रघुजी भोंसले: Difference between revisions
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रघुजी महान योद्धा और बाजीराव प्रथम द्वारा संगठित [[मराठा साम्राज्य|मराठा संघ]] का महत्त्वपूर्ण सदस्य था। उसने [[भारत]] के पूर्वीय क्षेत्रवर्ती [[उड़ीसा]] और [[बंगाल]] तक के भू-भागों को अपने आक्रमण से आंतकित कर दिया और बंगाल के नवाब [[अलीवर्दी ख़ाँ]] से उड़ीसा पर मराठों का अधिकार सन्धि के द्वारा मनवा लिया। रघुजी भोंसले के बाद उसका पौत्र [[रघुजी भोंसले द्वितीय]] उत्तराधिकारी था। रघुजी भोंसले के वंशजों ने नागपुर को राजधानी बनाकर बरार प्रान्त पर 1853 ई. तक राज्य किया और उसी वर्ष [[ | रघुजी महान योद्धा और बाजीराव प्रथम द्वारा संगठित [[मराठा साम्राज्य|मराठा संघ]] का महत्त्वपूर्ण सदस्य था। उसने [[भारत]] के पूर्वीय क्षेत्रवर्ती [[उड़ीसा]] और [[बंगाल]] तक के भू-भागों को अपने आक्रमण से आंतकित कर दिया और बंगाल के नवाब [[अलीवर्दी ख़ाँ]] से उड़ीसा पर मराठों का अधिकार सन्धि के द्वारा मनवा लिया। रघुजी भोंसले के बाद उसका पौत्र [[रघुजी भोंसले द्वितीय]] उत्तराधिकारी था। रघुजी भोंसले के वंशजों ने नागपुर को राजधानी बनाकर बरार प्रान्त पर 1853 ई. तक राज्य किया और उसी वर्ष [[लॉर्ड डलहौज़ी]] ने पुत्रहीन [[रघुजी भोंसले तृतीय]] की मृत्यु के उपरान्त बरार को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया। | ||
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रघुजी भोंसले, (जिसे रघुजी भोंसले प्रथम के नाम से भी जाना जाता है) नागपुर के भोंसला शासकों में प्रथम शासक था। उसका जन्म एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वैवाहिक सम्बन्ध से वह राजा शाहू का सम्बन्धी भी था। वह पेशवा बाजीराव प्रथम के प्रतिद्वन्द्वी दल का नेता था। पेशवा ने उसे बरार प्रान्त में मराठा शक्ति संघटित करने का पूर्ण अधिकार दे रखा था। रघुजी महान योद्धा और बाजीराव प्रथम द्वारा संगठित मराठा संघ का महत्त्वपूर्ण सदस्य था। उसने भारत के पूर्वीय क्षेत्रवर्ती उड़ीसा और बंगाल तक के भू-भागों को अपने आक्रमण से आंतकित कर दिया और बंगाल के नवाब अलीवर्दी ख़ाँ से उड़ीसा पर मराठों का अधिकार सन्धि के द्वारा मनवा लिया। रघुजी भोंसले के बाद उसका पौत्र रघुजी भोंसले द्वितीय उत्तराधिकारी था। रघुजी भोंसले के वंशजों ने नागपुर को राजधानी बनाकर बरार प्रान्त पर 1853 ई. तक राज्य किया और उसी वर्ष लॉर्ड डलहौज़ी ने पुत्रहीन रघुजी भोंसले तृतीय की मृत्यु के उपरान्त बरार को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-394