ग्रंथताल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{{सूचना बक्सा वृक्ष | |||
'''ग्रंथताल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Borassus | |चित्र=Borassus flebellifur.jpg | ||
|चित्र का नाम=ग्रंथताल | |||
|जगत=पादप (''Plantae'') | |||
|उपजगत= | |||
|संघ=मैग्नोलिओफाइटा (''Magnoliophyta'') | |||
|वर्ग=मोनोकोट्स (''Monocots'') | |||
|उप-वर्ग= | |||
|गण=अरेकेल्स (''Arecales'') | |||
|उपगण= | |||
|अधिकुल= | |||
|कुल=अरेकेसी (''Arecaceae'') | |||
|जाति= बोरासूस (''Borassus'') | |||
|प्रजाति=फ़्लाबेलीफ़ेर (''flabellifer'') | |||
|द्विपद नाम=बोरासूस फ़्लाबेलीफ़ेर (''Borassus flabellifer'') | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1=विशेष | |||
|पाठ 1=ग्रंथताल के पौधे 60-70 फुट ऊँचे होते हैं। ग्रंथताल के नर तथा मादा पौधों को उनके फूलगुच्छे से पहचाना जाता है। | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=ग्रंथताल [[अरब देश]] का पौधा है, पर [[भारत]], [[बर्मा]] तथा [[श्रीलंका]] में अब अधिक मात्रा में उगाया जाता है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''ग्रंथताल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Borassus flabellifer L.'') को पामीरा पाम (Palmyra palm) भी कहते हैं। [[बंबई]] के इलाक़े में लोग इसे ''ब्रंब'' भी कहते हैं। यह एकदली वर्ग, ताल (Palmeae) कुल का सदस्य है और गरम तथा नम प्रदेशों में पाया जाता है। यह [[अरब देश]] का पौधा है, पर [[भारत]], [[बर्मा]] तथा [[श्रीलंका]] में अब अधिक मात्रा में उगाया जाता है। अरब के प्राचीन नगर 'पामीरा' के नाम पर कदाचित् इस पौधे का नाम ''पामीरा पाम'' पड़ा है। ग्रंथताल समुद्रतटीय इलाकों तथा शुष्क स्थानों में बलुई मिट्टी पर पाया जाता है। | |||
==वानस्पतिक परिचय== | ==वानस्पतिक परिचय== | ||
ग्रंथताल के पौधे | ग्रंथताल के पौधे 60-70 फुट ऊँचे होते हैं। तना प्राय: सीधा और शाखारहित होता है एवं इसके ऊपरी भाग में गुच्छेदार, पंखे के समान पत्तियाँ होती हैं। ग्रंथताल के नर तथा मादा पौधों को उनके फूलगुच्छे से पहचाना जाता है। पौधे [[फाल्गुन]] महीने में फूलते हैं और फल [[ज्येष्ठ]] तक आ जाता है। ये फल [[श्रावण मास|श्रावणमास]] तक पक जाते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है, जो कड़ा तथा सुपारी की भाँति होता है। दो या तीन मास तक ज़मीन के अंदर गड़े रहने पर बीज अंकुरित हो जाता है।[[चित्र:Borassus flebellifur-fruit.jpg|thumb|left|ग्रंथताल के फल]] | ||
==आर्थिक महत्व== | ==आर्थिक महत्व== | ||
पौधे का लगभग हर भाग मनुष्य अपने काम में लाता है। एक [[तमिल भाषा]] के [[कवि]] ने इस पौधे के 800 विभिन्न उपयोगों का वर्णन किया है। इसका तना बड़ा ही मजबूत हेता है और इस पर समुद्री जल का कोई बुरा असर नहीं पड़ता। अत: इसका उपयोग नाव इत्यादि बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियाँ मकान छाने एवं चटाई तथा डलिया बनाने के काम में लाई जाती हैं। इस पौधे से पाँच प्रकार के रेशे निकाले जाते हैं- | पौधे का लगभग हर भाग मनुष्य अपने काम में लाता है। एक [[तमिल भाषा]] के [[कवि]] ने इस पौधे के 800 विभिन्न उपयोगों का वर्णन किया है। इसका तना बड़ा ही मजबूत हेता है और इस पर समुद्री जल का कोई बुरा असर नहीं पड़ता। अत: इसका उपयोग नाव इत्यादि बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियाँ मकान छाने एवं चटाई तथा डलिया बनाने के काम में लाई जाती हैं। इस पौधे से पाँच प्रकार के रेशे निकाले जाते हैं- | ||
Line 12: | Line 35: | ||
इस रेशे तथा पत्तियों से तरह तरह की वस्तुएँ बनाई जाती है, जिनमें चटाई, डलिया, डिब्बे तथा हैट मुख्य हैं। रेशे का एक महत्वपूर्ण उपयोग ब्रश बनाने में किया जाता है। [[टुटिकोरिन]] से ग्रंथताल का रेशा बाहर भेजा जाता है। [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] तथा दक्षिण की कुछ जगहों में इसकी लंबी पत्तियाँ स्लेट की तरह लिखने के काम में लाई जाती हैं। [[दक्षिण भारत|दक्षिणी भारत]] में कहीं कहीं ग्रंथताल के बीजों को खेतों में उगाते हैं और जब पौधे 3-4 मास के हो जाते हैं तो उन्हें काटकर [[सब्जियाँ|सब्जी]] के रूप में उपयोग करते हैं। | इस रेशे तथा पत्तियों से तरह तरह की वस्तुएँ बनाई जाती है, जिनमें चटाई, डलिया, डिब्बे तथा हैट मुख्य हैं। रेशे का एक महत्वपूर्ण उपयोग ब्रश बनाने में किया जाता है। [[टुटिकोरिन]] से ग्रंथताल का रेशा बाहर भेजा जाता है। [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] तथा दक्षिण की कुछ जगहों में इसकी लंबी पत्तियाँ स्लेट की तरह लिखने के काम में लाई जाती हैं। [[दक्षिण भारत|दक्षिणी भारत]] में कहीं कहीं ग्रंथताल के बीजों को खेतों में उगाते हैं और जब पौधे 3-4 मास के हो जाते हैं तो उन्हें काटकर [[सब्जियाँ|सब्जी]] के रूप में उपयोग करते हैं। | ||
==औषधीय महत्त्व== | ==औषधीय महत्त्व== | ||
ग्रंथताल का औषधि के लिये भी पर्याप्त महत्व है। इसका रस स्फूर्तिदायक होता है तथा जड़ और कच्चे बीज से कुछ दवाएँ बनाई जाती हैं। इसके पुष्पगुच्छ को जलाकर बनाया गया भस्म बढ़ी हुई तिल्ली के रोगी को देने से लाभ होता है। ग्रंथताल के पुष्पगुच्छी डंठल से अधिक मात्रा में ताड़ी निकाली जाती है, जिससे मादक पेय, शर्करा तथा सिरका बनाया जाता है। एक पेड़ से प्रति दिन तीन चार क्वार्ट ताड़ी प्राय: चार पाँच मास तक निकलती है। 15-20 वर्ष पुराने पेड़ से ताड़ी निकालना आरंभ करते हैं और 50 वर्ष तक के पुराने पेड़ से ताड़ी निकलती है। इसकी ताड़ी में मिठास अधिक होती है। मीठी डबल रोटी बनाने के लिये बर्मा में ताड़ी को आटे में मिलाया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%A5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2|title=ग्रंथताल |accessmonthday=3 अगस्त |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | |||
ग्रंथताल का औषधि के लिये भी पर्याप्त महत्व है। इसका रस स्फूर्तिदायक होता है तथा जड़ और कच्चे बीज से कुछ दवाएँ बनाई जाती हैं। इसके पुष्पगुच्छ को जलाकर बनाया गया भस्म बढ़ी हुई तिल्ली के रोगी को देने से लाभ होता है। ग्रंथताल के पुष्पगुच्छी डंठल से अधिक मात्रा में ताड़ी निकाली जाती है, जिससे मादक पेय, शर्करा तथा सिरका बनाया जाता है। एक पेड़ से प्रति दिन तीन चार क्वार्ट ताड़ी प्राय: चार पाँच मास तक निकलती है। 15-20 वर्ष पुराने पेड़ से ताड़ी निकालना आरंभ करते हैं और 50 वर्ष तक के पुराने पेड़ से ताड़ी निकलती है। इसकी ताड़ी में मिठास अधिक होती है। मीठी डबल रोटी बनाने के लिये बर्मा में ताड़ी को आटे में मिलाया जाता है।<ref>{{cite web |url=http:// | |||
Latest revision as of 12:22, 25 October 2017
ग्रंथताल
| |
जगत | पादप (Plantae) |
संघ | मैग्नोलिओफाइटा (Magnoliophyta) |
वर्ग | मोनोकोट्स (Monocots) |
गण | अरेकेल्स (Arecales) |
कुल | अरेकेसी (Arecaceae) |
जाति | बोरासूस (Borassus) |
प्रजाति | फ़्लाबेलीफ़ेर (flabellifer) |
द्विपद नाम | बोरासूस फ़्लाबेलीफ़ेर (Borassus flabellifer) |
विशेष | ग्रंथताल के पौधे 60-70 फुट ऊँचे होते हैं। ग्रंथताल के नर तथा मादा पौधों को उनके फूलगुच्छे से पहचाना जाता है। |
अन्य जानकारी | ग्रंथताल अरब देश का पौधा है, पर भारत, बर्मा तथा श्रीलंका में अब अधिक मात्रा में उगाया जाता है। |
ग्रंथताल (अंग्रेज़ी: Borassus flabellifer L.) को पामीरा पाम (Palmyra palm) भी कहते हैं। बंबई के इलाक़े में लोग इसे ब्रंब भी कहते हैं। यह एकदली वर्ग, ताल (Palmeae) कुल का सदस्य है और गरम तथा नम प्रदेशों में पाया जाता है। यह अरब देश का पौधा है, पर भारत, बर्मा तथा श्रीलंका में अब अधिक मात्रा में उगाया जाता है। अरब के प्राचीन नगर 'पामीरा' के नाम पर कदाचित् इस पौधे का नाम पामीरा पाम पड़ा है। ग्रंथताल समुद्रतटीय इलाकों तथा शुष्क स्थानों में बलुई मिट्टी पर पाया जाता है।
वानस्पतिक परिचय
ग्रंथताल के पौधे 60-70 फुट ऊँचे होते हैं। तना प्राय: सीधा और शाखारहित होता है एवं इसके ऊपरी भाग में गुच्छेदार, पंखे के समान पत्तियाँ होती हैं। ग्रंथताल के नर तथा मादा पौधों को उनके फूलगुच्छे से पहचाना जाता है। पौधे फाल्गुन महीने में फूलते हैं और फल ज्येष्ठ तक आ जाता है। ये फल श्रावणमास तक पक जाते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है, जो कड़ा तथा सुपारी की भाँति होता है। दो या तीन मास तक ज़मीन के अंदर गड़े रहने पर बीज अंकुरित हो जाता है।thumb|left|ग्रंथताल के फल
आर्थिक महत्व
पौधे का लगभग हर भाग मनुष्य अपने काम में लाता है। एक तमिल भाषा के कवि ने इस पौधे के 800 विभिन्न उपयोगों का वर्णन किया है। इसका तना बड़ा ही मजबूत हेता है और इस पर समुद्री जल का कोई बुरा असर नहीं पड़ता। अत: इसका उपयोग नाव इत्यादि बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियाँ मकान छाने एवं चटाई तथा डलिया बनाने के काम में लाई जाती हैं। इस पौधे से पाँच प्रकार के रेशे निकाले जाते हैं-
- पत्तियों के डंठल के निचले भाग से निकलने वाला रेशा
- पत्ती के डंठल से निकलने वाला रेशा
- तने से निकलने वाला तार नामक रेशा
- फल के ऊपरी भाग से निकलने वाला रेशा
- पत्तियों से निकलने वाला रेशा।
इस रेशे तथा पत्तियों से तरह तरह की वस्तुएँ बनाई जाती है, जिनमें चटाई, डलिया, डिब्बे तथा हैट मुख्य हैं। रेशे का एक महत्वपूर्ण उपयोग ब्रश बनाने में किया जाता है। टुटिकोरिन से ग्रंथताल का रेशा बाहर भेजा जाता है। बंगाल तथा दक्षिण की कुछ जगहों में इसकी लंबी पत्तियाँ स्लेट की तरह लिखने के काम में लाई जाती हैं। दक्षिणी भारत में कहीं कहीं ग्रंथताल के बीजों को खेतों में उगाते हैं और जब पौधे 3-4 मास के हो जाते हैं तो उन्हें काटकर सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं।
औषधीय महत्त्व
ग्रंथताल का औषधि के लिये भी पर्याप्त महत्व है। इसका रस स्फूर्तिदायक होता है तथा जड़ और कच्चे बीज से कुछ दवाएँ बनाई जाती हैं। इसके पुष्पगुच्छ को जलाकर बनाया गया भस्म बढ़ी हुई तिल्ली के रोगी को देने से लाभ होता है। ग्रंथताल के पुष्पगुच्छी डंठल से अधिक मात्रा में ताड़ी निकाली जाती है, जिससे मादक पेय, शर्करा तथा सिरका बनाया जाता है। एक पेड़ से प्रति दिन तीन चार क्वार्ट ताड़ी प्राय: चार पाँच मास तक निकलती है। 15-20 वर्ष पुराने पेड़ से ताड़ी निकालना आरंभ करते हैं और 50 वर्ष तक के पुराने पेड़ से ताड़ी निकलती है। इसकी ताड़ी में मिठास अधिक होती है। मीठी डबल रोटी बनाने के लिये बर्मा में ताड़ी को आटे में मिलाया जाता है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख