तामलुक: Difference between revisions

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[[रूपनारायण नदी]] के दाहिने तट पर स्‍थित तामलुक का ताम्रलिप्‍ता, दामलिटता, [[ताम्रलिप्ति]], ताम्रलित्‍तिका या वेलकुला, जैसे विभिन्‍न नामों से प्राचीन [[पाली भाषा|पाली]] और [[संस्कृत साहित्य]] में उल्‍लेख मिलता है। प्राचीन समय में यह एक महत्‍वपूर्ण बंदरगाह के रूप में कार्य करता था, जहाँ से भारतीय समुद्रगामी जहाज़ सुदूर देशों में जाया करते थे। प्‍लिनी और प्रसिद्ध भूगोलविद प्‍टोलेमी की रचनाओं में भी तामलुक का क्रमश: तालुक्‍ते और तामालाइट्स के रूप में उल्लेख किया गया है।
[[रूपनारायण नदी]] के दाहिने तट पर स्‍थित तामलुक का ताम्रलिप्‍ता, दामलिटता, [[ताम्रलिप्ति]], ताम्रलित्‍तिका या वेलकुला, जैसे विभिन्‍न नामों से प्राचीन [[पाली भाषा|पाली]] और [[संस्कृत साहित्य]] में उल्‍लेख मिलता है। प्राचीन समय में यह एक महत्‍वपूर्ण बंदरगाह के रूप में कार्य करता था, जहाँ से भारतीय समुद्रगामी जहाज़ सुदूर देशों में जाया करते थे। प्‍लिनी और प्रसिद्ध भूगोलविद प्‍टोलेमी की रचनाओं में भी तामलुक का क्रमश: तालुक्‍ते और तामालाइट्स के रूप में उल्लेख किया गया है।
====उत्खनन कार्य====
====उत्खनन कार्य====
[[फाह्यान]], [[ह्वेनसांग]] और और इत्‍सिंग जैसे प्रसिद्ध चीनी तीर्थयात्रियों ने, जिन्होंने इस स्‍थान की यात्रा की थी, इस फलते-फूलते बंदरगाह नगर का सजीव विवरण प्रस्‍तुत किया है। एक समृद्ध वाणिज्‍यिक नगर होने के अलावा तामलुक एक महान धार्मिक केन्‍द्र भी था। इस स्‍थल की प्राचीनता और महत्‍व यहाँ समय-समय पर किए जाने वाले उत्‍खनन कार्यों से स्पष्ट हो गया है। इस स्‍थल के महत्‍व का आकलन करते हुए 'भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण' ने इसकी सांस्कृतिक शृंखला को उजागर करने के लिए सन [[1954]]-[[1955]] में क्रमबद्ध उत्‍खनन प्रारंभ किया। उत्‍खनन ने नवपाषाण युग के प्रारंभिक अधिवास से आधुनिक समय तक के अधिवास को उजागर किया।<ref>{{cite web |url= http://asi.nic.in/asi_museums_tamiluk_hn.asp|title=तामलुक|accessmonthday=14 फ़रवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
[[फाह्यान]], [[ह्वेनसांग]] और और इत्‍सिंग जैसे प्रसिद्ध चीनी तीर्थयात्रियों ने, जिन्होंने इस स्‍थान की यात्रा की थी, इस फलते-फूलते बंदरगाह नगर का सजीव विवरण प्रस्‍तुत किया है। एक समृद्ध वाणिज्‍यिक नगर होने के अलावा तामलुक एक महान् धार्मिक केन्‍द्र भी था। इस स्‍थल की प्राचीनता और महत्‍व यहाँ समय-समय पर किए जाने वाले उत्‍खनन कार्यों से स्पष्ट हो गया है। इस स्‍थल के महत्‍व का आकलन करते हुए 'भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण' ने इसकी सांस्कृतिक श्रृंखला को उजागर करने के लिए सन [[1954]]-[[1955]] में क्रमबद्ध उत्‍खनन प्रारंभ किया। उत्‍खनन ने नवपाषाण युग के प्रारंभिक अधिवास से आधुनिक समय तक के अधिवास को उजागर किया।<ref>{{cite web |url= http://asi.nic.in/asi_museums_tamiluk_hn.asp|title=तामलुक|accessmonthday=14 फ़रवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==क्रांतिकारी गतिविधियों का स्थान==
==क्रांतिकारी गतिविधियों का स्थान==
बंगाल के इस प्रमुख स्थान का देश की आज़ादी से भी गहरा सम्बन्ध रहा है। [[महात्मा गाँधी]] ने अपनी कई गतिविधियाँ यहाँ से संचालित की थीं। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के समय संयुक्त प्रांत में [[बलिया]] एवं [[बस्ती ज़िला|बस्ती]], [[बम्बई]] में [[सतारा]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में [[मिदनापुर ज़िला|मिदनापुर]] एवं [[बिहार]] के कुछ भागों में अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी थी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा में थी। यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व नाना पाटिल ने किया था। सतारा के सबसे महत्त्वपूर्ण नेता वाई. वी. चाह्नाण थे। पहली समान्तर सरकार बलिया में चितू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी थी। बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा [[ताम्रलिप्ति]] में गठिन राष्ट्रीय सरकार [[1944]] ई. तक चलती रही। यहाँ की सरकार को 'जातीय सरकार' के नाम से जाना जाता था।
बंगाल के इस प्रमुख स्थान का देश की आज़ादी से भी गहरा सम्बन्ध रहा है। [[महात्मा गाँधी]] ने अपनी कई गतिविधियाँ यहाँ से संचालित की थीं। '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' के समय संयुक्त प्रांत में [[बलिया]] एवं [[बस्ती ज़िला|बस्ती]], [[बम्बई]] में [[सतारा]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में [[मिदनापुर ज़िला|मिदनापुर]] एवं [[बिहार]] के कुछ भागों में अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी थी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा में थी। यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व नाना पाटिल ने किया था। सतारा के सबसे महत्त्वपूर्ण नेता वाई. वी. चाह्नाण थे। पहली समान्तर सरकार बलिया में चितू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी थी। बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा [[ताम्रलिप्ति]] में गठिन राष्ट्रीय सरकार [[1944]] ई. तक चलती रही। यहाँ की सरकार को 'जातीय सरकार' के नाम से जाना जाता था।

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तामलुक पूर्वी मिदनापुर ज़िला, पश्चिम बंगाल का मुख्‍यालय है। यह कलकत्‍ता (वर्तमान कोलकाता) से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है, यहाँ से यह लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दक्षिण-पूर्वी रेलवे के कोलकाता-खड़गपुर मार्ग पर स्‍थित मेचेदा यहाँ का निकटतम रेल स्‍टेशन है।

प्राचीन साहित्य में उल्लेख

रूपनारायण नदी के दाहिने तट पर स्‍थित तामलुक का ताम्रलिप्‍ता, दामलिटता, ताम्रलिप्ति, ताम्रलित्‍तिका या वेलकुला, जैसे विभिन्‍न नामों से प्राचीन पाली और संस्कृत साहित्य में उल्‍लेख मिलता है। प्राचीन समय में यह एक महत्‍वपूर्ण बंदरगाह के रूप में कार्य करता था, जहाँ से भारतीय समुद्रगामी जहाज़ सुदूर देशों में जाया करते थे। प्‍लिनी और प्रसिद्ध भूगोलविद प्‍टोलेमी की रचनाओं में भी तामलुक का क्रमश: तालुक्‍ते और तामालाइट्स के रूप में उल्लेख किया गया है।

उत्खनन कार्य

फाह्यान, ह्वेनसांग और और इत्‍सिंग जैसे प्रसिद्ध चीनी तीर्थयात्रियों ने, जिन्होंने इस स्‍थान की यात्रा की थी, इस फलते-फूलते बंदरगाह नगर का सजीव विवरण प्रस्‍तुत किया है। एक समृद्ध वाणिज्‍यिक नगर होने के अलावा तामलुक एक महान् धार्मिक केन्‍द्र भी था। इस स्‍थल की प्राचीनता और महत्‍व यहाँ समय-समय पर किए जाने वाले उत्‍खनन कार्यों से स्पष्ट हो गया है। इस स्‍थल के महत्‍व का आकलन करते हुए 'भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण' ने इसकी सांस्कृतिक श्रृंखला को उजागर करने के लिए सन 1954-1955 में क्रमबद्ध उत्‍खनन प्रारंभ किया। उत्‍खनन ने नवपाषाण युग के प्रारंभिक अधिवास से आधुनिक समय तक के अधिवास को उजागर किया।[1]

क्रांतिकारी गतिविधियों का स्थान

बंगाल के इस प्रमुख स्थान का देश की आज़ादी से भी गहरा सम्बन्ध रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी कई गतिविधियाँ यहाँ से संचालित की थीं। 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के समय संयुक्त प्रांत में बलिया एवं बस्ती, बम्बई में सतारा, बंगाल में मिदनापुर एवं बिहार के कुछ भागों में अस्थायी सरकारों की स्थापना की गयी थी। इन स्वाशासित समानान्तर सरकारों में सर्वाधिक लम्बे समय तक सरकार सतारा में थी। यहाँ पर विद्रोह का नेतृत्व नाना पाटिल ने किया था। सतारा के सबसे महत्त्वपूर्ण नेता वाई. वी. चाह्नाण थे। पहली समान्तर सरकार बलिया में चितू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी थी। बंगाल के मिदनापुर ज़िले में तामलुक अथवा ताम्रलिप्ति में गठिन राष्ट्रीय सरकार 1944 ई. तक चलती रही। यहाँ की सरकार को 'जातीय सरकार' के नाम से जाना जाता था।

संग्रहालय

तामलुक और आसन्‍न क्षेत्र की समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत को परिरक्षित करने के मुख्‍य उद्देश्‍य से स्‍थानीय जनता की रुचि और उत्‍साह के परिणामस्‍वरूप वर्ष 1975 में 'तामलुक संग्रहालय और अनुसंधान केन्‍द्र' की स्‍थापना की गई। नवनिर्मित संग्रहालय में दीर्घाओं को मुख्‍य कक्ष में व्‍यवस्‍थित किया गया है, जिसमें मिदनापुर ज़िले के विभिन्‍न भागों से संग्रहित पूर्व-ऐतिहासिक औजार मौजूद हैं। दीर्घा में हड्डी के औजार, तीर-शीर्ष, चाकू, बर्छी, मछली पकड़ने का कांटा इत्‍यादि भी प्रदर्शित किए गए हैं। तामलुक शुंगकालीन अपने विशिष्‍ट टेराकोटा पटियों के कारण टेराकोटा कला के क्षेत्र में प्रसिद्ध हुआ है। प्रदर्शित की गई टेराकोटा वस्‍तुओं में मुख्‍यत: उत्‍कृष्‍ट स्त्री मृतिकाओं को दर्शाया गया है, जिन्‍हें जातक कथाओं में लोकप्रिय रूप यक्षियों के रूप में जाना जाता है। कुषाण काल की टेराकोटा कला में 1-5 शताब्‍दी ईसवी के मानव आकारों वाले मृतिकाओं और खिलौना गाड़ियाँ दर्शायी गई हैं। संग्रहालय में उत्तर गुप्‍त काल की मुद्राएँ और मुद्रांकन, पाल काल की पुरावस्‍तुएँ प्रदर्शित की गई हैं।

चाँदी के आहत सिक्‍कों, ढलवा ताम्र सिक्‍कों, मुस्लिम शासकों के सिक्‍कों से लेकर आधुनिक काल के सिक्‍कों तक भारतीय सिक्‍का निर्माण के विकास को दर्शाया गया है। संग्रहालय में रोमन दोहत्‍था सुराही प्रदर्शित की गई एक अन्‍य रोचक वस्‍तु है, जो रोम के साम्राज्‍य के साथ इस क्षेत्र के व्‍यापारिक संपर्कों को इंगित करता है। पट्टचित्र के रूप में प्रसिद्ध सूचीनुमा चित्रावली लोककला की एक शैली के रूप में बंगाल के विभिन्‍न क्षेत्रों में व्‍यापक रूप से फैली रही है। प्रदर्शित वस्‍तुओं में पौराणिक और मिथकीय कथाओं को दर्शाने वाली ऐसी रंगीन सूचीनुमा चित्रावली शामिल है। इस संग्रहालय में प्रवेश के किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं देना पड़ता है। संग्रहालय सप्ताह के प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तामलुक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 फ़रवरी, 2013।

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