हवा सिंह: Difference between revisions
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Latest revision as of 05:24, 16 December 2017
हवा सिंह
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पूरा नाम | हवा सिंह |
जन्म | 16 दिसम्बर, 1937 |
जन्म भूमि | भिवानी, हरियाणा |
मृत्यु | 14 अगस्त, 2000 |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | मुक्केबाज़ी (बॉक्सिंग) |
पुरस्कार-उपाधि | ‘अर्जुन पुरस्कार’ (1966), ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ (1999) |
प्रसिद्धि | मुक्केबाज़ (बॉक्सर) |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | 1972 तक हवा सिंह हैवीवेट मुकाबलों के अविजित राजा के समान खेल की दुनिया में शासन करते रहे। |
अन्य जानकारी | 1961 से 1972 तक हवा सिंह ने वजन के वर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियनशिप जीती, जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। |
अद्यतन | 05:28, 10 नवम्बर-2016 (IST) |
हवा सिंह (अंग्रेज़ी: Hawa Singh, जन्म- 16 दिसम्बर, 1937, भिवानी, हरियाणा; मृत्यु- 14 अगस्त, 2000) भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक थे। हवा सिंह ने वर्षों तक मुक्केबाजी के खेल को नई दिशा दी तथा देश का नाम रोशन किया। पहले बॉक्सर के रूप में देश की सेवा की और अन्त तक खेल से जुड़े रहे। उन्हें 1966 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया तथा 1968 में थलसेना अध्यक्ष द्वारा उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की ट्राफी प्रदान की गई। वर्ष 1999 में हवा सिंह के लिए ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ घोषित किया गया।
परिचय
हवा सिंह का जन्म 16 दिसम्बर सन 1937 में उमरवास, भिवानी (हरियाणा राज्य) में हुआ था। उनका नाम भारत में ही नहीं एशिया में ‘हेवीवेट विजेता’ के रूप में प्रसिद्ध रहा। उन्होंने एशियाई खेलों में न केवल हैवीवेट का खिताब जीता, वरन् अगले एशियाई खेलों तक उसे बरकरार रखा।[1]
कॅरियर
हवा सिंह ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अनेंकों प्रतियोगिताएं जीतीं, बल्कि अनेक बॉक्सरों ने हवा सिंह से ट्रेनिंग लेकर विजय प्राप्त की। उन्होंने अनेक मुक्केबाज कोचों को भी सफलता के गुर सिखाए। हवा सिंह को बाक्सिंग के खेल में महारत हासिल थी। उन्होंने दो बार एशियाई स्तर पर स्वर्ण पदक जीतकर पूरे एशिया में प्रशंसा व प्रसिद्धि पाई। ऐसा लगता था कि रिंग में उनका मुकाबला करने का दमखम किसी में नहीं था। वह अपने क्षेत्र में बेहतरीन एवं सर्वश्रेष्ठ रहे। उन्हें पहली सफलता एशियाई स्तर पर 1966 में बैंकाक एशियाई खेलों में मिली, जब उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। दूसरी बार 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों में हवा सिंह ने पुन: अपनी सफलता को दोहराया और स्वर्ण पदक हासिल किया। उनके इन दो स्वर्ण पदकों ने भारतीय मुक्केबाजी में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा दिया। आज तक मुक्केबाजी में इतनी सफलता कोई अन्य खिलाड़ी हासिल नहीं कर सका है।
हवा सिंह ने एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने के अतिरिक्त भारतीय बाक्सिंग के इतिहास में अन्य कई शानदार पन्ने जोड़े। उन्होंने 1961 से 1972 तक यानी 11 वर्षों तक अपने वजन के वर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियनशिप जीती जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है तथा ‘सर्विसेज’ में इतने ही वर्षों तक सफलता अर्जित की। कोई अन्य बॉक्सर इतने अधिक वर्षों तक राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियनशिप तथा ‘सर्विसेज’ में चैंपियनशिप हासिल नहीं कर सका है।
हवा सिंह भारतीय सेना में 1956 में तीसरे गार्ड के रूप में शामिल हुए। उन्होंने हर स्तर पर चैंपियनशिप जीती, फिर 1960 में वेस्टर्न कमांड का खिताब जीत लिया। उन्होंने उस वक्त के चैंपियन मोहब्बत सिंह को हराया। फिर अगले वर्ष के पश्चात् 1972 तक हवा सिंह हैवीवेट मुकाबलों के अविजित राजा के समान खेल की दुनिया में शासन करते रहे।[1]
पुरस्कार व सम्मान
उनकी सफलता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1966 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया और 1968 में सेनाध्यक्ष द्वारा उन्हें ‘बेस्ट स्पोर्ट्समेन ट्रॉफी’ प्रदान की गई। 1999 में हवा सिंह को ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ देने की घोषणा की गई, परन्तु जब उन्हें 29 अगस्त, 2000 को यह पुरस्कार दिया जाना था, उसके ठीक 15 दिन पूर्व 14 अगस्त, 2000 को उनका भिवानी में अचानक निधन हो गया। उनका यह पुरस्कार उनकी पत्नी अंगूरी देवी ने प्राप्त किया।
उपलब्धियां
- हवा सिंह (1961 से 1972 तक) 11 वर्षों तक बाक्सिंग के राष्ट्रीय चैंपियन रहे।[1]
- वह सर्विसेज (सेना) में भी 11 वर्ष तक चैंपियन रहे।
- 1966 में बैंकाक एशियाई खेलों में भी हवा सिंह ने बाक्सिंग का स्वर्ण पदक जीता।
- 1970 के बैंकाक एशियाई खेलों में भी हवा सिंह ने दूसरी बार बाक्सिंग का स्वर्ण पदक जीता।
- 1966 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया।
- उन्हें 1968 में सेनाध्यक्ष द्वारा ‘बेस्ट स्पोर्ट्समेन ट्राफी’ प्रदान की गई।
- हवा सिंह को 1999 का ‘द्रोणाचार्य पुरस्कार’ प्रदान किया गया, जो उनकी अचानक मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने प्राप्त किया
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 हवा सिंह का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 08 सितम्बर, 2016।