श्रीनगर, उत्तराखण्ड: Difference between revisions
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'''श्रीनगर''' [[गढ़वाल]], [[उत्तराखण्ड]] की प्राचीन राजधानी। यह नगर [[गंगा]] तट पर रिथत है। सन [[1894]] ई. में बिरही नदी की [[बाढ़]] में यह नगर बह गया था। नए वर्तमान श्रीनगर को [[1895]] ई. में पाॅ नामक एक [[अंग्रेज़]] ने प्राचीन नगर के निकट ही बसाया था। श्रीनगर के आस-पास कई पाचीन मंदिर हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=919|url=}}</ref> | |||
*श्रीनगर के स्थानीय आकर्षणों तथा आस-पास के घूमने योग्य स्थान यहां के समृद्ध [[इतिहास]] से जुड़े हैं। चूंकि यह गढ़वाल के पंवार राजवंश के राजाओं की राजधानी थी, इसलिए यह उन दिनों सांस्कृतिक तथा राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था, जिसे यहां के लोग गौरव से याद करते है। | *श्रीनगर के स्थानीय आकर्षणों तथा आस-पास के घूमने योग्य स्थान यहां के समृद्ध [[इतिहास]] से जुड़े हैं। चूंकि यह गढ़वाल के पंवार राजवंश के राजाओं की राजधानी थी, इसलिए यह उन दिनों सांस्कृतिक तथा राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था, जिसे यहां के लोग गौरव से याद करते है। |
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चित्र:Disamb2.jpg श्रीनगर | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- श्रीनगर (बहुविकल्पी) |
श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड की प्राचीन राजधानी। यह नगर गंगा तट पर रिथत है। सन 1894 ई. में बिरही नदी की बाढ़ में यह नगर बह गया था। नए वर्तमान श्रीनगर को 1895 ई. में पाॅ नामक एक अंग्रेज़ ने प्राचीन नगर के निकट ही बसाया था। श्रीनगर के आस-पास कई पाचीन मंदिर हैं।[1]
- श्रीनगर के स्थानीय आकर्षणों तथा आस-पास के घूमने योग्य स्थान यहां के समृद्ध इतिहास से जुड़े हैं। चूंकि यह गढ़वाल के पंवार राजवंश के राजाओं की राजधानी थी, इसलिए यह उन दिनों सांस्कृतिक तथा राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था, जिसे यहां के लोग गौरव से याद करते है।
- पौराणिक तौर पर यह आदी शंकराचार्य से भी जुड़ा है। इस शहर के अतीत से आज तक में कई नाटकीय परिवर्तन हुए हैं।
- इस नगर की महत्ता इस तथ्य में भी है कि यहां से बद्रीनाथ तथा केदारनाथ की यात्रा आसानीपूर्वक कर सकते हैं।
- हिन्दुओं के पौराणिक लेखों में इसे 'श्रीक्षेत्र' कहा गया है, जो भगवान शिव की पसंद है।
- किंवदन्ती है कि महाराज सत्यसंग को गहरी तपस्या के बाद श्रीविद्या का वरदान मिला, जिसके बाद उन्होंने कोलासुर राक्षस का वध किया। एक यज्ञ का आयोजन कर वैदिक परंपरानुसार शहर की पुनर्स्थापना की। श्रीविद्या की प्राप्ति ने इसे तत्कालीन नाम श्रीपुर दिया। प्राचीन भारत में यह सामान्य था कि शहरों के नामों के पहले 'श्री' शब्द लगाये जाते थे, क्योंकि यह लक्ष्मी का परिचायक है, जो धन की देवी हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 919 |