मलिक काफ़ूर: Difference between revisions

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*नुसरत ख़ाँ ने उसे ख़रीद कर 1298 ई. में [[गुजरात]] विजय से वापस जाने पर सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समक्ष तोहफे के रूप में प्रस्तुत किया।
*नुसरत ख़ाँ ने उसे ख़रीद कर 1298 ई. में [[गुजरात]] विजय से वापस जाने पर सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के समक्ष तोहफे के रूप में प्रस्तुत किया।
*शीघ्र ही वह सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी का 'मलिक नाइब' बना दिया गया।
*शीघ्र ही वह सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी का 'मलिक नाइब' बना दिया गया।
*मलिक काफ़ूर ने सफलतापूर्वक ख़िलजी सेना का नेतृत्व करते हुए [[देवगिरि]], [[वारंगल आन्ध्र प्रदेश|वारंगल]], द्रारसमुद्र, मालाबार एवं [[मदुरा]] को जीत कर [[दिल्ली सल्तनत]] के अधीन कर दिया।
*मलिक काफ़ूर ने सफलतापूर्वक ख़िलजी सेना का नेतृत्व करते हुए [[देवगिरि]], [[वारंगल]], द्रारसमुद्र, मालाबार एवं [[मदुरा]] को जीत कर [[दिल्ली सल्तनत]] के अधीन कर दिया।
*उसकी इस अभूतपूर्व सफलता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ख़िलजी ने उसे अपना सर्वाधिक विश्वस्त अधिकारी बना लिया।
*उसकी इस अभूतपूर्व सफलता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ख़िलजी ने उसे अपना सर्वाधिक विश्वस्त अधिकारी बना लिया।
*सत्ता एवं प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ मलिक काफ़ूर की महत्त्वाकांक्षाएँ भी बढ़ गयीं।
*सत्ता एवं प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ मलिक काफ़ूर की महत्त्वाकांक्षाएँ भी बढ़ गयीं।

Revision as of 09:01, 3 May 2011

  • मलिक काफ़ूर मूलतः हिन्दू जाति का एक हिजड़ा था।
  • उसे एक हज़ार दीनार में ख़रीदा गया था, इसलिए मलिक काफ़ूर को ‘हज़ार दीनारी’ भी कहा जाता था।
  • नुसरत ख़ाँ ने उसे ख़रीद कर 1298 ई. में गुजरात विजय से वापस जाने पर सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के समक्ष तोहफे के रूप में प्रस्तुत किया।
  • शीघ्र ही वह सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी का 'मलिक नाइब' बना दिया गया।
  • मलिक काफ़ूर ने सफलतापूर्वक ख़िलजी सेना का नेतृत्व करते हुए देवगिरि, वारंगल, द्रारसमुद्र, मालाबार एवं मदुरा को जीत कर दिल्ली सल्तनत के अधीन कर दिया।
  • उसकी इस अभूतपूर्व सफलता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ख़िलजी ने उसे अपना सर्वाधिक विश्वस्त अधिकारी बना लिया।
  • सत्ता एवं प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ मलिक काफ़ूर की महत्त्वाकांक्षाएँ भी बढ़ गयीं।
  • 1316 ई. में अलाउद्दीन ख़िलजी की मृत्यु के बाद उसने सुल्तान के नाबालिग लड़के को सिंहासन पर बैठाकर राज्य की सम्पूर्ण शक्ति को अपने हाथ में केंद्रित कर लिया।
  • काफ़ूर ने स्वयं गद्दी हथियाने के मोह में फँसकर अलाउद्दीन ख़िलजी के दो पुत्रों की आँखें निकलवा कर नाबालिक सुल्तान की माँ को बन्दी बना लिया।
  • काफ़ूर के इस कार्य से अत्यंत ही क्रोध में भरे हुए अलाउद्दीन ख़िलजी के वफादारों ने संगठित होकर काफ़ूर के सिंहासन पर बैठने के 35 दिन बाद ही उसकी हत्या कर दी।


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