जनरल डायर: Difference between revisions

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जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है। [[पंजाब]] के [[अमृतसर]] नगर में [[जलियाँवाला बाग़]] नामक स्थान पर अंग्रेज़ों की सेनाओं ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी। यह घटना 13 अप्रैल 1919  को हुई । इस घटना के बाद [[महात्मा गांधी]] ने 1920-22 के [[असहयोग आंदोलन]] की शुरुआत की। उस दिन [[वैशाखी]] का त्योहार था।
[[चित्र:General-Dyer.jpg|thumb|250px|जनरल डायर]]
'''जनरल डायर''', ब्रिटिश भारतीय सरकार का एक सेनाधिकारी था। वह अप्रैल 1919 ई. में [[अमृतसर]] [[पंजाब]] में तैनात था।
====रौलट एक्ट====
'''इस वर्ष के आरम्भ में''' [[रौलट एक्ट]] नामक अत्यन्त दमनाकरी क़ानून बनाया गया। केन्द्रीय विधान परिषद के ग़ैर-सरकारी (निर्वाचित) सदस्यों के विरोध के बावजूद यह क़ानून पास किया गया था। भारतीय जनमत की इस प्रकार की घोर उपेक्षा किये जाने से समस्त भारत में रोष उत्पन्न हो गया और [[दिल्ली]], [[गुजरात]], [[पंजाब]] आदि प्रान्तों में जगह-जगह पर इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन हुए। 10 अप्रैल को अमृतसर में जो प्रदर्शन हुआ, वह अधिक उग्र हो गया और उसमें चार यूरोपियन मारे गए। एक यूरोपीय ईसाई साध्वी को पीटा गया और कुछ बैंकों और सरकारी भवनों में आग लगा दी गई।
====सरकार का निर्णय====
{{tocright}}
'''पंजाब''' सरकार ने तुरन्त बदले की कार्रवाई करने का निश्चय किया और एक घोषणा प्रकाशित कर अमृतसर में सभाओं आदि पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर का प्रशासन जनरल डायर के नेतृत्व में सेना के सुपुर्द कर दिया। उक्त प्रतिबंध को तोड़कर जलियांवाला बाग़ में सभा का आयोजन किया गया। यह स्थान तीन तरफ़ से घिरा हुआ था। केवल एक ही तरफ़ से आने और जाने का रास्ता था।
====भीषण नर-संहार====
'''[[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड]]''' आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। जलियांवाला बाग़ में सभा का समाचार पाते ही जनरल डायर अपने 90 सशस्त्र सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग़ आया और बाग़ में प्रवेश एवं निकास के एकमात्र रास्ते को घेर लिया। उसने आते ही बाग़ में निश्शस्त्र पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को बिना किसी चेतावनी के गोली मारने का आदेश दे दिया। चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई। जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए तथा 1208 घायल हुए। हताहतों के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं की गई और जनरल डायर सैनिकों के साथ सदर मुक़ाम पर वापस आ गया, मानो उसने एक ऊँचे कर्तव्य का पालन किया हो। 13 अप्रैल 1919 की वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है। इस घटना के बाद [[महात्मा गांधी]] ने 1920-22 के [[असहयोग आंदोलन]] की शुरुआत की। उस दिन [[वैशाखी]] का त्योहार था।
 
====डायर के आदेश====
'''डायर''' कदाचित कुछ यूरोपियनों की हत्या के इस प्रतिशोध का पर्याप्त नहीं समझता था। अतएव उसने नगर में मार्शल लॉ लागू किया, जनता के विरुद्ध कठोर दण्डात्मक कार्रवाई तथा सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाये जाने की अपमानजनक आज्ञा दी। यह आदेश भी दिया कि '''जो भी भारतीय उस स्थान से गुज़रे, जहाँ पर यूरोपीय ईसाई साध्वी को पीटा गया था, वह उस सड़क पर पेट के बल लेटता हुआ जाए।''' डायर की यह कार्रवाई भारतीयों का दमन करने के लिए नृशंस शक्ति प्रयोग का नग्न प्रदर्शन थी। समस्त [[भारत]] में इसका तीव्र विरोध हुआ। [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] ने घृणापूर्वक '''सर''' की उपाधि सरकार को वापस कर दी। लेकिन ब्रिटिश भारतीय सरकार ने इस सार्वजनिक रोष-प्रदर्शन की कोई परवाह नहीं की। इतना ही नहीं, [[पंजाब]] सरकार ने जनरल डायर की इस बेहूदी कार्रवाई पर अपनी स्वीकृति प्रदान की और उसे सेना में उच्च पद देकर [[अफ़ग़ानिस्तान]] भेज दिया।
====निंदा====
फिर भी [[इंग्लैंण्ड]] में कुछ भले [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने जनरल डायर की कार्रवाई की निंदा की। एस्किथ ने जलियांवाला बाग़ कांड को '''अपने इतिहास के सबसे जघन्य कृत्यों में से एक''' बताया। ब्रिटिश जनमत के दबाव से तथा भारतीयों की व्यापक मांग को देखते हुए [[भारत]] सरकार ने अक्टूबर 1919 में एक जाँच कमेटी नियुक्त की, जिसका अध्यक्ष एक स्काटिश जज, [[लॉर्ड हण्टर]] को बनाया गया। कमेटी ने जाँच के पश्चात् अपनी रिपोर्ट में जनरल डायर की कार्रवाई को अनुचित बताया। भारत सरकार ने उक्त रिपोर्ट को मंज़ूर करते हुए जनरल डायर की निंदा की और उसे इस्तीफ़ा देने के लिए विवश किया। लेकिन साम्राज्य मद में चूर अंग्रेज़ों में बहुत से जनरल डायर के प्रशंसक भी थे, जिन्होंने चंदा करके धन एकत्र किया और उससे जनरल डायर को पुरस्कृत किया। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि [[ब्रिटेन]] की 'हाउस ऑफ़ लार्डस' ने जनरल डायर को [[ब्रिटिश साम्राज्य]] का शेर कहकर सम्बोधित किया।


वह रविवार का दिन था और आसपास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव ‘[[बैसाखी]]’ बनाने अमृतसर आए थे । यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल आर. ई. एच. डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेशमार्ग पर तैनात किया था। बाग़ साथ- साथ सटी ईंटों की इमारतों के पिछवाड़े की दीवारों से तीन तरफ से घिरा था। डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई। जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए।
==जनरल  डायर का तर्क==
==जनरल  डायर का तर्क==
जनरल  डायर ने अपनी कार्यवाही को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं।  
'''जनरल  डायर ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए तर्क दिये''' और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं।  


कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे। गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे। इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई ।  
कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे। गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे। इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई ।  


 
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thumb|250px|जनरल डायर जनरल डायर, ब्रिटिश भारतीय सरकार का एक सेनाधिकारी था। वह अप्रैल 1919 ई. में अमृतसर पंजाब में तैनात था।

रौलट एक्ट

इस वर्ष के आरम्भ में रौलट एक्ट नामक अत्यन्त दमनाकरी क़ानून बनाया गया। केन्द्रीय विधान परिषद के ग़ैर-सरकारी (निर्वाचित) सदस्यों के विरोध के बावजूद यह क़ानून पास किया गया था। भारतीय जनमत की इस प्रकार की घोर उपेक्षा किये जाने से समस्त भारत में रोष उत्पन्न हो गया और दिल्ली, गुजरात, पंजाब आदि प्रान्तों में जगह-जगह पर इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन हुए। 10 अप्रैल को अमृतसर में जो प्रदर्शन हुआ, वह अधिक उग्र हो गया और उसमें चार यूरोपियन मारे गए। एक यूरोपीय ईसाई साध्वी को पीटा गया और कुछ बैंकों और सरकारी भवनों में आग लगा दी गई।

सरकार का निर्णय

पंजाब सरकार ने तुरन्त बदले की कार्रवाई करने का निश्चय किया और एक घोषणा प्रकाशित कर अमृतसर में सभाओं आदि पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर का प्रशासन जनरल डायर के नेतृत्व में सेना के सुपुर्द कर दिया। उक्त प्रतिबंध को तोड़कर जलियांवाला बाग़ में सभा का आयोजन किया गया। यह स्थान तीन तरफ़ से घिरा हुआ था। केवल एक ही तरफ़ से आने और जाने का रास्ता था।

भीषण नर-संहार

जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नज़र आता है, जब उसने सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। जलियांवाला बाग़ में सभा का समाचार पाते ही जनरल डायर अपने 90 सशस्त्र सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग़ आया और बाग़ में प्रवेश एवं निकास के एकमात्र रास्ते को घेर लिया। उसने आते ही बाग़ में निश्शस्त्र पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को बिना किसी चेतावनी के गोली मारने का आदेश दे दिया। चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई। जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए तथा 1208 घायल हुए। हताहतों के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं की गई और जनरल डायर सैनिकों के साथ सदर मुक़ाम पर वापस आ गया, मानो उसने एक ऊँचे कर्तव्य का पालन किया हो। 13 अप्रैल 1919 की वह तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है। इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने 1920-22 के असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। उस दिन वैशाखी का त्योहार था।

डायर के आदेश

डायर कदाचित कुछ यूरोपियनों की हत्या के इस प्रतिशोध का पर्याप्त नहीं समझता था। अतएव उसने नगर में मार्शल लॉ लागू किया, जनता के विरुद्ध कठोर दण्डात्मक कार्रवाई तथा सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाये जाने की अपमानजनक आज्ञा दी। यह आदेश भी दिया कि जो भी भारतीय उस स्थान से गुज़रे, जहाँ पर यूरोपीय ईसाई साध्वी को पीटा गया था, वह उस सड़क पर पेट के बल लेटता हुआ जाए। डायर की यह कार्रवाई भारतीयों का दमन करने के लिए नृशंस शक्ति प्रयोग का नग्न प्रदर्शन थी। समस्त भारत में इसका तीव्र विरोध हुआ। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने घृणापूर्वक सर की उपाधि सरकार को वापस कर दी। लेकिन ब्रिटिश भारतीय सरकार ने इस सार्वजनिक रोष-प्रदर्शन की कोई परवाह नहीं की। इतना ही नहीं, पंजाब सरकार ने जनरल डायर की इस बेहूदी कार्रवाई पर अपनी स्वीकृति प्रदान की और उसे सेना में उच्च पद देकर अफ़ग़ानिस्तान भेज दिया।

निंदा

फिर भी इंग्लैंण्ड में कुछ भले अंग्रेज़ों ने जनरल डायर की कार्रवाई की निंदा की। एस्किथ ने जलियांवाला बाग़ कांड को अपने इतिहास के सबसे जघन्य कृत्यों में से एक बताया। ब्रिटिश जनमत के दबाव से तथा भारतीयों की व्यापक मांग को देखते हुए भारत सरकार ने अक्टूबर 1919 में एक जाँच कमेटी नियुक्त की, जिसका अध्यक्ष एक स्काटिश जज, लॉर्ड हण्टर को बनाया गया। कमेटी ने जाँच के पश्चात् अपनी रिपोर्ट में जनरल डायर की कार्रवाई को अनुचित बताया। भारत सरकार ने उक्त रिपोर्ट को मंज़ूर करते हुए जनरल डायर की निंदा की और उसे इस्तीफ़ा देने के लिए विवश किया। लेकिन साम्राज्य मद में चूर अंग्रेज़ों में बहुत से जनरल डायर के प्रशंसक भी थे, जिन्होंने चंदा करके धन एकत्र किया और उससे जनरल डायर को पुरस्कृत किया। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन की 'हाउस ऑफ़ लार्डस' ने जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का शेर कहकर सम्बोधित किया।

जनरल डायर का तर्क

जनरल डायर ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेज़ी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं।

कांग्रेस की जांच कमेटी के अनुमान के अनुसार एक हज़ार से अधिक व्यक्ति वहीं मारे गए थे। सैकड़ों व्यक्ति ज़िंदा कुँए में कूद गये थे। गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे। इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई ।


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