महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('महाराणा प्रताप के काल में दिल्ली पर मुग़ल अकब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[महाराणा प्रताप]] के काल में [[दिल्ली]] पर [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] का शासन था। [[हिन्दू]] राजाओं की शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिन्दू राजाओं को अपने नियंत्रण में लाना, यह मुग़लों की नीति थी। अपनी मृत्यु से पहले राणा उदयसिंह ने अपनी सबसे छोटी पत्नी के बेटे जगमल को राजा घोषित किया था, जबकि प्रताप सिंह जगमल से बड़े थे। महाराणा प्रताप अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोड़कर [[मेवाड़]] से निकल जाने को तैयार थे, किंतु सभी सरदार राजा के निर्णय से सहमत नहीं हुए। अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमल को सिंहासन का त्याग करना पड़ेगा। महाराणा प्रताप ने भी सभी सरदार तथा लोगों की इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ की जनता का नेतृत्व करने का दायित्व स्वीकार किया। इस प्रकार [[बप्पा रावल]] के कुल की अक्षुण्ण कीर्ति की उज्ज्वल पताका, [[राजपूत|राजपूतों]] की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक, [[राणा साँगा]] के पावन पौत्र महाराणा प्रताप ([[विक्रम संवत]] 1628 [[फाल्गुन मास|फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] 15) तारीख़ [[1 मार्च]] सन 1573 ई. को सिंहासनासीन हुए। | {{महाराणा प्रताप विषय सूची}} | ||
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक शासक | |||
|चित्र=Maharana-Pratap-2.jpg | |||
|चित्र का नाम=महाराणा प्रताप | |||
|पूरा नाम=महाराणा प्रताप | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[9 मई]], 1540 ई. | |||
|जन्म भूमि=[[कुम्भलगढ़]], [[राजस्थान]] | |||
|मृत्यु तिथि=[[29 जनवरी]], 1597 ई. | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|पिता/माता=[[पिता]]- [[महाराणा उदयसिंह]], [[माता]]- रानी जीवत कँवर | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|उपाधि= | |||
|राज्य सीमा=[[मेवाड़]] | |||
|शासन काल=1568-1597 ई. | |||
|शासन अवधि=29 वर्ष | |||
|धार्मिक मान्यता=[[हिंदू धर्म]] | |||
|राज्याभिषेक= | |||
|युद्ध=[[हल्दीघाटी का युद्ध]] | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|निर्माण= | |||
|सुधार-परिवर्तन= | |||
|राजधानी=[[उदयपुर]] | |||
|पूर्वाधिकारी=[[महाराणा उदयसिंह]] | |||
|उत्तराधिकारी=[[राणा अमर सिंह]] | |||
|राजघराना=[[राजपूताना]] | |||
|वंश= [[सिसोदिया राजवंश]] | |||
|स्मारक= | |||
|मक़बरा= | |||
|संबंधित लेख=[[राजस्थान का इतिहास]], [[राजपूत साम्राज्य]], [[राजपूत काल]], [[महाराणा उदयसिंह]], [[सिसोदिया राजवंश]], [[उदयपुर]], [[मेवाड़]], [[अकबर]], [[मानसिंह]]। | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[महाराणा प्रताप]] के नाम से [[भारतीय इतिहास]] गुंजायमान है। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने [[मुग़ल|मुग़लों]] से अपने अंत समय तक युद्ध जारी रखा। उनकी वीरता की [[कथा]] से [[भारत]] की भूमि गौरवान्वित है। महाराणा प्रताप [[मेवाड़]] की प्रजा के राजा थे। वर्तमान में यह क्षेत्र [[राजस्थान]] में आता है। प्रताप राजपूतों में [[सिसोदिया वंश]] के वंशज थे। वे एक बहादुर [[राजपूत]] थे, जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखिरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। उन्होंने सदैव अपने एवं अपने [[परिवार]] से ऊपर प्रजा को मान और सम्मान दिया। प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूण थे ही, इसके साथ ही वे एक भावुक एवं धर्म परायण भी थे। | |||
==राज्याभिषेक== | |||
[[महाराणा प्रताप]] के काल में [[दिल्ली]] पर [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] का शासन था। [[हिन्दू]] राजाओं की शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिन्दू राजाओं को अपने नियंत्रण में लाना, यह मुग़लों की नीति थी। अपनी मृत्यु से पहले राणा उदयसिंह ने अपनी सबसे छोटी पत्नी के बेटे जगमल को राजा घोषित किया था, जबकि प्रताप सिंह जगमल से बड़े थे। महाराणा प्रताप अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोड़कर [[मेवाड़]] से निकल जाने को तैयार थे, किंतु सभी सरदार राजा के निर्णय से सहमत नहीं हुए। अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमल को सिंहासन का त्याग करना पड़ेगा। महाराणा प्रताप ने भी सभी सरदार तथा लोगों की इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ की जनता का नेतृत्व करने का दायित्व स्वीकार किया। इस प्रकार [[बप्पा रावल]] के कुल की अक्षुण्ण कीर्ति की उज्ज्वल पताका, [[राजपूत|राजपूतों]] की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक, [[राणा साँगा]] के पावन पौत्र महाराणा प्रताप ([[विक्रम संवत]] 1628 [[फाल्गुन मास|फाल्गुन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] 15) तारीख़ [[1 मार्च]] सन 1573 ई. को सिंहासनासीन हुए। उनका राज्याभिषेक [[गोगुंदा]] में हुआ। | |||
==कुशल प्रशासक== | ==कुशल प्रशासक== | ||
महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले शासक थे। उनकी एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा कि उसकी विजय व्यर्थ है। [[चित्तौड़]] भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और [[ग्राम]] के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ थी। [[अकबर]] के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को [[बदायूँनी|इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ]] के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये कि- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे [[हिन्दू]] ही और प्रत्येक स्थिति में विजय [[इस्लाम]] की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे। | महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले शासक थे। उनकी एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा कि उसकी विजय व्यर्थ है। [[चित्तौड़]] भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और [[ग्राम]] के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ थी। [[अकबर]] के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को [[बदायूँनी|इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ]] के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये कि- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे [[हिन्दू]] ही और प्रत्येक स्थिति में विजय [[इस्लाम]] की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे। | ||
{{लेख क्रम2 |पिछला=महाराणा प्रताप का परिचय|पिछला शीर्षक=महाराणा प्रताप का परिचय|अगला शीर्षक=महाराणा प्रताप और चेतक|अगला= महाराणा प्रताप और चेतक}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता= |शोध= }} |
Latest revision as of 13:10, 31 December 2016
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
| |
पूरा नाम | महाराणा प्रताप |
जन्म | 9 मई, 1540 ई. |
जन्म भूमि | कुम्भलगढ़, राजस्थान |
मृत्यु तिथि | 29 जनवरी, 1597 ई. |
पिता/माता | पिता- महाराणा उदयसिंह, माता- रानी जीवत कँवर |
राज्य सीमा | मेवाड़ |
शासन काल | 1568-1597 ई. |
शा. अवधि | 29 वर्ष |
धार्मिक मान्यता | हिंदू धर्म |
युद्ध | हल्दीघाटी का युद्ध |
राजधानी | उदयपुर |
पूर्वाधिकारी | महाराणा उदयसिंह |
उत्तराधिकारी | राणा अमर सिंह |
राजघराना | राजपूताना |
वंश | सिसोदिया राजवंश |
संबंधित लेख | राजस्थान का इतिहास, राजपूत साम्राज्य, राजपूत काल, महाराणा उदयसिंह, सिसोदिया राजवंश, उदयपुर, मेवाड़, अकबर, मानसिंह। |
महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान है। प्रताप ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने मुग़लों से अपने अंत समय तक युद्ध जारी रखा। उनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राजा थे। वर्तमान में यह क्षेत्र राजस्थान में आता है। प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे। वे एक बहादुर राजपूत थे, जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखिरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। उन्होंने सदैव अपने एवं अपने परिवार से ऊपर प्रजा को मान और सम्मान दिया। प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूण थे ही, इसके साथ ही वे एक भावुक एवं धर्म परायण भी थे।
राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप के काल में दिल्ली पर मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। हिन्दू राजाओं की शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिन्दू राजाओं को अपने नियंत्रण में लाना, यह मुग़लों की नीति थी। अपनी मृत्यु से पहले राणा उदयसिंह ने अपनी सबसे छोटी पत्नी के बेटे जगमल को राजा घोषित किया था, जबकि प्रताप सिंह जगमल से बड़े थे। महाराणा प्रताप अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोड़कर मेवाड़ से निकल जाने को तैयार थे, किंतु सभी सरदार राजा के निर्णय से सहमत नहीं हुए। अत: सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमल को सिंहासन का त्याग करना पड़ेगा। महाराणा प्रताप ने भी सभी सरदार तथा लोगों की इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ की जनता का नेतृत्व करने का दायित्व स्वीकार किया। इस प्रकार बप्पा रावल के कुल की अक्षुण्ण कीर्ति की उज्ज्वल पताका, राजपूतों की आन एवं शौर्य का पुण्य प्रतीक, राणा साँगा के पावन पौत्र महाराणा प्रताप (विक्रम संवत 1628 फाल्गुन शुक्ल 15) तारीख़ 1 मार्च सन 1573 ई. को सिंहासनासीन हुए। उनका राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ।
कुशल प्रशासक
महाराणा प्रताप प्रजा के हृदय पर शासन करने वाले शासक थे। उनकी एक आज्ञा हुई और विजयी सेना ने देखा कि उसकी विजय व्यर्थ है। चित्तौड़ भस्म हो गया, खेत उजड़ गये, कुएँ भर दिये गये और ग्राम के लोग जंगल एवं पर्वतों में अपने समस्त पशु एवं सामग्री के साथ अदृश्य हो गये। शत्रु के लिये इतना विकट उत्तर, यह उस समय महाराणा की अपनी सूझ थी। अकबर के उद्योग में राष्ट्रीयता का स्वप्न देखने वालों को इतिहासकार बदायूँनी आसफ ख़ाँ के ये शब्द स्मरण कर लेने चाहिये कि- "किसी की ओर से सैनिक क्यों न मरे, थे वे हिन्दू ही और प्रत्येक स्थिति में विजय इस्लाम की ही थी।" यह कूटनीति थी अकबर की और महाराणा इसके समक्ष अपना राष्ट्रगौरव लेकर अडिग भाव से उठे थे।
left|30px|link=महाराणा प्रताप का परिचय|पीछे जाएँ | महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक | right|30px|link=महाराणा प्रताप और चेतक|आगे जाएँ |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख