जयदेव की संगीतबद्ध प्रमुख फ़िल्में: Difference between revisions
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[[अली अकबर खान|उस्ताद अली अकबर खान]] ने नवकेतन की फ़िल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब [[संगीत]] देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही 'टैक्सी ड्राइवर' फ़िल्म से वह संगीतकार [[सचिन देव वर्मन]] के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फ़िल्म 'जोरू का भाई' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फ़िल्म 'अंजलि' में भी [[संगीत]] दिया। हालांकि ये दोनों फ़िल्में कामयाब नहीं रहीं लेकिन उनकी बनाई धुनों को | [[अली अकबर खान|उस्ताद अली अकबर खान]] ने नवकेतन की फ़िल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब [[संगीत]] देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही 'टैक्सी ड्राइवर' फ़िल्म से वह संगीतकार [[सचिन देव वर्मन]] के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फ़िल्म 'जोरू का भाई' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फ़िल्म 'अंजलि' में भी [[संगीत]] दिया। हालांकि ये दोनों फ़िल्में कामयाब नहीं रहीं लेकिन उनकी बनाई धुनों को काफ़ी सराहना मिली। जयदेव का सितारा चमका, नवकेतन की फ़िल्म 'हम दोनों' से। इस फ़िल्म में उनका संगीतबद्ध हर गाना खूब लोकप्रिय हुआ, फिर चाहे वह 'भी न जाओ छोडकर, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया', 'कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया हो या अल्लाह तेरो नाम। 'अल्लाह तेरो नाम' की संगीत रचना इतनी मकबूल हुई कि [[लता मंगेशकर]] जब भी स्टेज पर जाती हैं तो इस भजन को गाना नहीं भूलतीं। कई स्कूलों में भी बच्चों से यह भजन गवाया जाता है। उनकी एक और बड़ी कामयाब फ़िल्म रही 'रेशमा और शेरा'। इस फ़िल्म में राजस्थानी लोकधुनों पर आधारित उनका कर्णप्रिय संगीत आज भी श्रोताओं को सुकून से भर देता है। जयदेव की यादातर फ़िल्में 'जैसे आलाप' किनारे, किनारे, अनकही आदि फ्लाप रहीं लेकिन उनका संगीत हमेशा चला। जयदेव के संगीत की विशेषता थी कि वह [[शास्त्रीय]] राग, रागिनियों और लोकधुनों का इस खूबसूरती से मिश्रण करते थे कि उनकी बनायी धुनें विशिष्ट बन जाती थीं। उदाहरण के लिए 'प्रेम परबत' के [[गीत]] 'ये दिल और उनकी पनाहों के साये' को ही लीजिए, जिसमें उन्होंने पहाडी लोकधुन का इस्तेमाल करते हुए [[संतूर]] का इस खूबसूरती से प्रयोग किया है कि लगता है कि पहाड़ों से नदी बलखाती हुई बढ़ रही हो। | ||
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जयदेव के संगीत को अगर बारीकी से देखा जाये तो उन्हें दो भागों में बांटाजा सकता है, शुरूआती दौर में शास्त्रीय संगीत के साथ हे पस्चित्य संगीत का इस्तेमाल किया और दूसरे दुआर में कुछ ऐसे धुनें बनाई जो | जयदेव के संगीत को अगर बारीकी से देखा जाये तो उन्हें दो भागों में बांटाजा सकता है, शुरूआती दौर में शास्त्रीय संगीत के साथ हे पस्चित्य संगीत का इस्तेमाल किया और दूसरे दुआर में कुछ ऐसे धुनें बनाई जो काफ़ी मुश्किल होने के बावजूद लोगों में खूब लोकप्रिय हुईं। जयदेव जिन्होने कई महान् [[हिन्दी]] कवियों की रचनाओं को [[गीत|गीतों]] में ढाला जिनमे [[मैथिलीशरण गुप्त]], [[सुमित्रानन्दन पंत]], [[जय शंकर प्रसाद]], [[निराला]], [[महादेवी वर्मा]], [[माखन लाल चतुर्वेदी]] की हिंदी की कई अमर रचनाएं जयदेव जी ने संगीतबद्ध की। सही मायने में हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत के साहित्यिक संगीतकार थे।<ref>{{cite web |url=http://www.deshbandhu.co.in/entertanment/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-250811-1 |title=महान संगीतकार जयदेव|accessmonthday=22 जून |accessyear=2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
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Latest revision as of 07:59, 18 November 2017
जयदेव की संगीतबद्ध प्रमुख फ़िल्में
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पूरा नाम | जयदेव वर्मा |
प्रसिद्ध नाम | जयदेव |
जन्म | 3 अगस्त, 1919 |
जन्म भूमि | लुधियाना |
मृत्यु | 6 जनवरी, 1987 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार, अभिनेता |
पुरस्कार-उपाधि | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फ़िल्मों में गायन के अनेक मौके दिए। |
अद्यतन | 06:15, 21 जून 2017 (IST) |
भारतीय सिनेमा में जयदेव वर्मा का नाम उन संगीतकारों में लिया जाता है जिन्होंने संगीत को नया आयाम दिया।
मुख्य फ़िल्म
उस्ताद अली अकबर खान ने नवकेतन की फ़िल्म 'आंधियां', और 'हमसफर', में जब संगीत देने का जिम्मा संभाला तब उन्होंने जयदेव को अपना सहायक बना लिया। नवकेतन की ही 'टैक्सी ड्राइवर' फ़िल्म से वह संगीतकार सचिन देव वर्मन के सहायक बन गए लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से संगीत देने का जिम्मा चेतन आनन्द की फ़िल्म 'जोरू का भाई' में मिला। इसके बाद उन्होंने चेतन आनन्द की एक और फ़िल्म 'अंजलि' में भी संगीत दिया। हालांकि ये दोनों फ़िल्में कामयाब नहीं रहीं लेकिन उनकी बनाई धुनों को काफ़ी सराहना मिली। जयदेव का सितारा चमका, नवकेतन की फ़िल्म 'हम दोनों' से। इस फ़िल्म में उनका संगीतबद्ध हर गाना खूब लोकप्रिय हुआ, फिर चाहे वह 'भी न जाओ छोडकर, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया', 'कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया हो या अल्लाह तेरो नाम। 'अल्लाह तेरो नाम' की संगीत रचना इतनी मकबूल हुई कि लता मंगेशकर जब भी स्टेज पर जाती हैं तो इस भजन को गाना नहीं भूलतीं। कई स्कूलों में भी बच्चों से यह भजन गवाया जाता है। उनकी एक और बड़ी कामयाब फ़िल्म रही 'रेशमा और शेरा'। इस फ़िल्म में राजस्थानी लोकधुनों पर आधारित उनका कर्णप्रिय संगीत आज भी श्रोताओं को सुकून से भर देता है। जयदेव की यादातर फ़िल्में 'जैसे आलाप' किनारे, किनारे, अनकही आदि फ्लाप रहीं लेकिन उनका संगीत हमेशा चला। जयदेव के संगीत की विशेषता थी कि वह शास्त्रीय राग, रागिनियों और लोकधुनों का इस खूबसूरती से मिश्रण करते थे कि उनकी बनायी धुनें विशिष्ट बन जाती थीं। उदाहरण के लिए 'प्रेम परबत' के गीत 'ये दिल और उनकी पनाहों के साये' को ही लीजिए, जिसमें उन्होंने पहाडी लोकधुन का इस्तेमाल करते हुए संतूर का इस खूबसूरती से प्रयोग किया है कि लगता है कि पहाड़ों से नदी बलखाती हुई बढ़ रही हो।
- प्रतिभाओं को मौका
जयदेव नयी प्रतिभाओं को मौका देने में हमेशा आगे रहे। दिलराज कौर, भूपेन्द्र, रूना लैला, पीनाज मसानी, सुरेश वाडेकर आदि नवोदित गायकों को उन्होंने प्रोत्साहित किया और अपनी फ़िल्मों में गायन के अनेक मौके दिए।
जयदेव जी के कुछ गीत
- कभी खुद पे कभी हालत पे रोना आया
- सुबह का इन्तेज़ार कौन करे लता (जोरू का भाई 1955)
- तेरे बचपन को जवानी दुआ देती हूँ /लता (मुझे जीने दो 1963)
- चले जा रहे हैं मोहोबत के मारे ,किनारे किनारे 1963 /मन्ना डे
- हर आँख अश्कबार है /लता, किनारे किनारे (1963)
- मैं किसे अपना कहूँ आज मेरा कोई नहीं, मुकेश -लता, एक थी रीता-(1971)
जयदेव के संगीत को अगर बारीकी से देखा जाये तो उन्हें दो भागों में बांटाजा सकता है, शुरूआती दौर में शास्त्रीय संगीत के साथ हे पस्चित्य संगीत का इस्तेमाल किया और दूसरे दुआर में कुछ ऐसे धुनें बनाई जो काफ़ी मुश्किल होने के बावजूद लोगों में खूब लोकप्रिय हुईं। जयदेव जिन्होने कई महान् हिन्दी कवियों की रचनाओं को गीतों में ढाला जिनमे मैथिलीशरण गुप्त, सुमित्रानन्दन पंत, जय शंकर प्रसाद, निराला, महादेवी वर्मा, माखन लाल चतुर्वेदी की हिंदी की कई अमर रचनाएं जयदेव जी ने संगीतबद्ध की। सही मायने में हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत के साहित्यिक संगीतकार थे।[1]
- डॉ. हरिवंश राय बच्चन की कलम से निकली फ़िल्म संगीत को अनमोल सौगात, जयदेव जी द्वारा संगीतबद्ध!
'कोई गाता मैं सो जाता' !
कोई जाता मैं सो जाता - 2
संस्कृति के विस्तृत सागर में
सपनों की नौका के अंदर
दुःख सुख की लहरों में उठ गिर
बहता जाता मैं सो जाता
आँखों में लेकर प्यार अमर
आशीष हथेली में भर कर
कोई मेरा सर गोदी में रख
सहलाता मैं सो जाता
मेरे जीवन का काराजल
मेरे जीवन को हलाहल
कोई अपने स्वर में मधुमय कर
दोहराता मैं सो जाता
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महान संगीतकार जयदेव (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 जून, 2017।
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