रावल रतन सिंह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''रावल रतन सिंह''' अथवा '''रतन सिंह द्वितीय''' (1302-1303 ई.) [[मेवाड़]] | {{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र | ||
|चित्र=Rawal-Ratan-Singh.png | |||
|चित्र का नाम=रावल रतन सिंह (काल्पनिक चित्र) | |||
|पूरा नाम=रावल रतन सिंह | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म= | |||
|जन्म भूमि= | |||
|मृत्यु तिथि= | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|पिता/माता=रावल समरसिंह | |||
|पति/पत्नी=[[पद्मिनी|रानी पद्मिनी]] | |||
|संतान= | |||
|उपाधि= | |||
|शासन=1302-1303 ई. | |||
|धार्मिक मान्यता=[[हिन्दू]] | |||
|राज्याभिषेक= | |||
|युद्ध= | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|निर्माण= | |||
|सुधार-परिवर्तन= | |||
|राजधानी=[[चित्तौड़]] | |||
|पूर्वाधिकारी= | |||
|राजघराना=[[राजपूत]] | |||
|वंश=गुहिलौत राजवंश | |||
|शासन काल= | |||
|स्मारक= | |||
|मक़बरा= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=28 जनवरी, 1303 ई. को अलाउद्दीन ख़िलज़ी का चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार हो गया। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुए और उसकी पत्नी [[पद्मिनी|रानी पद्मिनी]] ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''रावल रतन सिंह''' अथवा '''रतन सिंह द्वितीय''' (1302-1303 ई.) [[मेवाड़]] के शासक थे, जिसकी राजधानी [[चित्तौड़]] थी। ये रावल समरसिंह के पुत्र थे। | |||
====रानी पद्मिनी से विवाह==== | ====रानी पद्मिनी से विवाह==== | ||
{{Main|पद्मिनी}} | {{Main|पद्मिनी}} | ||
रावल समरसिंह के बाद रावल रतन सिंह [[चित्तौड़]] की राजगद्दी पर बैठा। रावल रतन सिंह का विवाह [[पद्मिनी|रानी पद्मिनी]] के साथ हुआ था। रानी पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है। रतन सिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी। उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर [[दिल्ली]] का तत्कालीन बादशाह [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उसने चित्तौड़ के क़िले को कई महीनों घेरे रखा पर चित्तौड़ की रक्षार्थ पर तैनात [[राजपूत]] सैनिकों के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावज़ूद वह चित्तौड़ के क़िले में घुस नहीं पाया। तब अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चित्तौड़ | रावल समरसिंह के बाद रावल रतन सिंह [[चित्तौड़]] की राजगद्दी पर बैठा। रावल रतन सिंह का विवाह [[पद्मिनी|रानी पद्मिनी]] के साथ हुआ था। रानी पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है। रतन सिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी। उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर [[दिल्ली]] का तत्कालीन बादशाह [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उसने चित्तौड़ के क़िले को कई महीनों घेरे रखा पर चित्तौड़ की रक्षार्थ पर तैनात [[राजपूत]] सैनिकों के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावज़ूद वह चित्तौड़ के क़िले में घुस नहीं पाया। तब अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चित्तौड़ रतनसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि<br /><blockquote><span style="color: #8f5d31">"हम तो आपसे मित्रता करना चाहते हैं, रानी की सुन्दरता के बारे में बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुँह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली वापस लौट जायेंगे।"</span></blockquote> रतनसिंह ख़िलज़ी का यह सन्देश सुनकर आगबबूला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि<br /><blockquote><span style="color: #8f5d31">"मेरे कारण व्यर्थ ही चित्तौड़ के सैनिकों का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है।</span></blockquote> रानी को अपनी नहीं पूरे [[मेवाड़]] की चिंता थी वह नहीं चाहती थीं कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अलाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी। रानी ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अलाउद्दीन रानी के मुखड़े को देखने के लिए इतना बेक़रार है तो दर्पण में उसके प्रतिबिंब को देख सकता है।<ref name="ज्ञान दर्पण">{{cite web |url=http://networkedblogs.com/f6Oc1 |title=रानी पद्मिनी |accessmonthday=[[28 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज्ञान दर्पण |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
====ऐतिहासिक उल्लेख==== | ====ऐतिहासिक उल्लेख==== | ||
[[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] के साथ चित्तौड़ की चढ़ाई में उपस्थित [[अमीर खुसरो]] ने एक इतिहास लेखक की स्थिति से न तो 'तारीखे अलाई' में और न सहृदय कवि के रूप में अलाउद्दीन के बेटे [[खिज्र ख़ाँ]] और [[गुजरात]] की रानी देवलदेवी की प्रेमगाथा 'मसनवी खिज्र ख़ाँ' में ही इसका कुछ संकेत किया है। इसके अतिरिक्त परवर्ती [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] इतिहास लेखकों ने भी इस संबध में कुछ भी नहीं लिखा है। केवल फ़रिश्ता ने 1303 ई. में चित्तौड़ की चढ़ाई के लगभग 300 वर्ष बाद और जायसीकृत 'पद्मावत'<ref>'पद्मावत' (रचनाकाल 1540 ई.</ref> की रचना के 70 वर्ष पश्चात् सन् 1610 में '[[पद्मावत]]' के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फ़रिश्ता और टाड के संकलनों में तथ्य केवल यही है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रतनसिंह मारा गया और उसकी रानी पद्मिनी ने [[राजपूत]] रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दे दी। | [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] के साथ चित्तौड़ की चढ़ाई में उपस्थित [[अमीर खुसरो]] ने एक इतिहास लेखक की स्थिति से न तो 'तारीखे अलाई' में और न सहृदय कवि के रूप में अलाउद्दीन के बेटे [[खिज्र ख़ाँ]] और [[गुजरात]] की रानी देवलदेवी की प्रेमगाथा 'मसनवी खिज्र ख़ाँ' में ही इसका कुछ संकेत किया है। इसके अतिरिक्त परवर्ती [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] इतिहास लेखकों ने भी इस संबध में कुछ भी नहीं लिखा है। केवल फ़रिश्ता ने 1303 ई. में चित्तौड़ की चढ़ाई के लगभग 300 वर्ष बाद और जायसीकृत 'पद्मावत'<ref>'पद्मावत' (रचनाकाल 1540 ई.</ref> की रचना के 70 वर्ष पश्चात् सन् 1610 में '[[पद्मावत]]' के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। [[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फ़रिश्ता और टाड के संकलनों में तथ्य केवल यही है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रतनसिंह मारा गया और उसकी रानी पद्मिनी ने [[राजपूत]] रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दे दी। | ||
====अलाउद्दीन ख़िलज़ी से युद्ध==== | ====अलाउद्दीन ख़िलज़ी से युद्ध==== | ||
{{Main|अलाउद्दीन ख़िलज़ी}} | {{Main|अलाउद्दीन ख़िलज़ी}} | ||
[[चित्तौड़गढ़ क़िला|चित्तौड़ का क़िला]] सामरिक दृष्टिकोण से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह क़िला [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] की निगाह में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर और 'पद्मावत की कथा' के आधार पर चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण [[रानी पद्मिनी]] के अनुपम सौन्दर्य के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है। अन्ततः 28 जनवरी, 1303 ई. को | [[चित्तौड़गढ़ क़िला|चित्तौड़ का क़िला]] सामरिक दृष्टिकोण से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह क़िला [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] की निगाह में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर और 'पद्मावत की कथा' के आधार पर चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण [[रानी पद्मिनी]] के अनुपम सौन्दर्य के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है। अन्ततः 28 जनवरी, 1303 ई. को अलाउद्दीन ख़िलज़ी का चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार हो गया। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुआ और उसकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। क़िले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30,000 राजपूत वीरों का कत्ल करवा दिया। उसने चित्तौड़ का नाम [[ख़िज़्र ख़ाँ]] के नाम पर 'ख़िज़्राबाद' रखा और ख़िज़्र ख़ाँ को सौंप कर [[दिल्ली]] वापस आ गया। | ||
चित्तौड़ को पुनः स्वतंत्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी था। इसी बीच अलाउद्दीन ने ख़िज़्र ख़ाँ को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़ दुर्ग की ज़िम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् गुहिलौत राजवंश के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड़ सहित पूरे मेवाड़ को आज़ाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड़ एक बार फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया। | चित्तौड़ को पुनः स्वतंत्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी था। इसी बीच अलाउद्दीन ने ख़िज़्र ख़ाँ को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़ दुर्ग की ज़िम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् गुहिलौत राजवंश के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड़ सहित पूरे मेवाड़ को आज़ाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड़ एक बार फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया। | ||
Line 14: | Line 50: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://sillyconfusion.com/the-story-of-rawal-ratan-singh/ The Story of Rawal Ratan Singh] | |||
*[http://mewarkigatha.blogspot.in/2016/05/blog-post_13.html रावल रतनसिंह व रानी पद्मिनी की अमरगाथा] | |||
*[http://www.bbc.com/hindi/india-41397131 क्यों हुई थी ख़िलजी और रतन सिंह की लड़ाई?] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{राजपूत साम्राज्य}} | {{राजपूत साम्राज्य}} | ||
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान का इतिहास]][[Category:मध्य काल]][[Category:राजपूत साम्राज्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान का इतिहास]][[Category:मध्य काल]][[Category:राजपूत साम्राज्य]][[Category:चरित कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 09:44, 12 November 2017
रावल रतन सिंह
| |
पूरा नाम | रावल रतन सिंह |
पिता/माता | रावल समरसिंह |
पति/पत्नी | रानी पद्मिनी |
शासन | 1302-1303 ई. |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू |
राजधानी | चित्तौड़ |
राजघराना | राजपूत |
वंश | गुहिलौत राजवंश |
अन्य जानकारी | 28 जनवरी, 1303 ई. को अलाउद्दीन ख़िलज़ी का चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार हो गया। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुए और उसकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। |
रावल रतन सिंह अथवा रतन सिंह द्वितीय (1302-1303 ई.) मेवाड़ के शासक थे, जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी। ये रावल समरसिंह के पुत्र थे।
रानी पद्मिनी से विवाह
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
रावल समरसिंह के बाद रावल रतन सिंह चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठा। रावल रतन सिंह का विवाह रानी पद्मिनी के साथ हुआ था। रानी पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है। रतन सिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी। उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अलाउद्दीन ख़िलज़ी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चित्तौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी। उसने चित्तौड़ के क़िले को कई महीनों घेरे रखा पर चित्तौड़ की रक्षार्थ पर तैनात राजपूत सैनिकों के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावज़ूद वह चित्तौड़ के क़िले में घुस नहीं पाया। तब अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चित्तौड़ रतनसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि
"हम तो आपसे मित्रता करना चाहते हैं, रानी की सुन्दरता के बारे में बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुँह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली वापस लौट जायेंगे।"
रतनसिंह ख़िलज़ी का यह सन्देश सुनकर आगबबूला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि
"मेरे कारण व्यर्थ ही चित्तौड़ के सैनिकों का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है।
रानी को अपनी नहीं पूरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थीं कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अलाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी। रानी ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अलाउद्दीन रानी के मुखड़े को देखने के लिए इतना बेक़रार है तो दर्पण में उसके प्रतिबिंब को देख सकता है।[1]
ऐतिहासिक उल्लेख
अलाउद्दीन ख़िलज़ी के साथ चित्तौड़ की चढ़ाई में उपस्थित अमीर खुसरो ने एक इतिहास लेखक की स्थिति से न तो 'तारीखे अलाई' में और न सहृदय कवि के रूप में अलाउद्दीन के बेटे खिज्र ख़ाँ और गुजरात की रानी देवलदेवी की प्रेमगाथा 'मसनवी खिज्र ख़ाँ' में ही इसका कुछ संकेत किया है। इसके अतिरिक्त परवर्ती फ़ारसी इतिहास लेखकों ने भी इस संबध में कुछ भी नहीं लिखा है। केवल फ़रिश्ता ने 1303 ई. में चित्तौड़ की चढ़ाई के लगभग 300 वर्ष बाद और जायसीकृत 'पद्मावत'[2] की रचना के 70 वर्ष पश्चात् सन् 1610 में 'पद्मावत' के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। गौरीशंकर हीराचंद ओझा का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फ़रिश्ता और टाड के संकलनों में तथ्य केवल यही है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रतनसिंह मारा गया और उसकी रानी पद्मिनी ने राजपूत रमणियों के साथ जौहर की अग्नि में आत्माहुति दे दी।
अलाउद्दीन ख़िलज़ी से युद्ध
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
चित्तौड़ का क़िला सामरिक दृष्टिकोण से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह क़िला अलाउद्दीन ख़िलज़ी की निगाह में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर और 'पद्मावत की कथा' के आधार पर चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी के अनुपम सौन्दर्य के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है। अन्ततः 28 जनवरी, 1303 ई. को अलाउद्दीन ख़िलज़ी का चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार हो गया। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुआ और उसकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। क़िले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30,000 राजपूत वीरों का कत्ल करवा दिया। उसने चित्तौड़ का नाम ख़िज़्र ख़ाँ के नाम पर 'ख़िज़्राबाद' रखा और ख़िज़्र ख़ाँ को सौंप कर दिल्ली वापस आ गया।
चित्तौड़ को पुनः स्वतंत्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी था। इसी बीच अलाउद्दीन ने ख़िज़्र ख़ाँ को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़ दुर्ग की ज़िम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् गुहिलौत राजवंश के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड़ सहित पूरे मेवाड़ को आज़ाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड़ एक बार फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- The Story of Rawal Ratan Singh
- रावल रतनसिंह व रानी पद्मिनी की अमरगाथा
- क्यों हुई थी ख़िलजी और रतन सिंह की लड़ाई?