधान है, जिसे शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल के साथ भी जलाया जा सकता है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूजन में ध्यान रखें दीपक का महत्व (हिंदी) खबर धमाका। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2014।

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