ताम्रपर्णी नदी: Difference between revisions
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'''ताम्रपर्णी नदी''' [[दक्षिण भारत]] की नदी है, जो [[केरल]] राज्य में बहती है। [[जातक कथा|जातक कथाओं]] में भी इस नदी का उल्लेख हुआ है। [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] के मुख्य [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]] दो और तेरह में तथा [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]] के अध्याय ग्यारह में भी ताम्रपर्णी नदी का नामोल्लेख है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=394|url=}}</ref> | '''ताम्रपर्णी नदी''' [[दक्षिण भारत]] की नदी है, जो [[केरल]] राज्य में बहती है। ये मद्रास प्रान्त के तिनेवली ज़िले की एक नदी मानी जाती है, जिसका स्थानीय नाम परुणै है। | ||
[[जातक कथा|जातक कथाओं]] में भी इस नदी का उल्लेख हुआ है। [[मौर्य]] सम्राट [[अशोक]] के मुख्य [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]] दो और तेरह में तथा [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]] के अध्याय ग्यारह में भी ताम्रपर्णी नदी का नामोल्लेख है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=394|url=}}</ref> | |||
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*[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 88, 14-15</ref> में ताम्रपर्णी तथा उसके तट पर स्थित गोकर्ण को वर्णन है- | *[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 88, 14-15</ref> में ताम्रपर्णी तथा उसके तट पर स्थित गोकर्ण को वर्णन है- | ||
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अर्थात् पांड्य वासियों ने विनयपूर्वक रघु को अपने संचित यश के साथ ही ताम्रपर्णी-समुद्र संगम के सुंदर मोती भेंट किए। | |||
*मल्लिकानाथ ने इसकी टीका में यथार्थ ही लिखा है- | *मल्लिकानाथ ने इसकी टीका में यथार्थ ही लिखा है- | ||
<blockquote>'ताम्रपर्णीसंगमे मोक्तिकोत्परिति प्रसिद्धम।'</blockquote> | <blockquote>'ताम्रपर्णीसंगमे मोक्तिकोत्परिति प्रसिद्धम।'</blockquote> |
Latest revision as of 07:44, 7 November 2017
ताम्रपर्णी नदी दक्षिण भारत की नदी है, जो केरल राज्य में बहती है। ये मद्रास प्रान्त के तिनेवली ज़िले की एक नदी मानी जाती है, जिसका स्थानीय नाम परुणै है।
जातक कथाओं में भी इस नदी का उल्लेख हुआ है। मौर्य सम्राट अशोक के मुख्य शिलालेख दो और तेरह में तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अध्याय ग्यारह में भी ताम्रपर्णी नदी का नामोल्लेख है।[1]
'ताम्रार्णीं तु कौंतेय कीर्तियिष्यामि तां श्रुणु यत्र देवैस्तपस्तप्तं महदिच्छद्भिराश्रमे गोकर्ण इति विख्यात स्त्रिषुलोकेषु भारत'
- श्रीमद्भागवत[3] में ताम्रपर्णी नदी का अन्य नदियों के साथ उल्लेख है-
'चंद्रवसा ताम्रपर्णी अवटोदा कृतमाला वैहायसी...।'
- विष्णुपुराण[4] में ताम्रपर्णी नदी को मलय पर्वत से उद्भूत माना है-
'कृतमाला ताम्रपर्णी प्रमुखा मलयोद्भवा:।'
तटवर्ती नगर
'एपिग्राफ़िका इंडिका'[5] के अनुसार ताम्रपर्णी नदी का स्थानीय नाम पोरुंडम और मुडीगोंडशोलाप्पेरारु था। अति प्राचीन काल में इस नदी के तट पर अवस्थित कोरकई और कायल नामक बंदरगाह उस समय के सभ्य संसार में अपने समृद्ध व्यापार के कारण प्रख्यात थे। पांड्य नरेशों के समय मोतियों और शंखों के व्यापार के लिए कोरकई प्रसिद्ध था। वर्तमान तिरुनेल्वेलि या तिन्नेवली और त्रिवेंद्रम से 12 मील (लगभग 19.2 कि.मी.) पूर्व तिरुवट्टार नामक नगर ताम्रपर्णी के तट पर स्थित है।
कालीदास का उल्लेख
ताम्रपर्णी वर्तमान पलमकोटा के निकट बहती हुई मन्नार की खाड़ी में गिरती है। मन्नार की खाड़ी सदा से मोतियों के लिए प्रसिद्ध रही है और इसीलिए कालिदास ने ताम्रपर्णी के संबंध में मोतियों का भी वर्णन किया है- 'ताम्रार्णीसमेतभ्य मुक्तासारं महोदधे: ते निपत्य ददुस्तस्मै यश: स्वमिवसंचि तम्’[6]
अर्थात् पांड्य वासियों ने विनयपूर्वक रघु को अपने संचित यश के साथ ही ताम्रपर्णी-समुद्र संगम के सुंदर मोती भेंट किए।
- मल्लिकानाथ ने इसकी टीका में यथार्थ ही लिखा है-
'ताम्रपर्णीसंगमे मोक्तिकोत्परिति प्रसिद्धम।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 394 |
- ↑ वनपर्व 88, 14-15
- ↑ श्रीमद्भागवत 5, 19, 18
- ↑ विष्णुपुराण 2, 3, 13
- ↑ एपिग्राफ़िका इंडिका 11 (1914) पृ. 245
- ↑ रघुवंश 4, 50