मदन मोहन: Difference between revisions
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'''मदन मोहन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Madan Mohan'', जन्म- [[25 जून]], [[1924]], [[बगदाद]], इराक; मृत्यु- [[14 जुलाई]], [[1975]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। अपनी गजलों के लिए प्रसिद्ध इस संगीतकार का पूरा नाम 'मदन मोहन कोहली' था। अपनी युवावस्था में वे एक सैनिक थे। बाद में [[संगीत]] के प्रति अपने झुकाव के कारण ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए। [[तलत महमूद]] तथा [[लता मंगेशकर]] से उन्होंने कई यादगार गज़लें गंवाईं, जिनमें "आपकी नजरों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे" जैसे गीत शामिल हैं। मदन मोहन [[1950]], [[1960]] और [[1970]] के दशक में बॉलीवुड फ़िल्म संगीत के ख्यातिप्राप्त निर्देशक थे। | '''मदन मोहन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Madan Mohan'', जन्म- [[25 जून]], [[1924]], [[बगदाद]], इराक; मृत्यु- [[14 जुलाई]], [[1975]], [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। अपनी [[गजल|गजलों]] के लिए प्रसिद्ध इस संगीतकार का पूरा नाम 'मदन मोहन कोहली' था। अपनी युवावस्था में वे एक सैनिक थे। बाद में [[संगीत]] के प्रति अपने झुकाव के कारण ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए। [[तलत महमूद]] तथा [[लता मंगेशकर]] से उन्होंने कई यादगार गज़लें गंवाईं, जिनमें "आपकी नजरों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे" जैसे गीत शामिल हैं। मदन मोहन [[1950]], [[1960]] और [[1970]] के दशक में बॉलीवुड फ़िल्म संगीत के ख्यातिप्राप्त निर्देशक थे। | ||
==जन्म और परिवार== | ==जन्म और परिवार== | ||
मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 बगदाद, इराक में हुआ था। जहाँ उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस के साथ एक एकाउंटेंट जनरल के रूप में काम कर रहे थे, मध्य पूर्व में जन्मे मदन मोहन ने अपने जीवन के पहले पाँच साल यहाँ बिताए। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल फ़िल्म व्यवसाय से जुड़े थे और बाम्बे टाकीज और फ़िल्मीस्तान जैसे बड़े फ़िल्म स्टूडियो में साझीदार थे। | मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 बगदाद, इराक में हुआ था। जहाँ उनके [[पिता]] राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस के साथ एक एकाउंटेंट जनरल के रूप में काम कर रहे थे, मध्य पूर्व में जन्मे मदन मोहन ने अपने जीवन के पहले पाँच साल यहाँ बिताए। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल फ़िल्म व्यवसाय से जुड़े थे और बाम्बे टाकीज और फ़िल्मीस्तान जैसे बड़े फ़िल्म स्टूडियो में साझीदार थे। | ||
==सेना में भर्ती== | ==सेना में भर्ती== | ||
घर में फ़िल्मी माहौल होने के कारण मदन मोहन भी फ़िल्मों में काम कर बड़ा नाम करना चाहते थे लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया और [[देहरादून]] में नौकरी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनका तबादला [[दिल्ली]] में हो गया। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन सेना की नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ [[लखनऊ]] आ गये। | घर में फ़िल्मी माहौल होने के कारण मदन मोहन भी फ़िल्मों में काम कर बड़ा नाम करना चाहते थे लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया और [[देहरादून]] में नौकरी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनका तबादला [[दिल्ली]] में हो गया। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन सेना की नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ [[लखनऊ]] आ गये। | ||
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मदन मोहन ने अपने संगीत निर्देशन से कैफी आजमी रचित जिन गीतों को अमर बना दिया उनमें 'कर चले हम फिदा जानो तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'... हकीकत (1965), 'मेरी आवाज़ सुनो..प्यार का राज सुनो'..नौनिहाल (1967), 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही'.. हीर रांझा (1970), 'सिमटी सी शर्मायी सी तुम किस दुनिया से आई हो'...परवाना (1972), 'तुम जो मिल गये हो ऐसा लगता है कि जहां मिल गया'.. हंसते जख्म (1973) जैसे गीत शामिल है। | मदन मोहन ने अपने संगीत निर्देशन से कैफी आजमी रचित जिन गीतों को अमर बना दिया उनमें 'कर चले हम फिदा जानो तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'... हकीकत (1965), 'मेरी आवाज़ सुनो..प्यार का राज सुनो'..नौनिहाल (1967), 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही'.. हीर रांझा (1970), 'सिमटी सी शर्मायी सी तुम किस दुनिया से आई हो'...परवाना (1972), 'तुम जो मिल गये हो ऐसा लगता है कि जहां मिल गया'.. हंसते जख्म (1973) जैसे गीत शामिल है। | ||
==मदन मोहन जैसा संगीतकार== | ==मदन मोहन जैसा संगीतकार== | ||
महान संगीतकार ओ.पी. नैयर जिनके निर्देशन में लता मंगेश्कर ने कई सुपरहिट गाने गाये अक्सर कहा करते थे। ..मैं नहीं समझता कि लता मंगेश्कर, मदन मोहन के लिये बनी | महान संगीतकार ओ.पी. नैयर जिनके निर्देशन में लता मंगेश्कर ने कई सुपरहिट गाने गाये अक्सर कहा करते थे। ..मैं नहीं समझता कि लता मंगेश्कर, मदन मोहन के लिये बनी हुई है या मदन मोहन लता मंगेशकर के लिये लेकिन अब तक न तो मदन मोहन जैसा संगीतकार हुआ और न लता जैसी पार्श्वगायिका.. मदन मोहन के संगीत निर्देशन में [[आशा भोंसले]] ने फ़िल्म 'मेरा साया' के लिये 'झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में'.. गाना गाया जिसे सुनकर श्रोता आज भी झूम उठते हैं। मदन मोहन से आशा भोंसले को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि- आप अपनी हर फ़िल्मों के लिये लता दीदी को हीं क्यो लिया करते है, इस पर मदन मोहन कहा करते थे जब तक लता ज़िंदा है मेरी फ़िल्मों के गाने वही गायेगी। | ||
;आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत | ;आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत | ||
वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म हकीकत में मोहम्मद रफी की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सज़ा यह गीत 'कर चले हम फिदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'...आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद कर देता है। आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत मदन मोहन ही दे सकते थे। | वर्ष [[1965]] में प्रदर्शित फ़िल्म हकीकत में मोहम्मद रफी की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सज़ा यह गीत 'कर चले हम फिदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'...आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद कर देता है। आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत मदन मोहन ही दे सकते थे। | ||
==सर्वश्रेष्ठ संगीतकार== | ==सर्वश्रेष्ठ संगीतकार== | ||
वर्ष 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म दस्तक के लिये मदन मोहन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 100 फ़िल्मों के लिये संगीत दिया। | वर्ष [[1970]] में प्रदर्शित फ़िल्म दस्तक के लिये मदन मोहन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 100 फ़िल्मों के लिये संगीत दिया। | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिल में ख़ास जगह बना लेने वाले मदन मोहन [[14 जुलाई]] 1975 को इस दुनिया से जुदा हो गए। उनकी मौत के बाद वर्ष 1975 में ही मदन मोहन की 'मौसम' और 'लैला मजनूं' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित | अपनी मधुर [[संगीत]] लहरियों से श्रोताओं के दिल में ख़ास जगह बना लेने वाले मदन मोहन [[14 जुलाई]] 1975 को इस दुनिया से जुदा हो गए। उनकी मौत के बाद वर्ष 1975 में ही मदन मोहन की 'मौसम' और 'लैला मजनूं' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई जिनके संगीत का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता है।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_874.html |title= मदनमोहन |accessmonthday=[[3 जुलाई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= एच.टी.एम.एल|publisher=जागरण याहू |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
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Latest revision as of 05:58, 14 July 2018
मदन मोहन
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पूरा नाम | मदन मोहन कोहली |
प्रसिद्ध नाम | मदन मोहन |
जन्म | 25 जून, 1924 |
जन्म भूमि | बगदाद, इराक |
मृत्यु | 14 जुलाई, 1975 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | राय बहादुर चुन्नीलाल |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | संगीत निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | 'अदालत', 'जेलर', 'मनमौजी', 'संजोग', 'वीर ज़ारा' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार (फ़िल्म- दस्तक) |
विशेष योगदान | मदन मोहन को विशेष रूप से फ़िल्म उद्योग में गज़लों के लिए याद किया जाता है। |
नागरिकता | भारतीय |
पसंदीदा गीतकार | राजा मेंहदी अली खान, राजेन्द्र कृष्ण और कैफ़ी आज़मी |
मुख्य गीत | हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ... (जेलर), वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी... (संजोग), तेरे लिए... (वीर ज़ारा) |
अन्य जानकारी | मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 100 फ़िल्मों के लिये संगीत दिया। |
बाहरी कड़ियाँ | मदन मोहन |
मदन मोहन (अंग्रेज़ी: Madan Mohan, जन्म- 25 जून, 1924, बगदाद, इराक; मृत्यु- 14 जुलाई, 1975, मुम्बई, महाराष्ट्र) हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे। अपनी गजलों के लिए प्रसिद्ध इस संगीतकार का पूरा नाम 'मदन मोहन कोहली' था। अपनी युवावस्था में वे एक सैनिक थे। बाद में संगीत के प्रति अपने झुकाव के कारण ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए। तलत महमूद तथा लता मंगेशकर से उन्होंने कई यादगार गज़लें गंवाईं, जिनमें "आपकी नजरों ने समझा, प्यार के काबिल मुझे" जैसे गीत शामिल हैं। मदन मोहन 1950, 1960 और 1970 के दशक में बॉलीवुड फ़िल्म संगीत के ख्यातिप्राप्त निर्देशक थे।
जन्म और परिवार
मदन मोहन का जन्म 25 जून 1924 बगदाद, इराक में हुआ था। जहाँ उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल इराकी पुलिस के साथ एक एकाउंटेंट जनरल के रूप में काम कर रहे थे, मध्य पूर्व में जन्मे मदन मोहन ने अपने जीवन के पहले पाँच साल यहाँ बिताए। उनके पिता राय बहादुर चुन्नीलाल फ़िल्म व्यवसाय से जुड़े थे और बाम्बे टाकीज और फ़िल्मीस्तान जैसे बड़े फ़िल्म स्टूडियो में साझीदार थे।
सेना में भर्ती
घर में फ़िल्मी माहौल होने के कारण मदन मोहन भी फ़िल्मों में काम कर बड़ा नाम करना चाहते थे लेकिन अपने पिता के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला ले लिया और देहरादून में नौकरी शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद उनका तबादला दिल्ली में हो गया। लेकिन कुछ समय के बाद उनका मन सेना की नौकरी में नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ लखनऊ आ गये।
आकाशवाणी से शुरुआत
लखनऊ में मदन मोहन आकाशवाणी के लिये काम करने लगे। आकाशवाणी में उनकी मुलाकात संगीत जगत् से जुडे़ उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ, उस्ताद अली अकबर ख़ाँ, बेगम अख़्तर और तलत महमूद जैसी जानी मानी हस्तियों से हुई। इन हस्तियों से मुलाकात के बाद मदन मोहन काफ़ी प्रभावित हुये और उनका रुझान संगीत की ओर हो गया। अपने सपनों को नया रूप देने के लिये मदन मोहन लखनऊ से मुंबई आ गये।
पहला संगीत निर्देशन
मुंबई आने के बाद मदन मोहन की मुलाकात एस. डी. बर्मन, श्याम सुंदर और सी. रामचंद्र जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों से हुई और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म आँखें के ज़रिये मदन मोहन फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। फ़िल्म आँखें के बाद लता मंगेशकर मदन मोहन की चहेती पार्श्वगायिका बन गयी और वह अपनी हर फ़िल्म के लिये लता मंगेश्कर से हीं गाने की गुज़ारिश किया करते थे। लता मंगेश्कर भी मदन मोहन के संगीत निर्देशन से काफ़ी प्रभावित थीं और उन्हें गज़लों का शहजादा कहकर संबोधित किया करती थी।
पसंदीदा गीतकार
मदन मोहन के पसंदीदा गीतकार के तौर पर राजा मेंहदी अली खान, राजेन्द्र कृष्ण और कैफी आजमी का नाम सबसे पहले आता है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गीतकार राजेन्द्र किशन के लिये मदन मोहन की धुनों पर कई गीत गाये। जिनमें 'यूं हसरतों के दाग़'..अदालत (1958), 'हम प्यार में जलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ'.. जेलर (1958), 'सपने में सजन से दो बातें एक याद रहीं एक भूल गयी'..गेटवे ऑफ इंडिया (1957), 'मैं तो तुम संग नैन मिला के'..मनमौजी, 'ना तुम बेवफा हो'.. एक कली मुस्काई, 'वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गयी'..संजोग (1961) जैसे सुपरहिट गीत इन तीनों फनकारों की जोड़ी की बेहतरीन मिसाल है।
दशक
- पचास का दशक
पचास के दशक में मदन मोहन के संगीत निर्देशन में राजेन्द्र कृष्ण के रचित रूमानी गीत काफ़ी लोकप्रिय हुये। उनके रचित कुछ रूमानी गीतों में 'कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिये'.. देख कबीरा रोया (1957), 'मेरा करार लेजा मुझे बेकरार कर जा'.. (आशियाना)1952, 'ए दिल मुझे बता दे'..भाई-भाई 1956 जैसे गीत शामिल हैं।
- साठ का दशक
मदन मोहन के संगीत निर्देशन में राजा मेंहदी अली खान रचित गीतों में 'आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे'..अनपढ़ (1962), 'लग जा गले'..(वो कौन थी) 1964, 'नैनो में बदरा छाये'.., 'मेरा साया साथ होगा'.. मेरा साया (1966) जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।
- सत्तर का दशक
मदन मोहन ने अपने संगीत निर्देशन से कैफी आजमी रचित जिन गीतों को अमर बना दिया उनमें 'कर चले हम फिदा जानो तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'... हकीकत (1965), 'मेरी आवाज़ सुनो..प्यार का राज सुनो'..नौनिहाल (1967), 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही'.. हीर रांझा (1970), 'सिमटी सी शर्मायी सी तुम किस दुनिया से आई हो'...परवाना (1972), 'तुम जो मिल गये हो ऐसा लगता है कि जहां मिल गया'.. हंसते जख्म (1973) जैसे गीत शामिल है।
मदन मोहन जैसा संगीतकार
महान संगीतकार ओ.पी. नैयर जिनके निर्देशन में लता मंगेश्कर ने कई सुपरहिट गाने गाये अक्सर कहा करते थे। ..मैं नहीं समझता कि लता मंगेश्कर, मदन मोहन के लिये बनी हुई है या मदन मोहन लता मंगेशकर के लिये लेकिन अब तक न तो मदन मोहन जैसा संगीतकार हुआ और न लता जैसी पार्श्वगायिका.. मदन मोहन के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले ने फ़िल्म 'मेरा साया' के लिये 'झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में'.. गाना गाया जिसे सुनकर श्रोता आज भी झूम उठते हैं। मदन मोहन से आशा भोंसले को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि- आप अपनी हर फ़िल्मों के लिये लता दीदी को हीं क्यो लिया करते है, इस पर मदन मोहन कहा करते थे जब तक लता ज़िंदा है मेरी फ़िल्मों के गाने वही गायेगी।
- आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत
वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म हकीकत में मोहम्मद रफी की आवाज़ में मदन मोहन के संगीत से सज़ा यह गीत 'कर चले हम फिदा जानों तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों'...आज भी श्रोताओं में देशभक्ति के जज्बे को बुलंद कर देता है। आंखों को नम कर देने वाला ऐसा संगीत मदन मोहन ही दे सकते थे।
सर्वश्रेष्ठ संगीतकार
वर्ष 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म दस्तक के लिये मदन मोहन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये गये। मदन मोहन ने अपने ढ़ाई दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 100 फ़िल्मों के लिये संगीत दिया।
निधन
अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिल में ख़ास जगह बना लेने वाले मदन मोहन 14 जुलाई 1975 को इस दुनिया से जुदा हो गए। उनकी मौत के बाद वर्ष 1975 में ही मदन मोहन की 'मौसम' और 'लैला मजनूं' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई जिनके संगीत का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता है।[1]
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