चित्तौड़गढ़ क़िला: Difference between revisions

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*चित्तौड़गढ़ क़िला, [[उदयपुर]] ज़िले ([[राजस्थान]]) के प्राचीन नगर [[चित्तौड़गढ़]] में स्थित है।
*[[चित्तौड़]] का विख्यात दुर्ग, [[राजस्थान]] में 25.53 अक्षांश और 74.39 देशांतर पर स्थित है।  
==इतिहास==
*यह ज़मीन से लगभग 500 फुट ऊँचाईवाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है।
किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को [[महाभारत]] के [[भीम (पांडव)|भीम]] ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे [[मौर्य वंश]] के राजा मानसिंह ने [[उदयपुर]] के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर महारानी [[पद्मिनी]] तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं। [इस भवन को 1535 ई. में [[गुजरात]] के सुलतान बहादुरशाह ने नष्ट कर दिया था। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ विजय से लौटते समय [[चन्द्रावती]] को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने [[हुमायूँ]] को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। चित्तौड़ के निकट ही [[पिंडौली]] नामक ग्राम है, जहाँ अकबर और मेवाड़ की सेना में युद्ध हुआ था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। [[अकबर]] के समय में ही महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री [[मीराबाई]] (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था।  
* परंपरा से प्रसिद्ध है कि इसे चित्रांगद मोरी ने बनवाया था। आठवीं शताब्दी में गुहिलवंशी बापा ने इसे हस्तगत किया।
*कुछ समय तक यह परमारों, सोलंकियों और चौहानों के अधिकार में भी रहा, किंतु सन 1175 ई. के आस पास से [[उदयपुर]] राज्य के राजस्थान में विलय होने तक यह प्राय: गुहिलवंशियों के हाथ में रहा।
* दुर्ग अनेक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थानों से परिपूर्ण है। पाडलपोल के निकट वीर बाघसिंह का स्मारक है।  
* महाराणा का प्रतिनिधि बनकर इसने गुजरातियों से युद्ध किया था। भैरवपोल के निकट कल्ला और जैमल क छतरियाँ हैं। रामपोल के पास पत्ता का स्मारक पत्थर है।
* दुर्ग के अंदर जैन कीर्तिस्तंभ, महावीरस्वामी का मंदिर, पद्मिनी के महल, कालिका माई का मंदिर, कुछ प्राचीन बौद्ध स्तूप, समिद्वेश्वर का भव्य प्राचीन मंदिर जिसे राजा भोज परमार ने बनवाया था।


=वीथिका=
==वीथिका==
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चित्र:Chittorgarh-Fort.jpg|चित्तौड़गढ़ क़िला, [[चित्तौड़गढ़]]
चित्र:Chittorgarh-Fort.jpg|चित्तौड़गढ़ क़िला, [[चित्तौड़गढ़]]
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
हिन्दी विश्वकोश (खण्ड- 4) पृष्ठ संख्या- 219
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Revision as of 15:07, 25 April 2011

thumb|250px|चित्तौड़गढ़ क़िला

  • चित्तौड़ का विख्यात दुर्ग, राजस्थान में 25.53 अक्षांश और 74.39 देशांतर पर स्थित है।
  • यह ज़मीन से लगभग 500 फुट ऊँचाईवाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है।
  • परंपरा से प्रसिद्ध है कि इसे चित्रांगद मोरी ने बनवाया था। आठवीं शताब्दी में गुहिलवंशी बापा ने इसे हस्तगत किया।
  • कुछ समय तक यह परमारों, सोलंकियों और चौहानों के अधिकार में भी रहा, किंतु सन 1175 ई. के आस पास से उदयपुर राज्य के राजस्थान में विलय होने तक यह प्राय: गुहिलवंशियों के हाथ में रहा।
  • दुर्ग अनेक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थानों से परिपूर्ण है। पाडलपोल के निकट वीर बाघसिंह का स्मारक है।
  • महाराणा का प्रतिनिधि बनकर इसने गुजरातियों से युद्ध किया था। भैरवपोल के निकट कल्ला और जैमल क छतरियाँ हैं। रामपोल के पास पत्ता का स्मारक पत्थर है।
  • दुर्ग के अंदर जैन कीर्तिस्तंभ, महावीरस्वामी का मंदिर, पद्मिनी के महल, कालिका माई का मंदिर, कुछ प्राचीन बौद्ध स्तूप, समिद्वेश्वर का भव्य प्राचीन मंदिर जिसे राजा भोज परमार ने बनवाया था।

वीथिका


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दी विश्वकोश (खण्ड- 4) पृष्ठ संख्या- 219

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