आपातकाल: Difference between revisions
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Latest revision as of 09:03, 10 February 2021
आपातकाल अर्थात् आकस्मिक संकट का वह समय, जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो। देश में आंतरिक अशांति को खतरा होने, बाहरी आक्रमण होने अथवा वित्तीय संकट की हालात में आपातकाल की घोषणा की जाती है। भारत में 1962 में चीन के साथ एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान आपातकाल का दौर देखा था, पर यह 'बाहरी आक्रमण' के कारण लगाया गया था। 25 जून, 1975 की मध्यरात्रि से 21 मार्च, 1977 के बीच जो आपातकाल का दौर देश ने देखा, वह 'आंतरिक अशांति' के करण संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लगाया गया था।
आपातकालीन प्रावधान (भाग – 18 अनुच्छेद 352 से 360)
- प्रस्तावना-
यह अनुच्छेद संसद/सरकार को असामान्य परिस्थितियों का सामना करने के लिये सक्षम बनाती है। इस प्रावधान को प्रभावी बनाने का उदेश्य देश की एकता, अखण्डता, संप्रभुता, लोकतंत्र, राजनैतिक व्यवस्था और संविधान की सुरक्षा करना है। इस स्थिति मे केन्द्र सरकार शक्तिशाली हो जाती है और संविधान में संशोधन किये बिना ही संघात्मक ढांचा एकात्मक में बदल जाता है।[1]
आपातकाल के प्रकार
भारतीय संविधान में आपातकालीन स्थिति के लिये 3 प्रकार हैं-
- (1.) राष्ट्रीय आपात
- अनुच्छेद 352, युद्ध/बाहरी आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल को 'राष्ट्रीय आपात' नाम दिया जाता है, लेकिन संविधान में इसे "आपातकाल की घोषणा" नाम दिया गया है।
- (2.) राज्य आपातकाल या संवैधानिक आपातकाल
- अनुच्छेद 356, राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण आपातकाल को राष्ट्रपति शासन के नाम से जाना जाता है। इसे 'राज्य आपातकाल' या 'संवैधानिक आपातकाल' नाम से जाना जाता है। लेकिन संविधान में इस प्रावधान के लिये 'आपातकाल' शब्द का प्रयोग नहीं है।
- (3.) वितीय आपातकाल
- अनुच्छेद 360, जब देश की वितीय स्थिति बिगड़ जाये तो ऐसी स्थिति में 'वितीय आपात' का प्रावधान है। इसे 'वितीय आपातकाल' कहा जाता है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख